Aug. 18, 2022

20 जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों की कथाओं पर आधारित तीसरी कॉमिक बुक जारी

चर्चा में क्यों ?

  • हाल ही में, संस्कृति मंत्रालय ने तिरंगा उत्सव समारोह के दौरान 20 जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों की कथाओं पर आधारित तीसरी कॉमिक बुक जारी की गयी।
  • इस कॉमिक बुक में उन बहादुर जनजातीय पुरुष एवं महिला स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान की कथाएं हैं, जिन्होंने ब्रिटिश राज के विरुद्ध संघर्ष के लिए अपने जनजातीय साथियों नेतृत्व किया।
  • संस्कृति मंत्रालय ने अमर चित्र कथा के सहयोग से पहली कॉमिक बुक 20 गुमनाम वीरांगनाओं पर एवं दूसरी कॉमिक बुक उन 15 महिलाओं पर आधारित है जिन्होंने संविधान सभा में भाग लिया था।

गुमनाम आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी

इस तीसरी कॉमिक बुक में शामिल भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के गुमनाम आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी हैं -

  • तिलका मांझी, जिन्होंने 1783 ई. अंग्रेजों के शासन के विरुद्ध संथाल परगना में हुए विद्रोह का नेतृत्व किया। वह पहाड़िया जनजाति से सम्बंधित थे। 1784 ई. में उन्होंने भागलपुर में अंग्रेज सेनानायक आगस्टस क्लीवलैंड को तीर से घायल कर दिया। सर आयरकूट तथा पहाड़िया सेनापति जऊराह ने इस विद्रोह का दमन किया। तिलका मांझी 1785 ई. में गिरफ्तार कर लिए गए तथा उन्हें भागलपुर में बरगद के पेड़ पर फाँसी दे दी गई।
  • थलक्कल चंथू, कुरिचियार जनजाति के सदस्य थे और इन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ पाजासी राजा के युद्ध में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। इन्हें फाँसी दे दी गई|
  • बुद्धो भगत, उरांग जनजाति के सदस्य थे। अंग्रेजों के खिलाफ इस धार्मिक नेता ने विद्रोह(1832 ई.) का बिगुल फूँका। इस विद्रोह में बुद्धो ने अपने परिवार तथा नजदीकी शिष्यों की मदद से अंग्रेजों पर हमला किया।
  • खासी समुदाय के नेतृत्वकर्ता तीरत सिंह (1830-33 ई.) को अंग्रेजों की दोहरी नीति का पता लग गया था, इसलिए उन्होंने उनके खिलाफ संघर्ष छेड़ दिया। वस्तुतः ब्रिटिश ने जयन्तिया पहाड़ी के आस-पास के क्षेत्रों को जीत लिया तथा बाद में इस स्थल पर मार्ग बनाना चाहा। इस मार्ग निर्माण में बेगारी को बढ़ावा दिया गया|खासी विद्रोह के दौरान तीरत सिंह को पकड़ लिया गया, यातना दी गई और जेल में डाल दिया गया। जेल में ही इनकी मौत हो गई।
  • राघोजी भांगरे, महादेव कोली जनजाति के थे। इन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह(1839-1850 ई. ) कर दिया और उनकी मां को कैद किए जाने के बावजूद उनका संघर्ष जारी रहा| कच्छ की सीमा से लेकर पश्चिमी घाट तक यह विद्रोह फैला| इन्हें पकड़ लिया गया और फाँसी दे दी गई।
