Aug. 8, 2022

भारत छोड़ो आन्दोलन

चर्चा में क्यों ?

आज 08 अगस्त , 2022 को भारत छोड़ो आन्दोलन की 80वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है | इसे भारतीय इतिहास में ‘अगस्त क्रांति’ के नाम से भी जाना जाता है|

भारत छोड़ो आन्दोलन के बारे में 

पृष्ठभूमि 

द्वितीय विश्व युद्ध आरंभ हो चुका था तथा ब्रिटिश की ओर से भारत की युद्ध में भागीदारी के विरुद्ध गाँधी जी द्वारा शुरू किया गया व्यक्तिगत सत्याग्रह सफल नहीं रहा और इस बीच जापानी भारत के सीमाओं के और करीब आ गए |

  • साथ ही मार्च ,1942 में क्रिप्स मिशन भारत आया , लेकिन वह संविधान सम्बन्धी गुत्थी सुलझा सके , इसके पहले ही चर्चिल ने उसे वापस बुला लिया तथा ब्रिटिश किसी भी संवैधानिक परिवर्तन का वादा न करने पर अड़े रहे | इसकी असफलता ने ब्रिटिश के विरुद्ध कांग्रेस की कार्रवाई के लिए आधार बनाया |
  • 1942 में गाँधी के रवैये में एक उल्लेखनीय परिवर्तन आया  और वे असाधारण रूप से उग्र मनः स्थिति में दिखाई देने लगे जब एक जापानी हमले की संभावना वास्तविक दिखाई देने लगी|

संघर्ष क्यों अपरिहार्य हो गया ?

  • क्रिप्स मिशन की असफलता ने संवैधानिक विकास के मुद्दे पर ब्रिटेन के अपरिवर्तित रुख को उजागर कर दिया|
  • द्वितीय विश्वयुद्ध युद्ध के कारण बढ़ती कीमतों , जरूरी वस्तुओं का अभाव, सिंचाई, नहरों और परिवहन के साधनों पर सरकार द्वारा जापानी भय से किया गया कब्जा |मलाया एवं बर्मा में भारतीयों की सुरक्षा नहीं करने आदि से उपजा असंतोष|
  • दक्षिण-पूर्व एशिया में ब्रिटेन की पराजय तथा शक्तिशाली ब्रिटेन के पतन के समाचार ने असंतोष को व्यक्त करने की इच्छाशक्ति भारतीयों में जगायी |
  • ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध भारतीय जनता में उत्पन्न निराशा के कारण जापानी आक्रमण का जनता द्वारा कोई प्रतिरोध न किए जाने की आशंका से राष्ट्रीय आन्दोलन के नेताओं को संघर्ष प्रारंभ करना अपरिहार्य लगने लगा |

अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (A.I.C.C.) की बैठक – ग्वालिया टैंक , बंबई 

  • बंबई के ग्वालिया टैंक मैदान में 8 अगस्त, 1942 को A.I.C.C. ने भारत छोड़ो प्रस्ताव में  यह तय किया कि अगर भारतवासियों को तुरंत सत्ता नहीं सौंपी जाती, तो गाँधी के मार्गदर्शन में यह लोक सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू किया जायेगा|
  • इस अवसर पर गाँधी ने अपना प्रसिद्ध ‘करो या मरो’ भाषण दिया और कहा कि यह अंतिम युद्ध एक ‘निर्णायक युद्ध’ होगा और इसलिए भारतीय या तो आजादी छीनें या उसके लिए अपनी जानें गंवाएं| यदि नेतागण गिरफ्तार कर लिए जाएं, तो अपनी कार्रवाई का रास्ता खुद तय करें|

