May 26, 2023

जल्लीकट्टू

चर्चा में क्यों?

  • अलंगनल्लूर में सरकार जल्लीकट्टू के लिए एक नया अखाड़ा बना रही है। अलंगनल्लूर (Alanganallur) भारत के तमिलनाडु राज्य के मदुरई ज़िले में स्थित एक नगर है।

जल्लीकट्टू क्या है ?

  • यह तमिलनाडु के ग्रामीण इलाक़ों का एक परंपरागत खेल है जो पोंगल त्यौहार पर आयोजित कराया जाता है और जिसमें बैलों से इंसानों की लड़ाई कराई जाती है।
  • जल्लीकट्टू को तमिलनाडु के गौरव तथा संस्कृति का प्रतीक कहा जाता है। यह 2000 साल पुराना खेल है जो उनकी संस्कृति से जुड़ा है। इस प्राचीन खेल का तमिल समाज में विशेष स्थान है। कुछ स्थान गांवों के एक समूह के लिए एक केंद्र के रूप में कार्य करते हैं।
  • प्रत्येक स्थान पर खेल की अपनी विविधताएं होती हैं - मंजुविरत्तु, वेलिविराट्टु और वडामाडु। प्रत्येक संस्करण के अपने नियम और प्रक्रियाएं हैं।

पशुओं के प्रति क्रूरता की रोकथाम (तमिलनाडु संशोधन) अधिनियम, 2017

  • SC के अनुसार राज्य का संशोधन [पशुओं के प्रति क्रूरता की रोकथाम (तमिलनाडु संशोधन) अधिनियम, 2017 और पशुओं के प्रति क्रूरता की रोकथाम (जल्लीकट्टू का आयोजन) 2017 के नियम] संविधान और सर्वोच्च न्यायालय के 2014 के जल्लीकट्टू पर प्रतिबंध लगाने के निर्णय का उल्लंघन नहीं करता है।
  • जल्लीकट्टू पर 2017 का संशोधन अधिनियम और नियम संविधान की समवर्ती सूची की प्रविष्टि 17 (जानवरों के प्रति क्रूरता की रोकथाम), अनुच्छेद 51A (G) (प्रेम करने वाले जीवों के प्रति दया) के अनुरूप है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने जानवरों के प्रति क्रूरता के आधार पर भारतीय पशु कल्याण बोर्ड बनाम ए. नागराज वाद में मई, 2014 में एक निर्णय के माध्यम से जल्लीकट्टू पर प्रतिबंध लगा दिया था।
  • न्यायालय ने कहा था कि अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 48 से भी "संबंधित" नहीं था, जो "कृषि और पशुपालन को व्यवस्थित करने" के लिये राज्य के कर्त्तव्य से संबंधित है।
  • यह भी कहा गया था कि सांस्कृतिक परंपरा के नाम पर कानून का कोई भी उल्लंघन दंडनीय होगा।
  • न्यायालय ने निर्णय किया कि जल्लीकट्टू की सांस्कृतिक विरासत की स्थिति का निर्धारण राज्य की विधानसभा के लिये बेहतर है, न कि कानून के न्यायालय में।
  • अतः पशुओं के प्रति क्रूरता की रोकथाम (जल्लीकट्टू का संचालन) नियम, 2017 को बरकरार रखने वाले सुप्रीम कोर्ट के 18 मई के फैसले के बाद जाहिर तौर पर जश्न का माहौल है। जल्लीकट्टू के आयोजन को  पोंगल उत्सव के दौरान 'एरु थज़ुवुथल' के नाम से भी जाना जाता है।

अध्यादेश 

  • AIADMK सरकार ने 2017 में उस वर्ष जनवरी में चेन्नई में मरीना की रेत पर बड़े पैमाने पर जल्लीकट्टू के समर्थन में एक अध्यादेश जारी किया था, जो तमिलनाडु के अन्य हिस्सों में फैल गया था।

तमिल संगम साहित्य खेल पर वाक्पटु है। कलितटोकाई की एक कविता कहती है कि अगर एक चरवाहा लड़का एक बैल को गले लगाने से डरता है,  तो उसे एक चरवाहा लड़की अपने अगले जन्म में भी गले नहीं लगाएगी। 

