June 19, 2023

W-20, सॉवरेन गोल्ड बॉण्ड 2023-24, ट्रांसजेनिक फसलें, भारत-यूपी रक्षा गलियारा, आर्कटिक समुद्री बर्फ

W-20 (महिला-20)

चर्चा में क्यों ?

  • हाल ही में मामल्लपुरम में W-20 समूह का अंतिम और तीसरा शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया।

W-20 (महिला- 20) क्या है?

  • W-20 (महिला- 20), G20 के तहत एक आधिकारिक सम्बद्ध समूह है जिसे 2015 में तुर्की की अध्यक्षता के दौरान स्थापित किया गया था।

उद्देश्य 

  • लैंगिक विचारों को G-20 चर्चाओं की मुख्यधारा में शामिल करना और लैंगिक समानता एवं महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण को बढ़ावा देना।
  • इसकी स्थापना का मुख्य कारण सराहनीय परिवर्तन को देखने हेतु घरेलू पहलों को एक अंतर्राष्ट्रीय रणनीति में शामिल करना है क्योंकि लैंगिक समानता की दिशा में प्रगति बहुत धीमी एवं परिधीय थी।
  • W-20 समूह की पहली बैठक औरंगाबाद में और दूसरी जयपुर में आयोजित की गयी थी।
  • W-20 समूह  में 19 देशों और यूरोपीय संघ का प्रतिनिधित्व करने वाले लगभग 100 प्रतिनिधि हैं जो पांच कार्यबलों, नीतिगत सिफारिशों तथा विज्ञप्ति के प्रारूपण पर सहयोगात्मक और तीव्रता से कार्य करते हैं।

W-20, 2023 के बारे में 

  • W-20, 2023 महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास की बाधाओं को दूर करने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है तथा महिलाओं के लिए एक सक्षम वातावरण और पारिस्थितिकी तंत्र सुनिश्चित करने की बात कही गयी।
  • W-20, 2023 का लक्ष्य एक मजबूत W-20 वैश्विक और राष्ट्रीय नेटवर्क की स्थापना करते हुए पिछली अध्यक्षता से W-20 एजेंडे की निरंतरता सुनिश्चित करना है।
  • W-20, 2023 की थीम है- “महिला-नेतृत्व विकास- रूपांतरण, विकास और आगे बढ़ना'।

भारत की अध्यक्षता के तहत W-20 के पांच प्राथमिक क्षेत्र हैं-

  • उद्यमिता में महिलाएं, जमीनी स्तर पर महिला नेतृत्व, लैंगिक डिजिटल विभाजन को कम करना, शिक्षा एवं कौशल विकास और परिवर्तन निर्माताओं के रूप में महिलाएं और लड़कियां, जलवायु अनुकूल कार्रवाई।
  • भारत, महिलाओं के विकास से महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास में तेजी से परिवर्तन की ओर बढ़ रहा है जहाँ महिलाएं देश के सतत विकास में समान भागीदार हैं। भारत, एक ऐसे समाज के पोषण के लिए प्रतिबद्ध है जहाँ सशक्त महिलाएं गरिमा के साथ रहती हैं और समान भागीदार के रूप में योगदान करती हैं।

सॉवरेन गोल्ड बॉण्ड स्कीम 2023-24

चर्चा में क्यों ?

  • हाल ही में भारत सरकार द्वारा भारतीय रिजर्व बैंक के परामर्श से सॉवरेन स्वर्ण बॉन्ड (SGB) को दो चरणों में जारी करने का निर्णय लिया गया।