आन्दोलन का प्रारंभ एवं प्रसार 

  • कांग्रेस की उपर्युक्त घोषणा से सरकार चौकन्नी हो गई। सरकार ने उसी रात कांग्रेस के शीर्ष नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। गांधी जी को आगा खां पैलेस में रखा गया तथा शेष नेताओं को अहमदनगर किले में बंद कर दिया गया। नेताओं की गिरफ्तारी ने जन आक्रोश की एक अभूतपूर्व एवं देशव्यापी लहर उत्पन्न कर दी, जिसे राष्ट्रवादी लेखकों ने ‘अगस्त क्रांति’ कहा|
  • भारत छोड़ो आंदोलन को मुख्य रूप से तीन चरणों में बांटा जा सकता है। इनमें से पहले चरण, जो तीव्र एवं हिंसक था, का फैलाव मुख्यतः शहरों में केन्द्रित रहा।बंबई ,कलकत्ता ,दिल्ली , पटना में अनेक हिंसक झड़पें हुईं और अनेक लोग मारे गए।
  • अगस्त के मध्य से आंदोलन ने अपने दूसरे चरण में प्रवेश किया और इस चरण में आंदोलन का केन्द्र ग्रामीण क्षेत्र हो गया। जुझारू विद्यार्थी बनारस, पटना तथा कटक जैसे केन्द्रों से गांव की तरफ फैल गए। बनारस तथा गाजीपुर में चित्तू पाण्डे के अधीन समानांतर सरकार स्थापित हुई। चित्तु पाण्डे अपने को गांधीवादी कहते थे। उनकी सरकार ने कलक्टर के सारे अधिकार छीन लिए और सभी गिरफ्तार कांग्रेसी नेताओं को रिहा कर दिया। परंतु एक सप्ताह बाद ही यहाँ पर अंग्रेजी सरकार का अधिकार हो गया।
  • बंगाल के मिदनापुर जिले के तामलुक नामक स्थान पर 17 दिसंबर,1942 को राष्ट्रीय सरकार (जातीय सरकार) की स्थापना हुई। इसका अस्तित्व सितंबर,1944 तक रहा। जातीय सरकार की स्थापना सतीश सामंत के द्वारा की गई। इसमें तामलुक क्षेत्र की 73 वर्षीय किसान विधवा  मातंगनी हजारा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।
  • सतारा (महारष्ट्र) में समानांतर सरकार सबसे दीर्घजीवी (1943 के मध्य से 1945 तक ) साबित हुई| इसे ‘प्रति सरकार’ के नाम से जाना गया| इसकी स्थापना में वाई. बी. चव्हाण तथा नाना पाटिल आदि की प्रमुख भूमिका रही|
  • भारत छोड़ो आंदोलन सितंबर के आस-पास अपने सबसे लंबे, किन्तु सबसे कम उग्र चरण में पहुंचा। इस चरण की मुख्य विशेषता थी शिक्षित युवा वर्ग का आतंकवादी गतिविधियों में भाग लेना। विशेष रूप से संचार साधन एवं पुलिस और सेना के केन्द्र इनकी कार्यवाहियों के केन्द्र में होते थे जो कभी-कभी छापामार रूप धारण कर लेता था जैसा कि उत्तरी बिहार और नेपाल की सीमा पर जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में हुआ। किसानों के अंशकालिक जत्थे दिन में खेती करते थे तथा रात को तोड़-फोड़ की कार्यवाही में भाग लेते थे। इसको ‘कर्नाटक पद्धति’ के नाम से जाना गया है।
  • देश के विभिन्न हिस्सों में भूमिगत आंदोलन का एक संगठनात्मक ढांचा भी तैयार किया गया। इसकी बागडोर अच्युत पटवर्द्धन, अरूणा आसफ अली, राम मनोहर लोहिया, सुचेता कृपलानी, छोटू भाई पुराणिक, बीजू पटनायक, आर. पी. गोयनका तथा जयप्रकाश नारायण जैसे नेताओं के हाथों में थी। उषा मेहता ने बंबई में भूमिगत रेडियो का संचालन किया|
  • भारत छोड़ो आन्दोलन में जनता की भागीदारी कई स्तरों पर थी| इसमें युवक, महिलाओं,किसानों, प्रशासन एवं पुलिस के निचले तबके से सम्बद्ध सरकारी अधिकारियों ने अभूतपूर्व भूमिका निभाई|
  • भारत छोड़ो आंदोलन में मुस्लिमों की भागीदारी कम रही, लेकिन मुस्लिम लीग के समर्थकों ने भी मुखबरी नहीं की, बल्कि जरूरत पड़ने पर भूमिगत कार्यकर्ताओं को प्रश्रय प्रदान किया।
  • यद्यपि कम्युनिस्ट पार्टी ने इस आन्दोलन का बहिष्कार किया था, तथापि स्थानीय स्तरों पर सैंकड़ों कम्युनिस्टों ने इसमें भागीदारी की।

सरकारी दमन 

  • आन्दोलनकारियों के विरुद्ध सरकार ने दमन की नीति का सहारा लिया| सेना ने कई शहरों को अपने नियन्त्रण में ले लिया, विद्रोही गाँवों पर भारी जुर्माने लगाये गए तथा लोगों को सार्वजनिक रूप से प्रताड़ित किया गया|

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