Oct. 12, 2023

इजरायल और फिलिस्तीन विवाद

इस लेख में.....

  • हालिया संदर्भ 
  • ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
  • समस्या क्या है?
  • बाल्फोर डिक्लेरेशन
  • अरब-इजरायल युद्ध 1948-49
  • अरब-इजरायल युद्ध 1967
  • कैंप डेविड समझौता-1978
  • ओस्लो समझौता 1993 (द्वि-राष्ट्र सिद्धांत)
  • ताबा शिखर सम्मेलन 2001
  • अब्राहम समझौता 2020
  • हमास और फतह 
  • उद्देश्य
  • निष्कर्ष

हालिया संदर्भ

इजरायली सेना की गिनती दुनिया की सबसे ताकतवर सेनाओं में होती है और उसके पास दुनिया की सबसे जबरदस्त ख़ुफ़िया एजेंसी मोसाद है। लेकिन इसके बाद भी आतंकवादी संगठन हमास, इजरायल पर हमला करने में सफल हो गया। योम किप्पुर युद्ध के ठीक 50 साल 1 दिन बाद ये हमला उसी तर्ज पर किया गया, इस हमले के बाद इजरायल ने भी जबरदस्त पलटवार किया है और युद्ध की घोषणा कर दी है। दोनों तरफ से युद्ध प्रारंभ हो चुका है और इजरायल-फिलिस्तीन मुद्दा एक बार फिर चर्चा में है। 

कुछ राजनीतिक विद्वानों का मानना है की अरब देशों और इजराइल के बीच बढ़ते संबंधों को बिगाड़ने के लिए या यह उम्मीद करके की अमेरिका सहित पश्चिमी देश रूस-यूक्रेन युद्ध में व्यस्त है और हथियारों की कमी का सामना कर रहे हैं, हमास आतंकियों ने हमले किये होंगे। हिजबुल्ला भी लेबनान से लगातार हमले कर रहा है । ईरान-चीन पर पश्चिम के बढ़ते दबाव को देखते हुए ये भी कहा जा रहा है कि इन्हीं देशों की मदद से हमास ने इजराइल पर हमले किये हैं।  इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा है कि हमास इस हमले की ‘ऐसी कीमत चुकाएगा, जैसा उसने सोचा भी नहीं होगा।’

  • इजराइल और फिलिस्तीन के बीच विवाद क्या है? 
  • हमास और फतह क्या हैं? 
  • पीएलओ क्या है? 
  • ओस्लो समझौता क्या है? 
  • इंतिफादा (वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी पर इजरायल के कब्जे के खिलाफ फिलिस्तीनी विद्रोह) क्या है? 
  • दो राज्य समाधान क्या है? 