सॉवरेन स्वर्ण बॉन्ड (SGB) के बारे में 

  • यह योजना सरकार द्वारा सोने की भौतिक मांग को कम करने हेतु 2015 में की गयी थी जो स्वर्ण जमा योजना (GDS), 1999 का संशोधित रूप है।
  • इसे लाने का मुख्य कारण सोने का बढ़ता आयात है क्योंकि सोने की छड़ों और सिक्कों के रूप में बड़ी मात्रा में भौतिक सोना प्रत्येक भारतीय घर में बचत के रूप में रखा जाता है।
  • सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड योजना का उद्देश्य इस भौतिक सोने का गोल्ड बॉन्ड के माध्यम से वित्तीय बचत में निवेश करना है। निवेशकों को निवेश के आरंभिक मूल्‍य पर 2.50% प्रतिवर्ष की नियत दर पर ब्याज अर्द्धवार्षिक रूप से देय होगा।
  • इन गोल्ड बांड की अवधि 8 वर्ष है जिसे ब्याज भुगतान तिथियों पर 5 वर्ष के बाद समय से पहले रद्द किया जा सकता है।
  • बैंकों, स्टॉक होल्डिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (SHCIL), निर्दिष्ट पोस्ट ऑफिस, मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज ऑफ इंडिया लिमिटेड और बंबई स्टॉक एक्सचेंज लिमिटेड के जरिए बॉन्ड्स की बिक्री की जा सकती है।
  • इसके अंतर्गत न्यूनतम अनुमेय निवेश की सीमा एक ग्राम सोना होगी। अधिकतम सीमा प्रति वित्तीय वर्ष व्यक्तियों के लिये 4 किलोग्राम, HUF के लिये 4 किलोग्राम और ट्रस्टों के लिये 20 किलोग्राम  होगी तथा धर्मार्थ संस्थाओं के लिये सरकार द्वारा समय-समय पर अधिसूचित किया जाएगा।

सॉवरेन स्वर्ण बॉन्ड  2023-24

  • सरकार वर्तमान में ऑनलाइन भुगतान करने वाले खरीदारों को 50 रुपये प्रति ग्राम की छूट और 2.5% की वार्षिक ब्याज दर की पेशकश करती है।
  • इश्यू प्राइस से 50 रुपये प्रति ग्राम की छूट की पेशकश की जाएगी। हालांकि, यह ऑफर केवल उन निवेशकों के लिए उपलब्ध है जो ऑनलाइन आवेदन करेंगे। छूट के बाद सॉवरेन गोल्ड बांड का निर्गम मूल्य 5876 रुपये प्रति ग्राम होगा।
  • भारत का कोई भी निवासी सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड में निवेश कर सकता है। इस घटना में एक निवेशक बांड खरीदने के बाद आवासीय स्थिति में परिवर्तन करता है, तब भी उसके पास प्रारंभिक परिपक्वता तक बांड हो सकता है।

भारत में ट्रांसजेनिक फसलें

 

    चर्चा में क्यों?

  • हाल ही में गुजरात, महाराष्ट्र और तेलंगाना ने एक नवीन ट्रांसजेनिक कपास बीज का परीक्षण करने के लिए जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) द्वारा अनुमोदित प्रस्ताव को खारिज कर दिया।

ट्रांसजेनिक कपास बीज के बारे में:

  • इसे हैदराबाद स्थित बायोसीड रिसर्च इंडिया के द्वारा Cry2Ai के साथ विकसित किया गया, जो इसे गुलाबी बॉलवर्म के लिए प्रतिरोधी बनाता है।
  • इस कपास की पहली पीढ़ी को अमेरिकी बॉलवर्म नामक कीट के खिलाफ विकसित किया गया था।

GEAC की सिफारिश

  • GEAC द्वारा तेलंगाना, महाराष्ट्र, गुजरात और हरियाणा में Cry2Ai बीज के प्रारंभिक सीमित परीक्षणों की माँग की गयी थी।
  • ­कृषि, राज्य सूची का विषय होने के कारण अधिकतम बीजों के परीक्षण में रुचि रखने वाली कंपनियों को विभिन्न परीक्षणों हेतु राज्यों से अनुमोदन लेने की आवश्यकता होती है।
  • हालिया GEAC को केवल हरियाणा सरकार द्वारा मंजूरी दी गयी है ।

आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों के बारे में

  • आनुवंशिक संशोधित फसल वे फसलें हैं, जिनके आनुवंशिक पदार्थ (DNA) में बदलाव किये जाते हैं, अर्थात ऐसी फसलों की उत्पत्ति इनकी बनावट में अनुवांशिकीय रूपांतरण से की जाती है।
  • इनका आनुवंशिक पदार्थ आनुवंशिक अभियांत्रिकी से तैयार किया जाता है।