  • सिद्धू और कान्हू मुर्मू, संथाल जनजाति के सदस्य थे, जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह(1855-56 ई. ) किया| इन्होंने हूल विद्रोह में संथाल लोगों का नेतृत्व किया| इस विद्रोह में सिद्धू तथा कान्हू के साथ उनके दो भाई चांद तथा भैरव और दो बहनें फूलो तथा झानो का भी सहयोग मिला था। इस विद्रोह के पश्चात अंग्रेजी सरकार ने 1855 ई. में 37वें रेगुलेशन के अनुसार संथाल क्षेत्र को पृथक रेग्यूलेशन जिला घोषित किया तथा इसका नाम संथाल परगना रखा। प्रशासन हेतु मांझी प्रथा को मान्यता दी गई।
  • रेन्डो मांझी और चक्र विसोई, खोंड जनजाति के थे जिन्होंने अपनी जनजाति के रिवाजों में हस्तक्षेप करने पर ब्रिटिश अधिकारियों का विरोध किया। रेन्डो को पकड़ कर फाँसी पर लटका दिया गया जबकि चक्र विसोई भाग गए और कहीं छिपे रहने के दौरान उनकी मौत हो गई। खोंड जनजाति के लोग तमिलनाडु से लेकर बंगाल एवं मध्य भारत तक फैले विस्तृत पहाड़ी क्षेत्रों में रहते थे और पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण वे वस्तुतः स्वतंत्र थे। 1837-56 तक उनके विद्रोह अंग्रेज के विरुद्ध हुए।
  • मेरठ में प्रारंभ खारवाड़ जनजाति के विद्रोह में भोगता समुदाय के नीलांबर और पीतांबर ने खुलकर भाग लिया और ब्रिटिश उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाने में अपने लोगों का नेतृत्व किया। दोनों को पकड़ लिया गया और फाँसी दे दी गई।
  • गोंड जनजाति के रामजी गोंड ने उस सामंती व्यवस्था का विरोध किया, जिसमें धनी जमींदार अंग्रेजों के साथ मिलकर गरीबों का उत्पीड़न करते थे। इन्हें भी पकड़ कर फाँसी पर चढ़ा दिया गया।
  • खरिया जनजाति के तेलंगा खरिया ने ब्रिटिश शासन एवं कर व्यवस्था को अस्वीकार कर दिया और इस बात पर अड़े रहे कि उनका जनजातीय स्वशासन का पारंपरिक तरीका जारी रखा जाए। उन्होंने ब्रिटिश के कोषागार पर संगठित हमले किए| उन्हें धोखे से पकड़ कर गोली मार दी गई।
  • मध्य प्रांत के रॉबिनहुड के नाम से प्रसिद्ध तांतिया भील ने ब्रिटिश की धन-संपत्ति ले जा रही ट्रेनों में डकैती डाली और उस संपत्ति को अपने समुदाय के लोगों के बीच बाँट दिया| उन्हें भी गिरफ्तार कर फाँसी पर चढ़ा दिया गया।
  • मणिपुर के मेजर पाउना ब्रजवासी ने अपनी मणिपुर की राजशाही की रक्षा के लिए विद्रोह किया। वह ब्रिटिश और मणिपुर के राजा के बीच हुए युद्ध के नेतृत्वकर्ता थे| वह बहुत साहस के साथ लड़े, लेकिन उन्हें पकड़ कर उनका सर धड़ से अलग कर दिया गया।
  • मुंडा जनजाति के बिरसा मुंडा  ब्रिटिश के विरुद्ध संघर्ष(1899 ई.) के महानायक थे। उन्होंने ब्रिटिश के साथ कई संघर्षों में मुंडा लोगों का नेतृत्व किया। बिरसा मुंडा द्वारा प्रारंभ किया गया आन्दोलन एक प्रकार का सामाजिक-धार्मिक एवं राजनीतिक आन्दोलन था।

उसने सोम मुण्डा को धार्मिक एवं सामाजिक आन्दोलन की जिम्मेवारी दी। इस आन्दोलन में बिरसा ने शोषण मुक्त समाज की स्थापना, मुण्डा समाज के अनुरूप एक नये धर्म की घोषणा, हिंदू धर्म के आदर्श एवं कर्मकाण्ड तथा शुद्धता तथा तपस्या का प्रचार, एकेश्वर में विश्वास, भूत प्रेत की पूजा पर रोक एवं समाज की प्रत्येक व्यक्ति में आत्म सम्मान एवं आत्म विश्वास भरने आदि पर बल दिया।

