Oct. 20, 2022

मार्तंड सूर्य मंदिर

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में जम्मू-कश्मीर राज्य के अनंतनाग में 8वीं शताब्दी के मार्तंड सूर्य मंदिर के खंडहर में एक धार्मिक समारोह का आयोजन किया गया जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के तहत एक संरक्षित स्मारक है।

मार्तंड सूर्य मंदिर के समारोह परिसर में जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा का बिना किसी पूर्व सूचना के शामिल होने पर विवाद छिड़ गया है, एएसआई ने इसे नियमों का उल्लंघन बताया है।

मार्तंड मंदिर के बारे में:

  • यह भारत के सबसे पुराने सूर्य मंदिरों में से एक है जो अमूल्य प्राचीन आध्यात्मिक विरासत का प्रतीक है।
  • यह एक हिंदू मंदिर है जो भगवान सूर्य (हिंदू धर्म में प्रमुख सौर देवता) को समर्पित है।भगवान सूर्य का संस्कृत में मार्तंड भी कहा जाता है। यह कश्मीरी पंडितों के लिए सबसे पवित्र मंदिरों में से एक है।
  • 8वीं शताब्दी ईस्वी में कार्कोट वंश के शासक ललितादित्य मुक्तापीड द्वारा निर्मित यह मंदिर कश्मीरी वास्तुकला का एक उत्कृष्ट नमूना है।
  • मार्तंड सूर्य मंदिर को ‘पांडौ लैदान’ के नाम से भी जाना जाता है।
  • 14वीं शताब्दी ईस्वी में सिकंदर शाह मीरी द्वारा इस मंदिर को नष्ट कर दिया गया। इसके  भग्नावशेष को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा "राष्ट्रीय महत्व का स्थल" के रूप में चिह्नित किया गया है।

कार्कोट राजवंश 

  • कल्हण की 'राजतरंगिणी' के अनुसार कार्कोट वंश की स्थापना दुर्लभवर्द्धन ने 625 ई. में की थी। वह कन्नौज के शासक हर्षवर्द्धन के समकालीन था। इसी समय चीनी यात्री ह्वेनसांग ने कश्मीर की यात्रा की थी। दुर्लभवर्द्धन ने कश्मीर में रखे बुद्ध के दांतों को हर्षवर्द्धन को भेंट किया था।
  • आगे दुर्लभवर्द्धन का उत्तराधिकारी दुर्लभक हुआ जिसने प्रतापादित्य की उपाधि ग्रहण की और प्रतापपुर नामक नगर की स्थापना की। उसके बाद क्रमशः चंद्रापीड (वज्रादित्य), तारापीड (उदयादित्य) तथा मुक्तापीड (ललितादित्य) शासक बने।
  • कार्कोट वंश के शासक वैष्णव थे और उन्होंने कई विष्णु मंदिरों का निर्माण करवाया।
  • इसके अलावा अनेक स्तूप, चैत्य और विहार के साक्ष्य कार्कोट वंश द्वारा बौद्ध धर्म के संरक्षण की ओर संकेत करते हैं।

ललितादित्य मुक्तापीड 

  •  ललितादित्य कश्मीर के कार्कोट वंश का सबसे शक्तिशाली शासक था। कल्हण की 'राजतरंगिणी' में ललितादित्य को विश्व विजेता के रूप में चित्रित किया गया है।
  • ललितादित्य ने श्रीनगर के पास परिहासपुर नामक नगर की स्थापना की जिसमें विष्णु, शिव और बुद्ध को समर्पित कई मंदिर थे।
  • उसने कन्नौज नरेश यशोवर्मन के साथ मिलकर तिब्बतियों को हराया तथा 733 ई. में चीन में दूतमंडल भेजा था।
  • उसने पूर्वी प्रदेश का अभियान करते हुए गौड़ देश के 5 सरदारों को पराजित किया। अभियान से वापस लौटते समय उसने कन्नौज के यशोवर्मन को भी पराजित क्र कन्नौज पर अधिकार कर लिया था।
  • वह  यशोवर्मन के दरबारी कवि वाक्पति एवं भवभूति को कश्मीर ले आया।