इस लेख में हम इन मुद्दों पर चर्चा करेंगे।

ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

  • हजरत अब्राहम सबसे पहले पैगंबर हैं। इन्हीं के धार्मिक विचारों को मूसा (यहूदियों के पैगंबर/किताब-तोरा), ईसा (ईसाईयों के पैगंबर/किताब-बाइबिल) और मोहम्मद (इस्लाम के पैगंबर/किताब-कुरआन) ने अपने-अपने दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ाया। 
  • अब्राहम के वंश में इजराइल का जन्म हुआ, जो उनके पोते थे। इन्होनें 12 कबीलों को मिलाकर इजराइल कबीले का गठन किया। इजराइल के एक बेटे का नाम यहूदा था, जिनकी वजह से धर्म को यहूदी नाम मिला। 
  • ईसा से करीब 1 हजार साल पूर्व किंग सोलोमन हुए, जो इस्लाम में सुलेमान कहलाये। सोलोमन ने यहूदियों का पहला टैंपल यरुशलम में बनवाया, जहां भगवान यहोवा की पूजा होती थी। 
  • ईसा पूर्व 931 में इजराइल में सिविल वॉर हुआ और ये दो भागों में बंट गया। इजराइल के बंटवारे के बाद, वहां बेबीलोन साम्राज्य का कब्जा हुआ। यहूदियों के मंदिर को गिरा दिया गया,  कुछ समय बाद इसे यहूदियों ने फिर बनाया। 
  • ईसा पूर्व साल 332 में इजराइल पर सिकंदर ने कदम रखे और अपनी मौत तक वो वहां का शासक बना रहा। ईसा पूर्व 63 में इजराइल पर रोमन साम्राज्य का अधिकार हुआ, इसी दौर में यरुशलम की उस जमीन पर, जहां आज अल-अक्सा मस्जिद है, ईसा मसीह का जन्म हुआ।
  • ईसा मसीह एक यहूदी थे लेकिन जब उन्होंने अपने धर्म का प्रचार किया तो रोमन शासकों और यहूदी दोनों को पसंद नहीं आया।  ईसा ने खुद को परमेश्वर का पुत्र कहा और ईसाई धर्म की नींव रखी। ऐसा आरोप है कि यहूदियों ने ही रोमन गवर्नर को भड़काया और ईसा मसीह की शिकायत कर दी, जिससे उन्हें सूली पर लटकाया गया। हालांकि पोप बेनेडिक्ट 16वें ने ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाने के आरोप से यहूदियों को मुक्त कर माफ़ी दे दिया। 
  • यहूदियों ने इजराइल पर राज कर रहे रोमन साम्राज्य के खिलाफ बगावत कर दी और बदले में रोमन सेनाओं ने यरुशलम ने कब्ज़ा कर लिया। नरसंहार का पैमाना अभूतपूर्व था। 
  • अगले 500 साल तक केवल ईसाई ही यहूदियों के दुश्मन रहे लेकिन ईस्वी 570 में मक्का में हजरत मोहम्मद साहब का जन्म हुआ। ईस्वी 622 में वे मक्का से मदीना गए, जिसे इस्लाम में हिजरत कहा जाता है। मदीना में तब अरबी कबीलों के अलावा ज्यादा आबादी यहूदियों की थी। यहां पर यहूदियों के साथ संधि हुई और यह तय हुआ कि जब मक्के से हजरत मोहम्मद पर हमला होगा तो मुसलमान और यहूदी मिलकर उनका मुकाबला करेंगे। हालाँकि बाद में आपसी विश्वास की कमी ने धोखे को जन्म दिया और यहीं से यहूदियों और इस्लाम के बीच अविश्वास और दुश्मनी की नींव पड़ी, जो आज भी बदस्तूर जारी है। 
  • खलीफा उमर के दौर में मुसलमानों और यहूदियों ने सातवीं शताब्दी में स्पेन को फतह किया। साल 1271 तक यूरोप के ईसाइयों ने धार्मिक युद्ध छेड़ दिया। वह पवित्र भूमि यरुशलम, जहां ईसा का जन्म हुआ था (ईसाइयों के मुताबिक क्रुसिफिकेशन, रेससुरेक्शन और लास्ट सपर जेरूसलम में हुआ था) उसे मुसलमानों और यहूदियों से छीनने के लिए युद्ध करने लगे। स्पेन से मुसलमान और यहूदियों को बाहर निकलना पड़ा और ये दुनिया के अलग हिस्सों में फैले या फिर हजारों की संख्या में इजराइल लौटे और बस्तियां बसानी शुरू कर दी। 
  • फर्स्ट वर्ल्ड वॉर और सेकंड वर्ल्ड वॉर के बीच का समय यहूदी इतिहास का सबसे काला अध्याय साबित हुआ।  करीब 60 लाख यहूदियों को हिटलर ने गैस चैंबर में मरवा दिया, इस दौरान जर्मनी समेत यूरोप के बहुत से हिस्सों से यहूदी, अमेरिका और इजराइल पहुँचे। संयुक्त राष्ट्र की आगुवाई में तय किया गया कि अब यहूदियों को उनका एक संप्रभु देश दे देना चाहिए और इस तरह वर्ष 1948 में उस भूमि का बंटवारा हो गया, वो आज भी यरुशलम को अपना सबसे पवित्र स्थान मानते हैं, यहीं पर टेंपल माउंट और अल-अक्सा मस्जिद भी स्थित है।

समस्या क्या है?

