July 31, 2021

सह-अस्तित्व का भारतीय मॉडल

The Hindu

Paper – 2 (International Relations)

Writer – Najmul Hoda (an IPS officer)

इज़राइल और फिलिस्तीन को अहिंसा के माध्यम से समाधान तलाशना होगा और ये भारत के अनुभव से सीख सकते हैं।

इजरायली सेना और फिलीस्तीनी जनता के बीच हिंसा का चक्र न तो पहला है और न ही इसके आखिरी होने की संभावना है। फ़िलिस्तीनी न केवल अपना जीवन और आजीविका खो रहे हैं बल्कि उस भूमि को भी खो रहे हैं जिसके लिए यह हिंसा एक सदी से अधिक समय से चल रही है। विचाराधीन क्षेत्र अब्राहमी अद्वैतवाद के तीन धर्मों की पवित्र भूमि है, अर्थात यहूदी, ईसाई और इस्लाम। कोई यहूदी या ईसाई या मुस्लिम नहीं हो सकता है जो यह इंकार कर सके कि यह इब्राहीम के वंशजों की बेनी इज़राइल शाखा की प्रॉमिस्ड लैंड (Promised Land - बाइबल में उल्लेखित प्रॉमिस्ड लैंड वह भौगोलिक क्षेत्र था जिसे परमेश्वर पिता ने अपने चुने हुए लोगों, अब्राहम के वंशजों को देने की शपथ ली थी) नहीं है। कुरान में अल-अक्सा मस्जिद सुलैमान का मंदिर है जो मुसलमानों का पहला क़िबला (प्रार्थना की दिशा) था। यरुशलम पर इस्लामी दावा केवल यहूदी और ईसाई धर्म के साथ उसके जुड़ाव के माध्यम से आता है।

एक संक्षिप्त इतिहास

1948 में ब्रिटेन ने फिलिस्तीन पर अपने जनादेश को त्याग दिया, जिससे संयुक्त राष्ट्र के लिए यहूदियों और अरबों के बीच फिलिस्तीन को विभाजित करने का मार्ग प्रशस्त हुआ और उन्हें क्रमशः 55% और 45% भूमि मिली। इस बीच, यहूदियों ने इज़राइल राज्य की स्थापना की घोषणा की जिसके लिए वे लंबे समय से काम कर रहे थे। फिलीस्तीनी, जिनके पास एक राज्य की कल्पना करने के लिए संसाधनों की कमी थी, वे आवंटित भूमि में अपना राज्य बनाने में विफल रहे। इसके बजाय, अरब देशों के एक गठबंधन ने इसराइल रूपी नवजात राज्य पर हमला किया ताकि वे इसे शुरुआत में ही खत्म कर सके। इज़राइल ने न केवल अरब सेनाओं को हराया, बल्कि फिलिस्तीनियों के लिए नकबा, एक अरबी शब्द जिसका अर्थ है प्रलय,को भी वास्तविक बना दिया। इज़राइल ने लगभग 600 फिलिस्तीनी गांवों को नष्ट कर दिया और लगभग 80% अरबों को अपने क्षेत्र से निकाल दिया।

1967 में, छह दिन चले युद्ध में, इज़राइल ने न केवल अधिकतम फिलिस्तीनी भूमि पर कब्जा कर लिया, बल्कि मिस्र के सिनाई प्रायद्वीप और सीरिया के गोलन हाइट्स पर भी कब्जा कर लिया। 1973 के योम किप्पुर युद्ध के दौरान, अरबों को पता चला कि इज़राइल यहाँ बसने के लिए आए हैं। लेकिन अरब राज्य, फिलिस्तीन से खुद को अलग रखते हुए, अपने फिलिस्तीनी भाइयों, जिनमें से एक बड़ी संख्या प्रतिहिंसा के माध्यम से समाधान खोजने के लिए प्रतिबद्ध है, को प्रभावित करने में विफल रहे हैं। गैर-अरब मुस्लिम देश, जो फिलिस्तीनियों की कोई मदद नहीं कर रहे हैं, संघर्ष के हिंसक हिस्से के सबसे बड़े समर्थक रहे हैं।

