July 5, 2023

भारत-अफ्रीका संबंध

                 

भारत-अफ्रीका संबंध

चर्चा में क्यों ?

  • अफ्रीका, जो आज विश्व की आबादी का लगभग 17% है और 2050 में 25% तक पहुंच जाएगा, का बारीकी से अध्ययन करने की आवश्यकता है क्योंकि एक वैश्विक खिलाड़ी के रूप में भारत का उदय अनिवार्य रूप से अफ्रीका के साथ उसकी साझेदारी से जुड़ा हुआ है।
  • पिछले 15 वर्षों में भारत-अफ्रीका संबंधों में प्रगति हुई है, परंतु विशेष रूप से 2014 के बाद से, भारत-अफ्रीका संबंध लगातार विकसित हुए हैं, लेकिन इनमें और अधिक प्रगति प्राप्त की जा सकती है।

 

प्रमुख बिंदु 

  • इस संदर्भ में, विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन द्वारा स्थापित 20-सदस्यीय अफ्रीका विशेषज्ञ समूह (AEG) ने हाल ही में 'भारत-अफ्रीका साझेदारी: उपलब्धियां, चुनौतियां और रोडमैप 2023' शीर्षक से VIF रिपोर्ट प्रस्तुत की।
  • रिपोर्ट का केंद्रीय भाग 'रोडमैप 2030' है, जो लगभग 60 नीतिगत अनुशंसाओं का एक सेट है। यह भारत-अफ्रीका साझेदारी को गहरा एवं विविधतापूर्ण बनाने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
  • रिपोर्ट अफ़्रीका में हो रहे परिवर्तनों की जाँच  करती है: जनसांख्यिकीय, आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक महामारी एवं जटिल भू-राजनीति के प्रतिकूल प्रभाव से प्रभावित परिवर्तनों के इस मिश्रण से महाद्वीप उभरता है जो खुद को बदलने के लिए तैयार है।
  • यह धीरे-धीरे क्षेत्रीय एकीकरण की ओर बढ़ रहा है तथा लोकतंत्र, शांति और प्रगति के लिए समर्पित है,परंतु कुछ क्षेत्र इथियोपिया, सूडान, मध्य अफ्रीकी गणराज्य और अन्य देश विद्रोह, जातीय हिंसा और आतंकवाद से उत्पन्न चुनौतियों से जूझ रहे हैं।

 

अफ्रीका का महत्व 

  • चीन, रूस, संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोपीय संघ, जापान, तुर्की और संयुक्त अरब अमीरात जैसे कम से कम आधा दर्जन बाहरी साझेदारों के बीच अफ्रीका की बाजार पहुंच सुनिश्चित करने के लिए प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दिया जा रहा है।
  • इससे ये देश अफ्रीका में पाए जाने वाली ऊर्जा और खनिज सुरक्षा हासिल कर राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव बढ़ाने पर ध्यान केन्द्रित करेंगे।

 

चीन 

  • वर्ष 2000 से वस्तुतः अफ्रीका का सबसे बड़ा आर्थिक भागीदार बनने की सुसंगत और मजबूत नीति से लैस चीन अलग खड़ा है।
  • रिपोर्ट में एक निबंध 'बुनियादी ढांचे के विकासकर्त्ता', 'संसाधन प्रदाता' और 'वित्तपोषक' के रूप में चीन की भूमिका को उपयुक्त रूप से चित्रित करता है।
  • इसने धन, सामग्री और राजनयिक संबंधों के मामले में अफ्रीका में भारी निवेश किया है।
  • 2007 से, चीनी नेताओं ने 123 बार महाद्वीप का दौरा किया है, जबकि 251 अफ्रीकी नेताओं ने चीन का दौरा किया है।

 

भारत 

  • VIF के अनुसार, भारत की अफ्रीका के साथ एक सुदृढ़ साझेदारी है और सद्भावना का एक समृद्ध कोष है।
  • परंतु भारत को समय-समय पर अपनी अफ्रीका नीति की समीक्षा करना आवश्यक है और अपनी नीतियों को लचीला बनाकर उन्हें और उदार बनाना होगा।

 

