June 15, 2023

समान नागरिक संहिता, वित्त आयोग, CBI, INS विक्रमादित्य

                                     समान नागरिक संहिता

चर्चा में क्यों ?

  • भारत के 22वें विधि आयोग द्वारा समान नागरिक संहिता (UCC) पर सार्वजनिक और धार्मिक संगठनों सहित विभिन्न हितधारकों से नवीन सुझाव मांगे गये।

विधि आयोग का तर्क 

  • विधि आयोग के अनुसार, एकीकृत राष्ट्र को "एकरूपता" रखने की आवश्यकता नहीं है और मानव अधिकारों पर सार्वभौमिक एवं निर्विवाद तर्कों के साथ हमारी विविधता को सुलझाने के प्रयास किए जाने चाहिए।
  • एक मजबूत लोकतंत्र में भेदभाव का संकेत दिए बिना विवाह और तलाक पर कुछ उपायों को सभी धर्मों के व्यक्तिगत कानूनों में समान रूप से स्वीकार किया जाना चाहिए।

विधि आयोग के बारे में 

  • भारत का विधि आयोग एक गैर-सांविधिक निकाय है और भारत सरकार, विधि और न्याय मंत्रालय, विधि कार्य विभाग की एक अधिसूचना द्वारा कानून के क्षेत्र में अनुसंधान करने के लिए एक निश्चित समय सीमा के साथ गठित किया गया है।
  • यह आयोग विचारार्थ विषयों के अनुसार केंद्र सरकार को सिफारिशें प्रदान करता है।
  • भारत का विधि आयोग भारत में कानूनों की उत्कृष्ट विचारोत्तेजक और महत्वपूर्ण समीक्षा प्रदान करता है।

समान नागरिक संहिता 

  • समान नागरिक संहिता का अर्थ एक पंथनिरपेक्ष (सेक्युलर) कानून होता है जो सभी पंथ के लोगों के लिये समान रूप से लागू होता है।
  • दूसरे शब्दों में, अलग-अलग पंथों के लिये अलग-अलग सिविल कानून न होना ही 'समान नागरिक संहिता' की मूल भावना है। समान नागरिक कानून से अभिप्राय कानूनों के वैसे समूह से है जो देश के समस्त नागरिकों (चाहे वह किसी भी पंथ एवं क्षेत्र से संबंधित हों) पर लागू होता है।
  • यह किसी भी पंथ या जाति के सभी निजी कानूनों से ऊपर होता है। इसके अंतर्गत आने वाले मुख्य विषय हैं-
  • व्यक्तिगत स्तर,
  • संपत्ति के अधिग्रहण और संचालन का अधिकार,
  • विवाह, तलाक और गोद लेना।

सांस्कृतिक विविधता

  • सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, UCC "इस स्तर पर न तो आवश्यक है और न ही वांछनीय है"। धर्मनिरपेक्षता देश में प्रचलित बहुलता का खंडन नहीं कर सकती।
  • "सांस्कृतिक विविधता में समझौता नहीं किया जा सकता क्योंकि ‘विविधता में एकता’ ही भारतीय अखंडता का अभिन्न अंग है।" यहाँ हमें मुस्लिम, हिन्दू, पारसी, ईसाई अनेक धर्मों के अपने कानून देखने को मिलते हैं।

वित्त आयोग

चर्चा में क्यों ?

  • हाल ही में केंद्र के द्वारा नये वित्त आयोग की नियुक्ति की जाएगी, जो केंद्र के कर राजस्व में राज्यों के ऊर्ध्वाधर और क्षैतिज साझाकरण आवंटन पर सुझाव प्रदान करेगा।

वित्त आयोग के बारे में

  • वित्त आयोग संघ और राज्य सरकारों के बीच कुछ राजस्व संसाधनों के आवंटन के उद्देश्य से एक संवैधानिक निकाय है।
  • इसे केंद्र और राज्यों के बीच वित्तीय संबंधों को परिभाषित करने के लिए बनाया गया था और इसका गठन 1951 में हुआ था।
  • गठन : संविधान के अनुच्छेद 280 के अनुसार भारतीय संविधान के लागू होने के दो साल बाद और उसके बाद हर 5 साल में राष्ट्रपति को भारत के एक वित्त आयोग का गठन करन  है।
  • नोट : राष्ट्रपति पांच वर्ष की समाप्ति से पहले वित्त आयोग का गठन भी कर सकते हैं।

वित्त आयोग की आवश्यकता क्यों ? 