लाभ 

  • आनुवंशिक परिवर्तन फसलों के उत्पादन में वृद्धि करेगा और यह आवश्यक तत्वों की मात्रा की पूर्ति कर उन्हें जलवायु अनुकूल भी बनाएगा।
  • यह फसल के रोगों को नियंत्रित करने में उपयोगी है।
  • इसमें पारंपरिक रूप से उगाए गए भोजन में पाए जाने वाले खनिजों और विटामिनों की तुलना में अधिक खनिज और विटामिन पाए जाते हैं, जो मानव आवश्यकता के लिए उपयोगी होंगे।

हानि 

  • आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलें अक्सर देशी पौधों और जानवरों को विस्थापित कर देती हैं।
  • इनके सेवन से मानव और पशुओं पर अज्ञात स्वास्थ्य प्रभाव पड़ सकते हैं।
  • प्रतिरोध: कीट और खरपतवार आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों के लिए प्रतिरोध विकसित कर सकते हैं, जिससे निपटने के लिए कीटनाशकों और शाकनाशियों की अधिक आवश्यकता होगी।
  • इसमें क्रॉस-परागण विधि पर्यावरण की नवीन प्रजातियों को नुकसान पहुँचा सकती है।
  • यह तकनीक कार्सिनोजेनिक है जो कि एक घातक तकनीक है जिसमें मृदा, रोगाणुओं, परागणकों, लगभग सभी औषधीय जड़ी बूटियों को मारती है, इस प्रकार यह फसल विविधता पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है।

भारत में ट्रांसजेनिक फसलों की स्थिति

  • भारत में कपास एकमात्र ट्रांसजेनिक फसल है जिसकी भारत में व्यावसायिक रूप से खेती की जाती है।
  • आनुवंशिक रूप से संशोधित सरसों (DMH-11) को हाल ही में GEAC द्वारा अनुमति दी गयी है जिसे भारी विरोध का सामना करना पड़ा है।

भारत-यूपी रक्षा गलियारा

चर्चा में क्यों ?

  • केंद्रीय रक्षा मंत्री के अनुसार भारत-यूपी रक्षा गलियारे में ब्रह्मोस ड्रोन का निर्माण किया जाएगा।

उत्तर प्रदेश रक्षा गलियारा

  • उत्तर प्रदेश डिफेंस इंडस्ट्रीयल कॉरिडोर (UP-DIC) एक आकांक्षी परियोजना है जो भारतीय एयरोस्पेस और रक्षा क्षेत्र की विदेशी निर्भरता को कम करने के लिए प्रतिबद्ध है।
  • इसकी घोषणा प्रधानमंत्री ने वर्ष 2018 में लखनऊ में यूपी इन्वेस्टर्स समिट के उद्घाटन के दौरान की थी।
  • इसमें 6 नोड्स होंगे- अलीगढ़, आगरा, कानपुर, चित्रकूट, झाँसी और लखनऊ।
  • इसका उद्देश्य राज्य को सबसे बड़े और उन्नत रक्षा विनिर्माण केंद्रों में से एक के रूप में स्थापित करना एवं विश्व मानचित्र पर लाना है।
  • हाल ही में केंद्रीय रक्षा मंत्री द्वारा कहा गया कि "न केवल नट और बोल्ट", बल्कि ब्रह्मोस मिसाइल, ड्रोन एवं इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणाली के निर्माण और संयोजन किया जाएगा।
  • उत्तर प्रदेश की भांति तमिलनाडु के रक्षा गलियारों के माध्यम से रक्षा निर्माण के लिए एक "सक्षम" वातावरण तैयार किया गया है।

ब्रह्मोस मिसाइल 

  • ब्रह्मोस एक कम दूरी की रैमजेट, सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है।
  • इसे पनडुब्बी से, पानी के जहाज से, विमान से या जमीन से भी छोड़ा जा सकता है।
  • रूस की NPO मशीनोस्ट्रोयेनिया (NPO Mashinostroeyenia) तथा भारत के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन ने संयुक्त रूप से इसका विकास किया है।
  • यह रूस की P-800 ओंकिस क्रूज मिसाइल की प्रौद्योगिकी पर आधारित है।

आर्कटिक समुद्री बर्फ

चर्चा में क्यों?

