Aug. 3, 2022

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में 1 अगस्त को लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की 102वीं पुण्यतिथि पर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की |

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के बारे में  

जन्म

उनका जन्म 23 जुलाई, 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी में हुआ था।

शिक्षा  

  • उन्होंने 1877 में पुणे के डेक्कन कॉलेज से गणित में स्नातक की डिग्री पूरी की और 1879 में गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से एल.एल.बी. की डिग्री प्राप्त की।
  • तिलक ने हिंदू धर्मग्रंथों का विस्तृत अध्ययन किया , साथ ही वे तत्वमीमांसा और राजनीति के पश्चिमी विचारों से भी प्रभावित थे।

जीवन  

  • वह एक स्वतंत्रता सेनानी, सामाजिक विचारक, दार्शनिक, शिक्षक, स्वराज (‘स्व-शासन’) की सबसे पहले मांग करने वाले नेताओं में से एक थे | इन्होंने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
  • उन्हें "लोकमान्य" की उपाधि से सम्मानित किया गया, जिसका अर्थ है "लोगों द्वारा स्वीकार किया गया ( नेता के रूप में)" और महात्मा गांधी ने उन्हें "आधुनिक भारत का निर्माता" कहा।

मृत्यु  

उनकी मृत्यु 1 अगस्त , 1920 को मुंबई में हुई थी |  

महत्वपूर्ण योगदान:

राजनीतिक योगदान:

  • 1890 में, तिलक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए।
  • वह कांग्रेस की गरमपंथी विचारधारा से सम्बंधित थे | उन्होंने ब्रिटिश के विरुद्ध इस बात का विरोध किया कि एक विदेशी सरकार जनता के निजी और व्यक्तिगत जीवन में हस्तक्षेप करे। 1891 ई. के विवाह की न्यूनतम आयु को बढ़ाने वाले विधेयक का उन्होंने इसी आधार पर विरोध किया। साथ ही उन्होंने 1881 के प्रथम फैक्ट्री एक्ट का भी विरोध किया।
  • उन्होंने सन 1893 में गणपति महोत्सव प्रारंभ किया तथा 15 अप्रैल,  1896 को प्रथम बार शिवाजी उत्सव का आयोजन किया । 4 नवंबर, 1896 को दक्षिण सभा की स्थापना से महाराष्ट्र में नरम दल तथा गरम दल का पूरी तरह अलगाव हो गया।
  • तिलक ने सन 1895 ई. में कांग्रेस के पण्डाल में महादेव गोविन्द राणाडे को नेशनल सोशल कान्फ्रेंस नहीं करने दी |

लाल-बाल-पाल और स्वदेशी आंदोलन

  • 1900 और 1908 के बीच की अवधि के दौरान भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का   राजनीतिक स्वरुप महत्वपूर्ण रूप से बदल गया।
  • लाल-बाल-पाल के नाम से लोकप्रिय लाला लाजपत राय, बिपिन चंद्र पाल और बाल गंगाधर तिलक के नेतृत्व में स्वदेशी आंदोलन का पूरे देश में तीव्रता से प्रसार हुआ।
  • इन तीनों ने बंगाल विभाजन के खिलाफ भारतीयों को भी एकजुट किया।
  • इस अवधि के दौरान तीनों ने स्वदेशी आंदोलन और विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का प्रस्ताव रखा।
  • पहली बार औपचारिक रूप में स्वराज की मांग कलकत्ता (1906 में) अधिवेशन में उठायी गई।
  • 1907 ई. में अगला अधिवेशन नागपुर में होना था किंतु नागपुर में तिलक गुट का पलड़ा भारी हो सकता था। इसलिए अंतिम समय में इसका स्थान बदलकर सूरत रखा गया। सूरत के विभाजन का तात्कालिक कारण अध्यक्षों के चुनाव का मुद्दा था। उग्रवादी अपना अध्यक्ष निर्वाचित करना चाहते थे जबकि उदारवादी इसका विरोध करते थे।
  • उग्रवादी, स्वदेशी, स्वराज, बहिष्कार, और राष्ट्रीय शिक्षा के चारों प्रस्तावों पर गारंटी चाहते थे जबकि उदारवादी गारंटी देने को तैयार नहीं थे। उदारवादियों ने रासबिहारी घोष को अध्यक्ष चुना। उग्रवादियों ने इस पर विरोध प्रकट किया। इसके परिणामस्वरूप कांग्रेस का विभाजन हो गया और उग्रवादी कांग्रेस से बाहर हो गए।
  • लोकमान्य तिलक ने पूरे देश में विशेषकर बंबई तथा पुणे में इस आंदोलन को लोकप्रिय बनाया। उनके मराठा तथा केसरी समाचार पत्रों ने जनजागरण में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

गिरफ़्तारी  

तिलक को 1908 में राजद्रोह के आरोप में ब्रिटिश ने गिरफ्तार कर लिया और मांडले (बर्मा) में छह साल के कारावास की सजा सुनाई।

होमरूल आंदोलन:

  • बर्मा से लौटने के बाद, तिलक होमरूल आंदोलन में शामिल हो गए और ऐनी बेसेंट की होमरूल लीग में जुड़ गए।
  • तिलक ने अप्रैल ,1916 में बेलगांव में हुए प्रांतीय सम्मेलन में होमरूल लीग के गठन की घोषणा कर दी। इसके अध्यक्ष जोसेफ बैप्टिस्ट थे |
  • तिलक के लीग की जिम्मेदारी कर्नाटक, महाराष्ट्र (मुंबई छोड़कर), मध्य प्रांत तथा बरार में निर्धारित किया गया ,जबकि देश के शेष भाग में बेसेंट की लीग का कार्य क्षेत्र निर्धारित किया गया ।
  • तिलक की लीग पर किये गए मुकदमे की पैरवी मुहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में की गई। तिलक के साथ एन.सी.केलकर भी शामिल थे।
  • लखनऊ के कांग्रेस अधिवेशन में तिलक को वापस कांग्रेस में अधिकारिक रूप से शामिल कर लिया गया। इस सम्मेलन की अध्यक्षता अंबिका चरण मजूमदार ने की थी ।
  • 1918 में, उन्होंने होमरूल आंदोलन को लोकप्रिय बनाने के लिए इंग्लैंड का दौरा किया।
  • होमरूल लीग की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि उसने भावी गांधीवादी कार्यक्रमों की आधारशिला रखी तथा भावी राष्ट्रीय आन्दोलन के लिये जुझारू योद्धा तैयार किये।

शैक्षणिक संस्थान  

अपने स्नातक स्तर की शिक्षा के बाद, तिलक ने अपने मित्रों जी.जी. अगरकर, एम.ए. चिपलूणकर और महादेव बी. नामजोशी के साथ 1880 में पुणे में ‘न्यू इंग्लिश स्कूल’ की स्थापना की  तथा 1884 में डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी और 1885 में फर्ग्यूसन कॉलेज की स्थापना की।

साहित्यक कृतियाँ  

  • उन्होंने दो साप्ताहिक पत्रिकाएं, केसरी (मराठी में) और मराठा (अंग्रेजी में) का प्रकाशन किया  जिसमें तत्कालीन ब्रिटिश नीतियों की आलोचना की गई थी।
  • उन्होंने 1903 में वेदों पर ‘द आर्कटिक होम ऑफ़ वेदाज’ (the arctic home of vedas) नामक पुस्तक लिखी |  
  • इसके अतिरिक्त मांडले जेल में, उन्होंने अपनी प्रसिद्ध रचना ‘ श्रीमद्भगवद्गीता रहस्य’ लिखी।

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