  • पूर्व-सुधार अवधि में, वित्त आयोग की सिफारिशें ज्यादा प्रभावी न होने के कारण केंद्र के पास योजना आयोग, वित्तपोषण और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (PSU’s) निवेश के माध्यम से राज्यों को क्षतिपूर्ति प्रदान करने का कार्य करता था।
  • नवीन सुधारों के कारण नवीन PSU’s में निवेश कम हुआ और 2014 में योजना आयोग को समाप्त कर दिया गया था, जिसके परिणामस्वरूप वित्त आयोग को वास्तव में भारत के राजकोषीय संघवाद का एकमात्र वास्तुकार बनाया गया जो इसके उत्तरदायित्व और प्रभाव को दर्शाता है।

15वां वित्त आयोग

  • इसकी नियुक्ति 2017 में की गयी थी जिसके अनुसार –
  • क्षैतिज विचलन के लिए, इसने जनसांख्यिकीय प्रदर्शन के लिए 12.5% भारांश, आय के लिए 45%, जनसंख्या और क्षेत्र के लिए 15%, वन और पारिस्थितिकी के लिए 10% एवं कर और वित्तीय प्रयासों के लिए 2.5% का सुझाव दिया है।
  • कर अंश को देखते हुए राज्यों की निरंतर बढ़ती मांग क्षैतिज वितरण पर अधिक केन्द्रित है।वर्तमान में, केंद्र की व्यय की जरूरतों और सीमओं को देखते हुए कुल कर वितरण का 41% राज्यों को दिया जाता है।
  • वित्त आयोग ने जिम्मेदार राज्यों को दंडित किए बिना घाटे वाले राज्यों का समर्थन करने के लिए वितरण सूत्र को बदलने की कोशिश की है,परंतु यह राज्यों के वितरण में असमानता नहीं रख सकता है।
  • प्रत्येक क्षैतिज वितरण सूत्र की अक्षम या अनुचित या दोनों के रूप में आलोचना की गई है।
  • क्षैतिज वितरण के अंतर्गत अमीर राज्यों द्वारा गरीब राज्यों को मुआवजा देने की प्रक्रिया अपनाई जाती है।
  • वितरण के तहत निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखा जाता है।
  • परिवार नियोजन - विचलन के उच्च हिस्से को ध्यान में रखते हुए परिवार नियोजन की उपेक्षा करने के लिए राज्यों को प्रतिकूल प्रोत्साहन नहीं दिया जाना चाहिए। जिन राज्यों ने जनसंख्या वृद्धि दर को स्थिर करने में अच्छा प्रदर्शन किया था, विशेष रूप से दक्षिणी राज्यों ने आधार वर्ष में इस बदलाव का विरोध किया, इसे 'अच्छे प्रदर्शन के लिए दंड' कहा।
  • राजस्व घाटा अनुदान – वित्त आयोग द्वारा उन्हें सम्मानित किया जाता है जो कर विचलन के बाद भी चालू खाते पर घाटे में रहते हैं।
  • राजस्व घाटे के अनुदानों से अभिप्राय देश में प्रत्येक राज्य को अपने निवासियों को न्यूनतम स्तर की सेवा प्रदान करने में सक्षम होना है।
  • क्षेत्र – क्षेत्र के आकार के आधार पर भी सेवाएं प्रदान की जाती हैं।
  • वन और पारिस्थितिकी - सभी राज्यों के कुल सघन वनों में प्रत्येक राज्य के घने वनों की हिस्सेदारी को ध्यान में रखते हुए इस मानदंड पर हिस्सेदारी का निर्धारण किया जाता है।
  • नवीन वित्त आयोग द्वारा विशेष रूप से दो मुद्दों पर विशेष ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
  • पहला - केंद्र द्वारा करों को बढ़ाने के बजाय उपकर और अधिभार लगाने का अत्यधिक सहारा लेना चाहिए।
  • दूसरा -मुफ्तखोरी पर लगाम  और वित्त आयोग का फोकस सरकारी खर्च पर होना चाहिए।

CBI के लिए सामान्य सहमति

     चर्चा में क्यों?