  • प्रदर्शनकारियों ने केंद्र और राज्य सरकारों से जल्लीकट्टू पर सुप्रीम कोर्ट के प्रतिबंध को हटाने के लिए एक कानून बनाने का आग्रह किया। मई, 2014 में एनिमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ इंडिया बनाम ए. नागराज मामले में एक फैसले के जरिए प्रतिबंध लगाया गया था।
  • प्रदर्शनकारियों ने प्रतिबंध को तमिल संस्कृति और पहचान पर हमले के रूप में देखा, हालांकि उनमें से कई ने अपने जीवनकाल में लाइव बुल स्पोर्ट नहीं देखा होगा। इस प्रकार, जल्लीकट्टू तमिल गौरव का प्रतीक बन गया।
  • जल्लीकट्टू के लिए सरकारों ने राजनीतिक रेखाओं से ऊपर उठकर संघर्ष किया।
  • अदालत के आदेश की प्रतिक्रिया में सरकार ने अलंगनल्लूर में आने वाले नए अखाड़े में जल्लीकट्टू के आयोजन की रूपरेखा तैयार की। यह उत्साह तमिल समाज में इस प्राचीन खेल के विशेष स्थान को दर्शाता है।

एक आधुनिक दृष्टिकोण

  • किन्तु आधुनिक दुनिया का एक बिल्कुल अलग दृष्टिकोण है। दिवंगत तमिल विद्वान के. कैलासपथी ने अपनी पुस्तक वीर पोएट्री में, "मध्यकालीन और आधुनिक लेखकों के दृष्टिकोण के खिलाफ तर्क दिया है, जो इन कविताओं को निचले स्थान पर ले जाते हैं"। इन कविताओं में सांडों के लड़ाकों की शारीरिक शक्ति को अनुकरणीय माना गया है और यह ऐसी प्राचीन प्रथाओं से है, बदली हुई सामाजिक परिस्थितियों में, कहा जा सकता है कि वीरता की एक परिष्कृत अवधारणा विकसित हुई है।
  • प्राचीन तमिल समाज में, जल्लीकट्टू को 'अयार' (देहाती) तक सीमित बताया गया था। इसके बाद, अन्य समुदायों के युवा भी इस खेल के प्रति आकर्षित हुए। 20वीं शताब्दी में, इसने अपनी संकीर्ण क्षेत्रीय परिभाषाओं और जाति पदानुक्रमों को पार करना शुरू किया, जो ग्रामीण तमिल संस्कृति का प्रतीक बन गया।
  • सेनापति कंगायम कैटल रिसर्च फाउंडेशन द्वारा प्रकाशित किताब, थंडरस रन, बाउंटीफुल हार्वेस्ट: बुल स्कैप्स ऑफ तमिल जियोग्राफी जल्लीकट्टू से जुड़ी हर चीज का विस्तृत विवरण देती है। इसमें कहा गया कि स्वदेशी सांस्कृतिक प्रथाओं की गलतफहमी को औपनिवेशिक मानसिकता में खोजा जा सकता है; लेकिन, यह ध्यान रखना होगा कि भारत में ब्रिटिश साम्राज्यवाद के दौरान भी जल्लीकट्टू पर कोई प्रतिबंध नहीं था।
  • तमिल संगम साहित्य की कहानी के अनुसार किसी को वीरता सिद्ध करने के दृष्टिकोण से नहीं देखा जाना चाहिए कि कोई भी लड़की किसी व्यक्ति से सिर्फ इसलिए शादी नहीं करेगी क्योंकि उसने एक बैल को पाल लिया है।

सिंधु घाटी सभ्यता से नाता

  • आमतौर पर जल्लीकट्टू के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला कूबड़ वाला सांड वर्तमान तमिल समाज तथा  सिंधु घाटी सभ्यता के बीच एक कड़ी है।
  • कीझाड़ी [एक उत्खनन स्थल] के आधार पर कहा जा सकता है कि सिन्धु सभ्यता के लोग अखाड़े में एक बैल को वश में करते थे , इससे प्राचीन सभ्यता के एक खेल का पता चलता है।"
  • जल्लीकट्टू के समर्थन में उनका एक और तर्क यह है कि इस खेल ने लोगों को देशी नस्लों ;जैसे- कांगेयम, पुलिकुलम, उंबलाचेरी और अलमबाडी बैलों को संरक्षित करने के लिए प्रोत्साहित किया है जो तमिल भूमि के लिए अद्वितीय हैं।
  • इन बैलों को बूचड़खानों में भेज दिया जाता, तो इनकी नस्लें विलुप्त हो सकती थी। जल्लीकट्टू के कारण वर्तमान में स्थानीय जलवायु के लिए उपयुक्त सर्वोत्तम नस्लें हैं और विदेशी नस्लों का विकल्प विद्यमान है।"