  • यह मुद्दा उस पवित्र भूमि से संबंधित है, जिस पर यहूदियों द्वारा अपना दावा किया जाता रहा है। फिलिस्तीनी जनता ‘आत्मनिर्णय’ की मांग कर रही है। यह 1000 साल पुराना मुद्दा है, जिसकी शाखाएँ प्रथम विश्व युद्ध में निहित हैं, जिसके तहत ओटोमन साम्राज्य को ब्रिटेन और उसके सहयोगियों द्वारा हराया गया था। तुर्की (अब तुर्किये) को खंडित कर तुर्क साम्राज्य के क्षेत्रों को ब्रिटेन, फ्रांस और अन्य सहयोगियों के बीच विभाजित कर दिया गया था। 
  • वर्ष 1916 के साइक्स-पिकॉट गुप्त समझौते के अंतर्गत लेबनान और सीरियाई क्षेत्र फ्रांस को मिले तथा फिलिस्तीन और इराक अंग्रेजों को दे दिया गया। यह उस समस्या की शुरुआत है, जो पश्चिम एशिया के राजनीतिक मानचित्र को हमेशा के लिए बदलने वाले एक विवाद को जन्म दे रहा था, जिसका सामना लोग अभी भी कर रहे हैं।
  • इस आपसी गुप्त समझौते के लगभग एक साल बाद नवंबर 1917 में, ब्रिटेन द्वारा एक प्रसिद्ध ‘बाल्फोर घोषणा’ जारी की गई, जिसमें फिलिस्तीन में यहूदी लोगों को बसाने के लिए ब्रिटिश सरकार की प्रतिबद्धता के बारे में बात की गई थी। यह समय पश्चिम एशियाई राजनीति को हिला देने वाला था। इसने गैर-यहूदी लोगों के नागरिक और धार्मिक अधिकारों के बारे में बात करने के अलावा अन्य किसी भी स्थानीय निवासियों से बात नहीं की और उन लोगों से भी बात नहीं की, जो हजारों सालों से फिलिस्तीन में रह रहे थे। 
  • फिलिस्तीन लगभग 400 वर्षों से तत्कालीन तुर्क साम्राज्य का हिस्सा रहा था। वर्ष 1920 और 1930 के दशक के दौरान बड़े पैमाने पर यहाँ यहूदियों का आगमन हुआ। 
  • जर्मनों द्वारा यहूदियों पर किए गए अत्याचारों के कारण लाखों का नरसंहार हुआ था। यहूदियों द्वारा वर्ष 1897 में ‘जियोनिष्ट मातृभूमि’ आंदोलन के विचार की शुरूआत हुई, जो आगे चलकर फिलिस्तीन में यहूदी पैतृक भूमि आंदोलन को लोकप्रिय बनाने के लिए विश्व जियोनिष्ट संगठन के रूप में परिणित हुआ। फ़िलिस्तीनियों से भूमि को छीने जाने के परिणामस्वरूप वर्ष 1936 में पहला इंतिफ़ादा हुआ है। इंतिफ़ादा शब्द का अर्थ है एक अतिवादी किस्म का विद्रोह।
  • वर्ष 1937 में PEEL COMMISSION की नियुक्ति की गई, जिसने फिलिस्तीन को दो राज्यों / राष्ट्रों में विभाजन की वकालत की, जिसे फिलिस्तीनियों ने सिरे से खारिज कर दिया और इस विद्रोह को ब्रिटिशों द्वारा वर्ष 1939 में दबा दिया गया। वर्ष 1947 में ब्रिटेन ने यूएनओ के समक्ष इस मुद्दे को उठाया, जिसने फिलिस्तीन को 2 देशों में विभाजित करने के लिए मतदान किया, जिसमें यरूशलम एक अंतरराष्ट्रीय शहर बन गया। इज़राइल ने इसे स्वीकार कर लिया और वर्ष 1948 में अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी।
  • इसके परिणामस्वरूप पड़ोसी अरब देशों ने मिलकर इजरायल के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी। इजराइल राज्य के निर्माण की घोषणा का फिलिस्तीनियों ने विरोध किया और युद्ध का ऐलान किया। अल-नकबा या ताबाही कहे जाने वाले इस युद्ध में हजारों फिलिस्तीनी निर्वासित हो गए। अगले वर्ष युद्धविराम होने तक, इजराइल ने अधिकांश क्षेत्र अपने अधिकार में ले लिया। 
  • यरुशलम पश्चिम में इजरायली बलों और पूर्व में जॉर्डन की सेनाओं के बीच विभाजित था क्योंकि कभी शांति समझौता नहीं हुआ था, प्रत्येक पक्ष ने एक-दूसरे पर आरोप लगाया, इसके बाद के दशकों में और युद्ध तथा झड़पें हुई। इजराइल विजयी हुआ और लगभग 7 लाख फिलिस्तीनी विस्थापित हुए, जिसके परिणामस्वरूप वहाँ शरणार्थी संकट पैदा हो गया, जो विभिन्न अरब और यहां तक कि इजरायल के सीमा शिविरों में बस गए। इसके परिणामस्वरूप वर्ष 1964 में फिलिस्तीन को इजरायल से अलग कराने के लिए फिलिस्तीन मुक्ति संगठन का गठन किया गया।

