Nov. 11, 2022

नालंदा महाविहार

नालंदा महाविहार

स्थान –बिहार(प्राचीन मगध साम्राज्य)

सम्बन्धित - बौद्ध धर्म से और उसकी शैक्षिक परंपराओं से|

5 वीं से 12 वीं शताब्दी ईस्वी के बीच लगभग 700 वर्षों तक बौद्ध शिक्षा का एक बड़ा केंद्र रहा था|

नालंदा कांस्य-ढलाई का भी महत्वपूर्ण केंद्र था|

प्रमुख बिंदु –

  • नालंदा, एक बड़ा बौद्ध मठ था| यह मगध साम्राज्य में स्थित सार्वजनिक रूप से स्वीकृत महाविहारों में से एक था|  12वीं शताब्दी में इसे कई आक्रमणों का सामना करना पड़ा | 
  • यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त, नालंदा को 'विक्रमशिला' और 'तक्षशिला' जैसे संस्थानो की तर्ज पर भारत के शुरुआती विश्वविद्यालयों में से एक के रूप में वर्गीकृत किया गया |

स्थापना- नालंदा महाविहार की स्थापना गुप्त वंश के शासक कुमारगुप्त प्रथम ने 5वीं शताब्दी ई. में की थी। यह भारतीय उपमहाद्वीप में सबसे पहला नियोजित विश्वविद्यालय था|

  • इसे कन्नौज के राजा हर्षवर्धन (7वीं शताब्दी ईस्वी ) और पाल शासकों (8वीं से 12वीं शताब्दी ईस्वी ) के साथ-साथ विभिन्न विद्वानों सहित विभिन्न शासकों द्वारा संरक्षित किया गया था|
  • नालंदा एक पंचमुखी रूप वाले चैत्य के उद्भव और मुख्यधारा को दर्शाता है|
  • नालंदा सबसे शुरुआती और सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले असाधारण संस्थान में से एक है| इसकी शिक्षा पद्धति , प्रशासन योजना और वास्तुकला की प्रणालियों ने महाविहारों का रूप ले लिया| एशिया में नव नालंदा महाविहार, नालंदा विश्वविद्यालय, आधुनिक विश्वविद्यालय प्रतिष्ठानों के लिए प्रेरणा स्त्रोत है| 
  • नालंदा के संबंध में छठी और सातवीं शताब्दी ई. के पूर्वाद्ध की जानकारी का स्रोत-प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्ननेसांग है , वह नालंदा में तीन वर्ष रहा और एक अन्य चीनी यात्री इत्सिंग ने उसी शताब्दी के उत्तरार्द्ध में विहार में 10 वर्ष बिताए थे| इन चीनी यात्रियों के विवरणों से पता चलता है 
  • नालंदा में चीन और दक्षिण-पूर्व एशिया के भी छात्र अध्ययन के लिए आया करते थे|
  • नालंदा विश्वविद्यालय बौद्धों को दान में मिले गांवों की आय से ही चलता था| इस प्रकार शिक्षकों और छात्रों को अधिकांश सुविधाएँ गांवों की ही आय से प्राप्त होती थी|
  • नालंदा विश्वविद्यालय में अध्ययन के लिए प्रवेश पाना बेहद कठिन था| विश्वविद्यालय और अतिथिशाला (विदेशी छात्रों के रहने का स्थान), दोनों में दिनचर्या बहुत व्यवस्थित और नियमित थी| समय की जानकारी एक जल-घड़ी की सहायता से दी जाती थी। नालंदा में शिक्षकों और छात्रें की कुल संख्या दस हजार थी, जिसमें से 8500  छात्र और 1500 शिक्षक श्रेणी से थे|
  • ह्ननेसांग के समय में शीलभद्र नालंदा विश्वविद्यालय के अध्यक्ष थे|
  • नालंदा में समयानुसार ज्ञान प्राप्ति के विषय विशेष थे उनकी शिक्षा दी जाती थी|
  • ब्राहमणवादी और बौद्ध, धार्मिक और धर्मनिरपेक्ष, दार्शनिक और व्यावहारिक, विज्ञान और कला इत्यादि| किंतु नालंदा में अधिक बल 18 पंथों, वेदो और अन्य ग्रंथों हेतु विद्या, शब्द विद्या, अथर्ववेद, सांख्य और संस्कृत व्याकरण इत्यादि के साथ-साथ महायान पर बल दिया जाता था|
  • अध्ययन के समापन के बाद उपाधियां योग्यता और सामाजिक स्थिति, दोनों के आधार पर दी जाती थी| बताया जाता है कि पुस्तकालय में धर्मगंज पुस्तकालय के तीन बड़े-बड़े भवन थे, जिनके नाम - रत्नसागर, रत्नोदधि और रत्नरंजक, जिनमें से रत्नसागर नौमंजिला था, इसमें पांडुलिपियां और दुर्लभ कृतियां संग्रहित थीं, जैसे कि प्रज्ञापारमिता-सूत्र इत्यादि|
  • 1197-1203 में बख्तियार खिलजी ने नालंदा को नष्ट कर दिया था और पूरी संस्था को जला दिया था|

*****