  • तमिलनाडु सरकार द्वारा राज्य के मामलों से सम्बंधित जाँच के लिए केंद्रीय जाँच ब्यूरो (CBI) को दी गई सामान्य सहमति वापस ले ली गयी है।

सीबीआई (CBI) के बारे में

  • CBI, कार्मिक विभाग, कार्मिक पेंशन तथा लोक शिकायत मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन कार्यरत एक प्रमुख अन्वेषण पुलिस एजेंसी है।
  • इसकी स्थापना दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (DPSE) अधिनियम, 1946 के द्वारा की गयी है।
  • यह नोडल पुलिस एजेन्सी भी है, जो इंटरपोल के सदस्य-राष्ट्रों के अन्वेषण का समन्वयन करती है।
  • एक भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसी से हटकर CBI एक बहुआयामी, बहु-अनुशासनात्मक केंद्रीय पुलिस, क्षमता, विश्वसनीयता और विधि शासनादेश का पालन करते हुए जाँच करने वाली एक विधि प्रवर्तन एजेंसी है और यह भारत में कहीं भी अपराधों का अभियोजन करती है।

CBI का कार्य

  • केंद्र सरकार के कर्मचारियों के भ्रष्टाचार और अनियमितता आदि के मामलों की जाँच करना।
  • राजकोषीय और आर्थिक कानूनों; जैसे- आयात-निर्यात से जुड़े कानून, विदेशी मुद्रा विनिमय आदि के उल्लंघन के मामलों की जाँच करना।
  • पेशेवर अपराधियों के संगठित गिरोहों द्वारा किए गए गंभीर अपराधों की जाँच करना।
  • भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसियों तथा विभिन्न राज्य पुलिस बलों के बीच समन्वय स्थापित करना।
  • राज्य सरकारों के अनुरोध पर किसी सार्वजनिक महत्व के मामले की जाँच करना।
  • ऐसे मामले, जो विशेषकर भारत सरकार, जिनका उदाहरण नीचे दिया गया है, से संबंधित हों, के प्रवर्तन के साथ केंद्रीय नियमों को भंग करने से संबंधित मामले की जाँच करना।
  • आयात तथा निर्यात नियंत्रण आदेशों को भंग करना।
  • विदेशी मुद्रा नियमन अधिनियम का गंभीर उल्लंघन।
  • पासपोर्ट धोखाधड़ी
  • केन्द्रीय सरकार के कार्यों से संबंधित कार्यालय गुप्त अधिनियम के तहत मामले।
  • भारत का सुरक्षा अधिनियम या वे नियम, जो केंद्रीय सरकार के विशेष रूप से संबंधितों के तहत कुछ एक विशेष श्रेणी के मामले।

सामान्य सहमति का अर्थ

  • CBI और राज्यों के बीच सामान्य सहमति होती है जिसके अंतर्गत CBI अपना कार्य विभिन्न राज्यों में करती है,परन्तु राज्य सरकार सामान्य सहमति को रद्द कर दे, तो CBI को उस राज्य में जाँच या छापेमारी करने से पहले राज्य सरकार से अनुमति लेनी होगी। 
  • केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो के पास केवल केंद्रीय कर्मचारियों की जाँच करने की शक्ति प्राप्त है। 
  • यदि राज्य सरकार के क्षेत्र में जाँच करना हो, तो राज्यों की आम सहमति अनिवार्य है।
  • हाल ही में ही देश के महाराष्ट्र, पंजाब, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, झारखंड, छत्तीसगढ़, केरल आदि राज्यों ने केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो को दी गई आम सहमति को वापस ले लिया है। 

सहमति के प्रकार:

  • सामान्य सहमति: जब कोई राज्य किसी मामले की जाँच के लिए CBI को सामान्य सहमति देता है, तो एजेंसी को जाँच के संबंध में या हर मामले के लिए उस राज्य में प्रवेश करने पर हर बार नई अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं होती है।
  • यह आमतौर पर राज्यों द्वारा अपने राज्य-क्षेत्र में केंद्र सरकार के कर्मचारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की निर्बाध जाँच में सीबीआई की मदद करने के लिए दी जाती है।
  • विशिष्ट सहमति: जब एक सामान्य सहमति वापस ले ली जाती है, तो सीबीआई को संबंधित राज्य सरकार से जाँच के लिए केस-वार (विशिष्ट) सहमति लेने की आवश्यकता होती है।
  • यदि विशिष्ट सहमति प्रदान नहीं की जाती है, तो सीबीआई अधिकारियों के पास उस राज्य में प्रवेश करने पर पुलिसकर्मियों की शक्ति नहीं होगी, जिससे सीबीआई को पूरी तरह से जाँच करने से रोका जा सके।

सामान्य सहमति वापस लेना और इसका प्रभाव:

  • जब तक राज्य सरकार द्वारा विशेष रूप से जाँच वापस नहीं ली जाती, तब तक CBI पुराने मामलों की जाँच करती रहती है।
  • इसके अलावा, यह उन मामलों की जाँच करना जारी रखती है, जो इसे अदालत के आदेश द्वारा दिए गए थे।
  • सीबीआई, मामले में अपनी जाँच की प्रगति को प्रदर्शित करते हुए एक अदालत में निर्णय (सामान्य सहमति वापस लेने के) को भी चुनौती दे सकती है।
  • जब सीबीआई के पास सामान्य सहमति नहीं होती है, तो वह सर्च वारंट के लिए स्थानीय अदालत (CrPC के प्रावधान के अनुसार) से संपर्क कर सकती है और जाँच कर सकती है।

INS विक्रमादित्य

चर्चा में क्यों ?

  • हाल ही में INS विक्रमादित्य को लगभग 2 साल के बाद पुनः परिचालन में लाया गया है।

INS विक्रमादित्य के बारे में: 

  • यह भारतीय नौसेना का सबसे बड़ा विमानवाहक पोत और रूसी नौसेना के सेवामुक्त एडमिरल गोर्शकोव/बाकू से परिवर्तित युद्धपोत है।
  • यह एक संशोधित कीव-श्रेणी का विमानवाहक पोत है, जिसे 2013 में भारतीय नौसेना में शामिल किया गया था।
  • इसका नाम उज्जैन के एक शासक ‘विक्रमादित्य’ के सम्मान में रखा गया है।

विशेषताएँ: 

  • इसकी कुल लंबाई लगभग 284 मीटर है।
  • जहाज में कुल 22 डेक हैं। यह चालक दल सहित 1,600 से अधिक कर्मियों को ले जा सकता है।
  • इसकी अधिकतम गति 30 समुद्री मील से अधिक है और यह 7,000 NM की अधिकतम सीमा प्राप्त कर सकता है।
  • यह समुद्र में 45 दिन तक रह सकता है।
  • यह 08 नई पीढ़ी के स्टीम बॉयलरों द्वारा संचालित है।
  • जहाज में 30 से अधिक विमान ले जाने की क्षमता है जिसमें मिग 29के/सी हैरियर, कामोव 31, कामोव 28, सी किंग, एएलएच-ध्रुव और चेतक हेलीकॉप्टर शामिल हैं।
  • विमानवाहक पोत को कई तरह के हथियारों से लैस किया जा सकता है, जिसमें एंटी-शिप मिसाइल, विज़ुअल रेंज एयर-टू-एयर मिसाइल, गाइडेड बम और रॉकेट शामिल हैं।
  • यह पोत अत्याधुनिक लॉन्च और रिकवरी सिस्टम के साथ-साथ जहाज से उड़ान भरने वाले विमानों के सुचारू और कुशल संचालन की क्षमता से सुसज्जित है।