बाल्फोर डिक्लेरेशन

  • वर्ष 1917 में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान जब ओटोमन साम्राज्य हार की कगार पर था, उस समय ब्रिटेन के विदेश मंत्री सर आर्थर बाल्फोर ने एक डिक्लेरेशन जारी किया। इस डिक्लेरेशन में यह इंगित किया गया कि ब्रिटेन, यहूदियों को उनकी पवित्र भूमि फिलिस्तीन देगा और वहां उनका पुनर्वास करवाएगा। 
  • वहीं दूसरी ओर ब्रिटन ने चुपके से फ्रांस और रूस के साथ एक एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किया। इसके अंतर्गत उसने पूरे मध्य पूर्व को अलग-अलग हिस्सों में बांट दिया और तय किया कि प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद कौन सा देश किस के हिस्से में जाएगा। इसमें उसने फिलिस्तीन को अपने हिस्से में रखा।
  • सीरिया और जॉर्डन फ्रांस को दे दिया गया। तुर्की का कुछ हिस्सा रूस के पास गया। एक तरफ ब्रिटेन ने सामूहिक तौर पर यह कहा कि फिलिस्तीन हम यहूदियों को देंगे। वहीं दूसरी ओर उसने गुपचुप तरीके से एग्रीमेंट के तहत यह हिस्सा अपने पास रख लिया।

अरब इजरायल युद्ध 1948-49

यूएन के इस फैसले के बाद नवनिर्मित इजरायल के पड़ोसी देशों (मिस्र, सीरिया, इराक और जॉर्डन) ने उस पर हमला कर  दिया। इस युद्ध में इजरायल ने अपना बचाव करते हुए इन सभी देशों को हरा दिया। इस लड़ाई के बाद जॉर्डन के पास फिलिस्तीन के पूरे वेस्ट बैंक का नियंत्रण आ गया। वहीं गाजा पट्टी फिलिस्तीन के पास रही। युद्ध में इजरायल ने फिलिस्तीन के पचास फीसदी हिस्सों पर कब्जा कर लिया था।

अरब-इजरायल युद्ध 1967

  • 1967 में एक और अरब इजराइल युद्ध शुरू हुआ। मिस्र, जॉर्डन और सीरिया ने इजराइल पर हमले किए और इजराइल ने केवल 6 दिनों में अरब शक्तियों को एक साथ हराकर जीत दर्ज किया। युद्ध के बाद इजराइल ने जॉर्डन से पश्चिमी तट और पूर्वी यरुशलम तथा गाजा पट्टी और मिस्र से सिनाई प्रायद्वीप और सीरिया से गोलन हाइट्स लेकर अपने हिस्से में मिला लिया। 
  • यूएनओ चार्टर के अनुसार, इजराइल से कब्जा किए गए क्षेत्रों को वापस करने के लिए कहा गया लेकिन इजराइल ने ऐसा करने से मना कर दिया, उसके बाद वर्ष 1973 में एक और अरब-इजराइल युद्ध हुआ, जिसे ‘योम किप्पुर युद्ध’ भी कहा जाता है। इसके बाद, वर्ष 1979 में मिस्र और इजराइल के बीच एक शांति संधि पर हस्ताक्षर हुआ और मिस्र आधिकारिक तौर पर इजराइल को मान्यता देने वाला पहला अरब राज्य बन गया। सिनाई प्रायद्वीप मिस्र को वापस दे दिया गया।

कैंप डेविड समझौता-1978

कैंप डेविड समझौता मिस्र के राष्ट्रपति अनवर सादात और इजरायल के प्रधान मंत्री मेनाचेम बेगीन द्वारा हस्ताक्षरित समझौतों की एक शृंखला थी, कैंप डेविड में लगभग दो सप्ताह की ऐतिहासिक गुप्त वार्ता के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति जिमी कार्टर दोनों पक्षों को साथ लाए और 17 सितंबर, 1978 को समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। इस ऐतिहासिक समझौते ने इजराइल और मिस्र के बीच संबंधों को स्थिर कर दिया। मिस्र और इजराइल दोनों अधिकृत क्षेत्रों से इजरायली सेना की वापसी पर सहमत हुए और मिस्र इजरायल को मान्यता देने वाला पहला अरब राज्य बन गया। इजराइल सिनाई प्रायद्वीप से पीछे हट गया।

