Sept. 7, 2022

थलाइवेटी मुनियप्पन मंदिर

चर्चा में क्यों?

हाल ही में मद्रास उच्च न्यायालय ने सलेम में बुद्ध ट्रस्ट की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए  फैसला सुनाया है कि थलाइवेटी मुन्नियप्पन मंदिर में स्थापित मूर्ति वास्तव में बुद्ध की है, न कि हिंदू देवता की।

थलाइवेटी मुन्नियप्पन मंदिर के बारे में:

  • तमिलनाडु के सलेम जिले के पेरियारी गांव में स्थित इस मंदिर में हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार स्थानीय देवता थलाइवेटी मुन्नियप्पन की पूजा की जाती है।
  • सलेम को मुनियप्पन की भूमि के रूप में जाना जाता है।
  • इसे एक ब्रिटिश द्वारा स्टेनली जलाशय के निर्माण के दौरान बनवाया गया था।
  • ‘मुनि’ शब्द का प्रयोग मौन रहने वाले एक ऋषि के लिए किया जाता है जिसके पास अलौकिक शक्तियां हों तथा ‘मुनियप्पन’ शब्द पूर्वजों की पूजा के एक प्राचीन द्रविड़ पंथ का उल्लेख करता है।
  • इस मंदिर में रक्तदान बहुत सामान्य बात है। मंदिर के केंद्र में त्रिकोणीय आकार का एक पत्थरहै  और इसके चारों ओर अनेक विशालमूर्तियाँ पायी जाती हैं।

मुख्य बिंदु :

  • एक विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट में पाया गया कि यह हिंदू मंदिर संरचना आधुनिक काल  की है जो सीमेंट, ईंटों और कंक्रीट से बनी है परंतु इसमें प्रदर्शित मूर्तिकला बुद्ध के कई महालक्षणों (महान लक्षण) को दर्शाती है।
  • कोर्ट ने हिंदू धार्मिक और दानार्थ निधि  (HR&CE) को मंदिर का कब्जा, पुरात्व विभाग को सौंपने का निर्देश दिया तथा थलाइवेटी मुनियप्पन मंदिर में उक्त प्रतिमा का निरीक्षण करने को कहा।
  • इससे पहले कोर्ट ने राज्य पुरातत्व विभाग के आयुक्त को भी मंदिर और मूर्ति का निरीक्षण करने का निर्देश दिया था कि वह एक रिपोर्ट प्रस्तुत करे कि मूर्ति थलाइवेटी मुनियप्पन की है।

मंदिर में स्थापित मूर्ति  की विशेषताएं:

  • इस रिपोर्ट में कहा गया है कि मूर्ति कठोर पत्थर से बनी है।
  • इसकी आकृति कमल की पीठ पर अर्ध-पद्मासन के रूप में बैठे जाने वाली स्थिति में है तथा हाथों को 'ध्यान मुद्रा' में रखा गया है।
  • इस मूर्ति के सिर में गांधार मूर्तिकला में निर्मित बुद्ध के समान घुंघराले बाल और लम्बे कानों के लक्षण दिखाई देते हैं।
  • इस मूर्ति का सिर धड़ से अलग हो गया था जिसे कुछ साल पहले सीमेंट और चूने के मिश्रण से चिपका दिया गया था।

गांधार शैली

  • यूनानी कला के प्रभाव में जिस नवीन मूर्तिकला शैली का उदय हुआ उसे गांधार शैली कहते है। यह  बौद्ध धर्म से संबंधित  प्रस्तर मूर्तिकला शैली है, जिसका उदय कनिष्क प्रथम के समय हुआ।
  • इसमें भूरे रंग के पत्थर या काले स्लेटी पत्थरों का इस्तेमाल होता था। इस कला का चरम विकास कुषाण काल में हुआ था।
  • गांधार कला को दो खंडों में वर्गीकृत किया जाता है— प्रारंभिक गांधार कला तथा परवर्ती गांधार कला।
  • प्रारंभिक गांधार कला के अंतर्गत मूर्तियों का निर्माण मिट्टी, चूना, भित्ति स्तंभ तथा प्लास्टर का उपयोग करके किया जाता था।
  • परवर्ती गांधार कला शैली में पाषाण का उपयोग प्रचुर मात्रा  में प्रारंभ हुआ। इस कला शैली पर विदेशी प्रभाव स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। इस दौर में गांधार कला की निम्नलिखित विशेषताएँ देखी गई हैं-
  • मानव शरीर की सुंदर रचना तथा माँसपेशियों का सूक्ष्म अंकन।
  • शरीर पर पारदर्शक वस्त्रों का सिलवटों के साथ प्रयोग।
  • गांधार कला में बुद्ध की मूर्तियों को यूनानियों के देवता अपोलो की अनुकृति बनाने का प्रयास किया गया।

इसमें बुद्ध को प्रायः घुंघराले बाल व मूँछ, ललाट पर अर्णा (भौंरी), सिर के पीछे प्रभामंडल, वस्त्र सलवट युक्त और चप्पल पहने हुए दर्शाया गया है। जिससे इस भारतीय मूर्तिकला शैली पर यूनानी और हेलेनिस्टक प्रभाव पड़ने की बात स्पष्ट होती है।

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