बिरसा मुंडा ने अपने राजनीतिक आन्दोलन का सेनापति दोन्का मुण्डा को बनाया। इसी आन्दोलन को उलूगन अथवा महान हलचल कहा जाता है। इस आन्दोलन में बिरसा ने निम्नांकित कार्यक्रम रखे - सरकारी नियमों की अवहेलना, सरकारी कर्मचारियों की अवज्ञा, सशस्त्र विद्राह की योजना, मालगुजारी पर रोक, जमीन पर रैयतों का कब्जा, महारानी की सत्ता को चुनौती एवं मुण्डा राज्य की स्थापना। उन्हें पकड़ कर जेल में डाल दिया गया और ब्रिटिश रिकॉर्ड के अनुसार जेल में ही हैजा से उनकी मौत हो गई| जिस समय उनकी मौत हुई वह सिर्फ 25 साल के थे।

  • अरुणाचल प्रदेश की ‘आदि जनजाति’ के मटमूर जमोह ब्रिटिश शासकों की अकड़ के खिलाफ लड़े| उनके गांव जला दिए गए जिसके बाद उन्होंने अपने साथियों के साथ अंग्रेजों के सामने हथियार डाल दिए। उन्हें सेलुलर जेल भेज दिया गया, जहाँ उनकी मौत हो गई।
  • उरांव जनजाति के ताना भगत अपने लोगों को ब्रिटिश एवं जमींदारों के शोषण के बारे में बताते थे और ऐसा माना जाता है कि उन्हें लोगों को उपदेश देने का संदेश उनके आराध्य से मिला था| 1920 के बाद उरांव विद्रोह ताना भगत आन्दोलन में परिवर्तित हो गया जिसने गांधीवादी आन्दोलन से संबंध स्थापित कर लिया। उन्हें पकड़ कर भीषण यातनाएं दी गईं। यातनाओं से जर्जर ताना भगत को जेल से रिहा तो कर दिया गया, लेकिन बाद में उनकी मौत हो गई।
  • मालती मीम, जो चाय बागान में काम करने वाले समुदाय से सम्बंधित थी, महात्मा गांधी के सत्याग्रह आंदोलन से प्रभावित हुईं तथा उसमें शामिल हो गईं। उन्होंने अफीम की खेती पर ब्रिटिश के आधिपत्य के विरुद्ध संघर्ष किया और लोगों को अफीम के नशे के खतरों के विषय में जागरूक किया। पुलिस के साथ मुठभेड़ में गोली लगने से उनकी मौत हो गई।
  • भूयां जनजाति के लक्ष्मण नायक भी गांधी जी से प्रेरित थे और उन्होंने स्वाधीनता आंदोलन में शामिल होने के लिए अपनी जनजाति के लोगों को काफी प्रेरित किया। ब्रिटिश ने उन्हें अपने ही एक मित्र की हत्या के आरोप में पकड़ कर फाँसी की सजा दे दी।
  • लेप्चा जनजाति की हेलन लेप्चा, महात्मा गांधी जी की अनुयायी थीं। अपने लोगों पर उनके प्रभाव से ब्रिटिश बहुत असहज रहते थे। उन्हें गोली मार कर घायल किया गया, कैद किया गया और प्रताड़ित किया गया लेकिन उन्होंने कभी साहस नहीं छोड़ा। 1941 में उन्होंने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की उस समय जर्मनी भागने में मदद की जब वह घर में नजरबंद थे। उन्हें स्वाधीनता संघर्ष में अतुलनीय योगदान के लिए ‘ताम्र पत्र’ से पुरस्कृत किया गया।
  • पुलिमाया देवी पोदार ने गांधीजी का भाषण तब सुना, जब वह स्कूल में थीं। वे तुरंत स्वाधीनता संघर्ष में शामिल होना चाहती थीं। अपने परिवार के कड़े विरोध के बावजूद उन्होंने अपनी पढ़ाई समाप्त करने के बाद न सिर्फ आंदोलन में हिस्सा लिया, बल्कि अन्य महिलाओं को भी इसके लिए प्रोत्साहित किया। विरोध प्रदर्शनों में भाग लेने के कारण उन्हें कैद कर लिया गया। आजादी के बाद भी उन्होंने अपने लोगों की सेवा करना जारी रखा और उन्हें ‘स्वतंत्रता सेनानी’ की उपाधि दी गई।