भारत का सुझाव 

  • केंद्रीय भाग 'रोडमैप 2030'है, जो लगभग 60 नीतिगत अनुशंसाओं का एक सेट है। यह भारत-अफ्रीका साझेदारी को गहन और विविधतापूर्ण बनाने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
  • यह चार क्षेत्रों को कवर करता है-

 

 

सम्मेलनों की निरंतरता 

  • भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन के माध्यम से समय-समय पर नेताओं के शिखर सम्मेलन को बहाल करके राजनीतिक और राजनयिक सहयोग को मजबूत किया जाना चाहिए;
  • भारत का पिछला शिखर सम्मेलन 2015 में हुआ था।
  • इसके अलावा, अफ्रीकी संघ (AU) के अध्यक्ष और भारत के विदेश मंत्री के बीच एक नई वार्षिक रणनीतिक वार्ता 2023 में शुरू की जानी चाहिए।
  • एक अन्य सिफारिशन के अनुसार AU को भारत के द्वारा G-20 समूह में सदस्यों के बीच आम सहमति बनाने से शामिल करवाना चाहिए।
  • अफ्रीका नीति के कार्यान्वयन एवं प्रभाव को और बढ़ाने के लिए विदेश मंत्रालय (MEA) में विशेष रूप से अफ्रीकी मामलों का प्रभारी एक सचिव होना चाहिए।

 

रक्षा और सुरक्षा सहयोग

  • भारत सरकार को अफ्रीका में तैनात रक्षा अताशे (defense attache) की संख्या बढ़ाने, रक्षा मुद्दों पर बातचीत का विस्तार करने, समुद्री सहयोग के पदचिह्न को व्यापक बनाने और रक्षा निर्यात को सुविधाजनक बनाने के लिए ऋण की सीमाओं का विस्तार करने की आवश्यकता है।
  • रक्षा प्रशिक्षण स्लॉट की संख्या बढ़ाने और आतंकवाद-निरोध, साइबर सुरक्षा एवं उभरती प्रौद्योगिकियों में सहयोग बढ़ाने के लिए कार्य करना है।

 

आर्थिक और विकास सहयोग

  • वित्त वर्ष 2012-23 में भारत-अफ्रीका व्यापार 98 अरब डॉलर तक पहुंचना एक उत्साहजनक विकास है।
  • भारत, अफ्रीका ग्रोथ फंड (AGF) के निर्माण के माध्यम से वित्त तक पहुंच सुनिश्चित कर इस आंकड़े को बढ़ा सकता है।
  • परियोजना निर्यात में सुधार और शिपिंग क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के उपायों का एक विशेष पैकेज सुझाया गया है।
  • त्रिपक्षीय सहयोग को बढ़ावा देने और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सहयोग को सुदृढ़ करने पर विशेष ध्यान देने से भरपूर लाभ मिल सकता है।

 

नागरिक समाज 

  • भारत और चुनिंदा अफ्रीकी देशों में विश्वविद्यालयों, थिंक टैंक, नागरिक समाज और मीडिया संगठनों के बीच अधिक से अधिक बातचीत के माध्यम से सामाजिक-सांस्कृतिक सहयोग बढ़ाया जाना चाहिए।
  • राष्ट्रीय अफ्रीकी अध्ययन केंद्र की स्थापना की जानी चाहिए।
  • अफ्रीकियों को दिया जाने वाला भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग (ITEC) तथा भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR) छात्रवृत्ति का नाम प्रसिद्ध अफ्रीकी हस्तियों के नाम पर रखा जाना चाहिए। उच्च शिक्षा के लिए भारत आने वाले अफ्रीकी छात्रों के लिए वीज़ा उपायों को उदार बनाया जाना चाहिए।
  • छोटी अवधि के लिए कार्य वीजा भी दिया जाना चाहिए।
  • रिपोर्ट में 'रोडमैप 2030' को लागू करने के लिए एक विशेष तंत्र का सुझाव दिया गया है जिसे विदेश मंत्रालय में सचिव, अफ़्रीका और एक नामित उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के संयुक्त नेतृत्व में काम करने वाले अधिकारियों की एक टीम के माध्यम से विदेश मंत्रालय एवं राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय के बीच घनिष्ठ सहयोग के माध्यम से सर्वोत्तम रूप से सुरक्षित किया जा सकता है।

 

पहली शताब्दी ईसा पूर्व के पुरावशेष

चर्चा में क्यों ?