  • नेचर जर्नल के हालिया अध्ययन के अनुसार भविष्य में आर्कटिक समुद्री बर्फ की हानि तय है। इसे रोकने के लिए सम्पूर्ण विश्व को मिलकर काम करने की आवश्यकता है।

आर्कटिक समुद्री बर्फ का महत्व 

  • बर्फ की विशाल चादरें, आर्कटिक क्षेत्र में , वैश्विक जलवायु को और आर्कटिक समुद्र के तापमान में वृद्धि तथा गिरावट को प्रभावित करने में प्रमुख भूमिका निभाती हैं।
  • सर्दियों के दौरान, समुद्री बर्फ अधिकांश आर्कटिक महासागर को ढँक लेती है और गर्मियों में, इसका एक हिस्सा धूप की लंबी अवधि और ऊंचे तापमान के संपर्क में आने के कारण पिघल जाता है।
  • यहाँ का जलीय वातावरण यहाँ की जैव विविधता के अनुकुल है, उसमें किसी प्रकार का बदलाव जीव हानि का कारण बन सकता है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका की पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (EPA) के अनुसार - "समुद्री बर्फ हल्के रंग की होती है और इसलिए तरल पानी की तुलना में सूर्य के प्रकाश को अधिक परावर्तित करती है जो ध्रुवीय क्षेत्रों को ठंडा रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
  • समुद्री बर्फ ऊपर की ठंडी हवा और नीचे के अपेक्षाकृत गर्म पानी के बीच एक अवरोध बनाकर हवा को ठंडा रखती है। जैसे ही समुद्री बर्फ की मात्रा घटती है, आर्कटिक क्षेत्र का शीतलन प्रभाव कम हो जाता है और यह एक 'फीडबैक लूप' शुरू कर सकता है, जिससे सौर ऊर्जा के अधिक अवशोषण के कारण समुद्र के गर्म होने से समुद्री बर्फ का और भी अधिक नुकसान होता है जो वार्मिंग का कारण बनता है।
  • यह ध्रुवीय भालू और वालरस जैसे स्तनधारियों को प्रभावित कर सकती है, जो शिकार, प्रजनन और पलायन के लिए समुद्री बर्फ की उपस्थिति पर निर्भर हैं। बर्फ के आवरण में कमी स्वदेशी आर्कटिक आबादी; जैसे- यूपिक, इनुपियाट और इनुइट, की पारंपरिक निर्वाह शिकार जीवन शैली को भी प्रभावित करती है।
  • दूसरी ओर, कम बर्फ शिपिंग लेन खोलने और आर्कटिक क्षेत्र में प्राकृतिक संसाधनों तक पहुंच बढ़ाने के साथ "वाणिज्यिक और आर्थिक अवसर" पेश कर सकती है।

नेचर जर्नल  का अध्ययन 

  • जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (IPCC) की रिपोर्टों में भी आर्कटिक समुद्री बर्फ में आने वाली कमी पर चिंता दर्शाई गयी है और व्यापक रूप से उम्मीद जताई है कि दुनिया 2050 से पहले अपनी पहली 'समुद्री-बर्फ मुक्त गर्मी' देखेगी।
  • वैश्विक उत्सर्जन 2081-2100 तक आर्कटिक को बर्फ मुक्त बनाते हुए तापमान को 4.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक कर देगा।
  • पेरिस समझौते में परिकल्पित तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस या 2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए कार्बन उत्सर्जन पर पर्याप्त अंकुश लगाया गया था। परंतु नेचर जर्नल के तहत गर्मियों में आर्कटिक समुद्री बर्फ को पिघलने से बचाने का कोई उपाय नहीं है। आर्कटिक क्षेत्र में उपग्रही निगरानी इनमें प्रतिवर्ष 13% की कमी को दर्शाती है।

प्रभाव 

  • आर्कटिक क्षेत्र के गर्म होने के कारण समुद्री बर्फ के कम होने से ध्रुवीय जेट धाराएँ कमजोर हो जाती हैं, जो वायु धाराएँ होती हैं , ये गर्म और ठंडी वायुराशियों के मिलने पर बनती हैं।
  • यूरोप में बढ़ते तापमान और गर्मी की लहरों के साथ-साथ उत्तर-पश्चिम भारत में बेमौसम बारिश हो सकती है। हालिया हालात बर्फ-मुक्त गर्मी अपरिहार्य बनाते हैं।