ओस्लो समझौता 1993 (द्वि-राष्ट्र सिद्धांत)

  • इजरायल का फिलिस्तीन पर पूरा नियंत्रण हो चुका था। इसी कड़ी में यासिर अराफात ने एक संगठन की शुरूआत की, जिसका नाम फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (PLO) था। इस संगठन ने विदेशों में स्थापित इजरायली एम्बेसी पर हमला किया। इजरायल के कई विमान हाईजैक किए गए। 
  • दोनों देशों के बीच शांति स्थापित करने के लिए वर्ष 1993 में ओस्लो एकॉर्ड समझौता हुआ। इसमें यह निर्णय लिया गया कि फिलिस्तीन, इजरायल को एक संप्रभु देश के रूप में स्वीकार करेगा। वहीं दूसरी ओर इजरायल ने पीएलओ को फिलिस्तीनी लोगों का प्रतिनिधि माना। इस समझौते में यह भी निर्णय लिया गया कि फिलिस्तीन सरकार वेस्ट बैंक और गाजा स्ट्रिप को लोकतांत्रिक ढंग से नियंत्रित करेगी। इस समझौते के लिए इजरायल के प्रधानमंत्री स्टाक राबेन और फिलिस्तीन के यासिर अराफात को शांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया था।
  • 1970 और 1980 में जॉर्डन और लेबनान से बाहर धकेल दिए जाने के बाद, इस आंदोलन में एक मौलिक परिवर्तन आया, जिसमें इजराइल  के साथ बातचीत करने का विकल्प चुना गया। अरबों ने मूल रूप से फतह को राजनयिक मार्ग अपनाने पर सहमत होने में मदद की। 1990 के दशक में, पीएलओ ने आधिकारिक तौर पर सशस्त्र प्रतिरोध को त्याग दिया और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 242 का समर्थन किया, जो इजरायल राज्य के साथ 1967 की सीमाओं (वेस्ट बैंक, पूर्वी यरुशलम और गाजा) पर एक फिलिस्तीनी राज्य के निर्माण की बात करता है। पीएलओ ने तब ओस्लो समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसके कारण फिलिस्तीनी राष्ट्रीय प्राधिकरण या फिलिस्तीनी  प्राधिकरण का निर्माण हुआ, यह एक अंतरिम स्वशासी निकाय है, जिसका मतलब एक स्वतंत्र क्षेत्र का नेतृत्व करना था।

ताबा शिखर सम्मेलन 2001

इजराइली वार्ता दल ने जनवरी 2001 में मिस्र के ताबा के शिखर सम्मेलन में एक नया नक्शा प्रस्तुत किया। प्रस्ताव में ‘अस्थायी रूप से इजरायल नियंत्रित’ क्षेत्रों को हटा दिया गया था और फिलिस्तीनी पक्ष ने इसे आगे की बातचीत के आधार के रूप में स्वीकार किया। दोनों पक्ष बहुत सकारात्मक थे लेकिन इजराइल में चुनावों के कारण किसी समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किए  गए और एरियल शेरोन के नए प्रधानमंत्री बनने के साथ उच्च स्तरीय वार्ता को स्थगित कर दिया गया।

अब्राहम समझौता 2020

मध्य पूर्व के इतिहास में एक नया अध्याय अब्राहम समझौते पर हस्ताक्षर के साथ शुरू हुआ है। यह  अगस्त, 2020 को इजराइल, संयुक्त राज्य अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात के बीच किया गया एक संयुक्त समझौता है। इसमें इजरायल, बहरीन और यूएई के बीच संबंधों को सामान्य बनाने के लिए हुए समझौते का भी जिक्र है। इन घटनाक्रमों ने बहरीन और संयुक्त अरब अमीरात को मध्य-पूर्व के लिए अमेरिका की प्रतिबद्धता और अपनी प्राथमिकताओं का पुनर्मूल्यांकन करने तथा इस क्षेत्र की प्रमुख सैन्य शक्ति इजराइल के साथ शांति बहाली के लिए प्रेरित किया। इसके साथ, संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन ने इजरायल को मान्यता दी और मिस्र तथा जॉर्डन के बाद ऐसा करने वाले ये तीसरे और चौथे अरब राष्ट्र बन गये।