  • अमेरिका की अपनी राजकीय यात्रा के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री के द्वारा 100 से अधिक चोरी हुए पुरावशेष भारत को लौटाए जाने की जानकारी प्रदान की गयी।

 

पुरावशेष क्या है?

  • बहुत प्राचीन काल की वस्तुओं के टूटे-फूटे या शेष अंश या अवशेष, जिनके आधार पर उस काल की सभ्यता, इतिहास आदि के संबंध में जानकारी प्राप्त की जाती है, पुरावशेष कहलाते हैं।
  • आधिकारिक सूत्रों के अनुसार संगमरमर, टेराकोटा और बलुआ पत्थर जैसी विभिन्न सामग्रियों में मौजूद ये पुरावशेष पहली शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर 15वीं शताब्दी ईस्वी तक 1,600 वर्ष की अवधि के हैं तथा महत्वपूर्ण ऐतिहासिक और बाजार मूल्य रखते हैं।
  • महिषासुरमर्दिनी मूर्ति हाल ही में अमेरिका द्वारा वापस भेजे गये पुरावशेषों में से एक है।
  • पहली शताब्दी ईसा पूर्व की एक टेराकोटा यक्षिणी पट्टिका जो "पूर्वी भारत" से चोरी हुई; मध्य भारत से 9वीं शताब्दी का लाल बलुआ पत्थर से निर्मित नृत्य करते हुए गणेश; 10वीं शताब्दी की कुबेर की मूर्ति, जो मध्य भारत से भी है - ये उन 105 पुरावशेषों में से हैं जिन्हें संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा भारत को लौटाया जाना तय है। इन्हें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा सत्यापित किया जा चुका है, जो सभी प्रत्यावर्तित कलाकृतियों का संरक्षक है।
  • इंटरनेशनल कंसोर्टियम ऑफ इंवेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स (ICIJ) और यूके स्थित फाइनेंस अनकवर्ड के अनुसार न्यूयॉर्क में मेट्रोपॉलिटन म्यूजियम ऑफ आर्ट के कैटलॉग में कम से कम 77 पुरावशेष जुड़े हुए हैं। इनमें से 16 पुरावशेष भारत को लौटा दिए गए हैं।
  • इनमें गुजरात/महाराष्ट्र के संगमरमर से बना 12वीं-13वीं शताब्दी का लघु जैन मंदिर; बलुआ पत्थर से बनी विष्णु और लक्ष्मी की 11वीं शताब्दी की मूर्ति; मध्य भारत से 14वीं शताब्दी की बलुआ पत्थर की दो अप्सरा आकृतियाँ; और 11वीं सदी की खड़ी सूर्य मूर्ति शामिल हैं।
  • जब पुरावशेष भारत पहुंच जाएंगे, तो ASI (संस्कृति मंत्रालय के तत्वावधान में काम करता) तय करता है कि वस्तु को उसके मूल स्थान पर लौटाया जाना चाहिए या संबंधित राज्य सरकार को सौंप दिया जाना चाहिए।
  • 2021 में प्रधानमंत्री की पिछली अमेरिका यात्रा के दौरान, 157 कलाकृतियाँ और पुरावशेष भारत को सौंपे गए थे, जिनमें से अधिकांश 11वीं-14वीं शताब्दी के थेतथा भारतीय प्रधानमंत्री और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन ने "चोरी, अवैध व्यापार और सांस्कृतिक वस्तुओं की तस्करी से निपटने के प्रयासों को मजबूत करने के लिए प्रतिबद्धता जताई थी"।
  • सरकारी आंकड़ों के अनुसार, कुल 251 पुरावशेष भारत वापस लाए गए हैं।

 

भूजल दोहन

चर्चा में क्यों ?