जब तक दोनों पक्षों में यथार्थवाद नहीं होगा, हिंसा का यह दुष्चक्र समाप्त नहीं होने वाला है। हमास को पता होना चाहिए कि इज़राइल, जो वर्षों से जमीन पर कब्ज़ा किए हुए है, उसे कभी नहीं छोड़ेगा और इज़राइल को यह समझना चाहिए कि फिलिस्तीनियों पर पूर्ण अधीनता, उनका निष्कासन या यहां तक ​​​​कि उनका विनाश उस क्षेत्र को कभी भी सुरक्षित नहीं बना पाएगा। दोनों पक्षों को अहिंसा के जरिए समाधान निकालना होगा। सभी हितधारकों की सामान्य मानवता पर आधारित एक समाधान, जो नस्लीय और धार्मिक मतभेदों से प्रभावित नहीं हो,की खोज की जानी चाहिए। इस मुद्दे पर चर्चा का धर्मनिरपेक्षीकरण किसी भी व्यावहारिक समाधान के लिए एक अनिवार्य शर्त होनी चाहिए। साथ ही इसे कमजोर पक्ष के लिए विशेष रूप से लागू किया जाना चाहिए।

सभी के लिए आवास

लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता का भारतीय मॉडल, जो धार्मिक, जातीय, भाषाई और अन्य विविधताओं को समायोजित करता है, पूर्व विरोधी समूहों के शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के लिए एक व्यावहारिक मॉडल हो सकता है। अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में मूल निवासियों के विनाश का यूरोपीय मॉडल, जिसे आखिरी बार नाजी जर्मनी में यहूदियों पर आजमाया गया था, एक समाधान नहीं है जिसे हम नैतिक रूप से स्वीकार कर सकें और व्यावहारिक रूप से इसका इस्तेमाल कर सकें। दूसरी ओर, भारत ने विजेताओं और पराजितों को समायोजित करने का एक अनूठा मॉडल विकसित किया।

कठोर वास्तविकताओं के आधार पर झगड़े का अंत करना होगा, जिसमें से पहला यह है कि न तो यहूदी और न ही फिलिस्तीनी पूरी तरह से ख़त्म होने वाले हैं। फ़लस्तीनी 1948 में एक राज्य बनाने से चूक गए थे और उसके बाद कई बार चूके हैं। वे अब बहुत कम संख्या में हैं, जिससे एक एकजुट राज्य अव्यावहारिक हो गया है। दो-राज्य समाधान तभी संभव हो सकता है जब इजरायल कब्जे वाले क्षेत्रों को मुक्त कर दे और वहां से यहूदी बस्तियों को हटा दे, जो निकट भविष्य में एक असंभव परिदृश्य लगता है।

यदि दो-राज्य समाधान संभव होता नहीं दिखता है, तो सिर्फ भारतीय मॉडल, यानी एक धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक और बहुलवादी राज्य ही एक स्थाई समाधान हो सकता है। फिलीस्तीनी शरणार्थियों को लौटने का अधिकार है। यह तर्क कि परिवर्तित जनसांख्यिकी इज़राइल के धार्मिक-नस्लीय चरित्र पर प्रभाव डालेगी, कहीं से उचित नहीं प्रतीत होती है, यह सभी के लिए समान अधिकारों और अवसरों के साथ सामान्य मानवता पर स्थापित एक आधुनिक लोकतांत्रिक राज्य का निर्माण करेगी। यह सच है कि एक राष्ट्र राज्य उस समूह से संबंधित होता है जिसने खुद को एक राष्ट्र के रूप में गठित किया है। इसलिए, समूह की प्रकृति राष्ट्रीय जीवन में इसे बिना बिगाड़े प्रतिबिंबित करेंगे। एक राष्ट्र एक कल्पित समुदाय है। जैसे-जैसे कल्पना का विस्तार होता है, राष्ट्र की नींव गहरी होती जाती है। इसके लिए भारत से बेहतर मॉडल कोई नहीं हो सकता। इज़राइल भारत के लिए संघर्ष समाधान का सही मॉडल पेश नहीं कर सकता है, लेकिन भारत इजरायल के लिए शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का एक मॉडल प्रस्तुत करता है।