हमास और फतह

हमास और फतह दोनों फिलीस्तीनी राजनीति में दो सबसे प्रमुख दल हैं। 2007 में संसदीय चुनावों में हमास द्वारा फतह को हराने के साथ दोनों के बीच विवाद शुरू हो गया। बाद में दोनों ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए और 2017 में एक दशक पुरानी दरार को समाप्त करके एक साथ काम करना शुरू कर दिया।

उद्देश्य

  • हमास - इजराइल को मान्यता नहीं देता है, लेकिन 1967 की सीमाओं पर एक फिलिस्तीनी  राज्य को स्वीकार करता है। (इस्लामी जिहाद के माध्यम से फिलिस्तीन को मुक्त करने के उद्देश्य से 1987 में अस्तित्व में आया)
  • फ़तह - इजराइल को मान्यता देता है, 1967 की सीमाओं पर एक राज्य बनाना चाहता है।

हमास और फतह ने क्रमशः गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक के कब्जे वाले फिलिस्तीनी क्षेत्रों पर शासन किया है। दोनों समूह 1967 में पूर्वी यरुशलम, गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक से मिलकर बने क्षेत्रों पर एक फिलिस्तीनी  राज्य के निर्माण के समान लक्ष्य के लिए काम करते है।

निष्कर्ष

  • इजराइल-फिलिस्तीन मुद्दा एक आधुनिक समस्या है, जिसकी जड़ें 20वीं सदी में बहुत गहरी हैं, जो 21 वीं सदी में और बढ़ गई है। यह अब्राहम के विश्वासों के बीच एक प्राचीन धार्मिक लड़ाई नहीं है, जहाँ तीनों धर्म यरूशलम को एक पवित्र शहर के रूप में दावा करते हैं। विवाद आधुनिक है, जिसमें राष्ट्रवाद, उपनिवेशवाद और जातीय हिंसा शामिल है। 
  • दो-राज्य समाधान पर जो बातचीत की गई थी, अधिक प्रवासन के कारण वह समस्या बन गई है। इसके लिए वास्तव में 21वीं सदी के राष्ट्रीय समाधान की आवश्यकता है, जिसके लिए एक दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति की भी आवश्यकता है।
  • भारत दोनों देशों का समर्थन करता है, इसलिए इन दोनों देशों के मध्य शांति वार्ता में अपना योगदान दे सकता है। परन्तु भारत आतंकवाद का समर्थन नहीं करता है, इसलिए इजराइल पर हुए आतंकी हमलों की निंदा कर भारत ने इजराइल के साथ खड़े रहने की प्रतिबद्धता जताई है।

प्रारंभिक परीक्षा हेतु प्रश्न

 प्रश्न - निम्नलिखित  कथनों में से कौन सा कथन सत्य है?

(a)     नवंबर 1948 को फ़िलिस्तीन के लिए संयुक्त राष्ट्र विभाजन योजना को अपनाया गया।

(b)     1917 में बाल्फोर डिक्लेरेशन जारी किया गया।

(c)     जनवरी 2021 को इजराइल, संयुक्त राज्य अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात के बीच अब्राहम समझौते को अपनाया गया।

(d)     लेबनान के ताबा शहर में 2001 में शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया।

उत्तर- (b)

प्रश्न - निम्नलिखित कथनों में से कौन सा कथन असत्य है?

(a)     वर्ष 1993 में ओस्लो समझौता हुआ था।

(b)     वर्ष 1973 में योम किप्पुर युद्ध हुआ था।

(c)     वर्ष 1978 कैंप डेविड समझौता हुआ था।

(d)     वर्ष 1938 में पील कमीशन की नियुक्ति की गई।

उत्तर- (d)

मुख्य परीक्षा हेतु प्रश्न

 प्रश्न-  इजरायल-फिलिस्तीन के मध्य स्थाई समस्या समाधान के क्या उपाय है? विश्लेषण कीजिए।

प्रश्न-   इजरायल-फिलिस्तीन विवाद का भारत पर क्या प्रभाव पड़ता है? चर्चा कीजिए।

प्रश्न-   इजरायल-फिलिस्तीन विवाद में अमेरिका और पश्चिम का क्या संदर्भ है? विश्लेषण कीजिए।

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