  • जर्नल जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स के नए अध्ययन के अनुसार, पीने और सिंचाई के लिए भूजल के अत्यधिक दोहन ने पृथ्वी की घूर्णन धुरी को बदल दिया है।

 

प्रमुख बिंदु 

  • इसके अनुसार 1993 और 2010 के बीच मानव द्वारा लगभग 2,150 गीगाटन भूजल निकाला जा चुका है, और ग्रह की धुरी प्रति वर्ष 4.36 सेमी. की दर से पूर्व की ओर खिसक गई है।
  • सिंचाई और विश्वकी मीठे पानी की मांग को पूरा करने के लिए भूमि से निकाला गया जल अंततः महासागरों में चला जाता है, जिससे वैश्विक समुद्र स्तर में वृद्धि होती है।
  • अध्ययन के अनुसार, मानव ने भूमि से इतना जल निकाला है कि इसने ग्रह की धुरी को प्रभावित किया है और वैश्विक समुद्र स्तर में वृद्धि में योगदान दिया है।

 

 

 

पृथ्वी की धुरी बदलती रहती है

  • पृथ्वी एक काल्पनिक धुरी के चारों ओर घूमती है जो उत्तरी ध्रुव, इसके द्रव्यमान के केंद्र और दक्षिणी ध्रुव से होकर गुजरती है। वैज्ञानिको के अनुसार जैसे-जैसे ग्रह पर द्रव्यमान वितरण बदलता है, ध्रुव और धुरी स्वाभाविक रूप से बदलते रहते हैं। इस घटना को "ध्रुवीय गति" के रूप में जाना जाता है।
  • उदाहरण के लिए, पृथ्वी के आवरण के अंदर धीरे-धीरे घूमने वाली चट्टानें ग्रह के द्रव्यमान में बदलाव का कारण बनती हैं, जिससे घूर्णन अक्ष की स्थिति में बदलाव होता है। नवीनतम शोध के अनुसार अक्ष का बदलाव, वास्तव में, "एक वर्ष में लगभग कई मीटर बदलता रहता है।"
  • ध्रुवीय गति के लिए कई अन्य कारण भी जिम्मेदार हैं; जैसे- समुद्री धाराएँ और तूफान। लेकिन यह घटना मानवीय गतिविधियों से भी प्रभावित होती है।
  • 2016 में, शोधकर्त्ताओं के अनुसार ग्रीनलैंड में ग्लेशियरों और बर्फ के पिघलने के कारण जल वितरण में जलवायु-प्रेरित परिवर्तन, पृथ्वी की धुरी में परिवर्तन का कारण बन सकते हैं।

 

नए अध्ययन के निष्कर्ष

  • 17 वर्षों के अवलोकन डेटा और एक कंप्यूटर मॉडल के अनुसार, भूजल निष्कर्षण ने पृथ्वी के अक्ष के घूर्णन को सबसे अधिक प्रभावित किया। प्रारंभ में, वैज्ञानिकों की टीम पिछले वर्षों में देखे गए बदलाव के स्तर के साथ अपनी भविष्यवाणी का मिलान करने में सक्षम नहीं थी।
  • अध्ययन के अनुसार, पृथ्वी के मध्य अक्षांशों पर स्थित उत्तरी अमेरिका और उत्तर-पश्चिमी भारत से भूजल निष्कर्षण का ध्रुवों या भूमध्य रेखा पर होने वाले निष्कर्षण की तुलना में ध्रुवीय गति पर अत्यधिक प्रभाव पड़ा है।
  • “भूमध्य रेखा या ध्रुव पर बड़े पैमाने पर परिवर्तन घूर्णी ध्रुव में परिवर्तन को प्रभावित नहीं कर सकता है। घूर्णी ध्रुव परिवर्तन वास्तव में पृथ्वी की जड़ता के बिंदु से जुड़ा हुआ है, जो मध्य अक्षांश में द्रव्यमान परिवर्तन के प्रति संवेदनशील है।
  • भूजल निष्कर्षण वैश्विक समुद्र स्तर वृद्धि में प्रमुख योगदानकर्त्ताओं में से एक है। उनकी गणना पिछले शोध से मेल खाती है, जिसमें अनुमान लगाया गया था कि भूजल निष्कर्षण ने 1993 और 2010 के बीच वैश्विक समुद्र के स्तर को 6.24 मिमी. तक बढ़ा दिया है।