Aug. 12, 2022

राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू के प्रथम औपचारिक भाषण में उल्लिखित चार आदिवासी विद्रोह

चर्चा में क्यों ? 

  • अपने शपथ ग्रहण के बाद राष्ट्र को संबोधित करते हुए, राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने चार आदिवासी विद्रोहों - संथाल, पाइका, कोल एवं भील विद्रोहों का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि इन विद्रोहों ने राष्ट्रीय आन्दोलन में आदिवासियों के योगदान को मजबूत किया।

संथाल विद्रोह (1855-56)

  • 19वीं सदी के जनजातीय विद्रोहों में सबसे महत्वपूर्ण विद्रोह संथाल विद्रोह था, जो 1855 में प्रारंभ हुआ था|  
  • संथाल जनजाति भागलपुर तथा राजमहल के बीच निवास करती थी। बाहरी लोगों के अन्याय एवं दमनपूर्ण व्यवहार से उनके अंदर असंतोष बढ़ रहा था। संथालों ने 18वीं तथा 19वीं सदी के आरम्भ में राजमहल पहाड़ियों के जंगलों की स्वयं सफाई की थी, परन्तु अब बाहरी मैदान के जमींदार तथा साहूकार उनकी जमीन छल-बल से हड़प रहे थे।  
  • इसके अलावा उन्हें अपनी ही भूमि का राजस्व देना पड़ रहा था जिसका भुगतान न करने पर कठोर दंड दिया जा रहा था। इन क्षेत्रें में रेलवे लाइन का कार्य प्रारंभ होने से भी वे आतंकित हुए थे क्योंकि अधिकांश संथालों से जबरन बेगारी कराई जा रही थी और जिनको मजदूरी दी भी जा रही थी वह बहुत ही कम थी।
  • 1854 तक आते-आते इन आदिवासियों का असंतोष चरम पर पहुँच गया। कोल विद्रोह से प्रेरणा लेते हुए आदिवासियों के मुखिया ने बैठकों के माध्यम से विद्रोह की योजना बनाई। इसी क्रम में 30 जून, 1855 तक भोगनाडीह में 400 आदिवासी गाँवों के लगभग 6 हजार प्रतिनिधि एकत्र हुए एवं बाहरी लोगों को भगाने, विदेशी सत्ता को उखाड़ फेंक कर न्याय तथा धर्म पर अपना राज स्थापित करने के लिए खुला विद्रोह शुरु करने का निर्णय लिया गया।
  • विद्रोही आदिवासियों के प्रमुख नेता दो मुर्मू भाईयों सिद्धू और कान्हू ने घोषणा की कि ठाकुर जी ने उन्हें निर्देश दिया है कि यह देश अब अंग्रेजों का नहीं है। अतः आजादी के लिए हथियार उठा लो। ठाकुर जी खुद हमारी तरफ से लडेंगे।
  • सिद्धू और कान्हू को उनके दो भाई चाँद तथा भैरव और दो बहनों फूलो व झानो का भी सहयोग मिला।
  • संथालों ने सबसे पहले निकटवर्ती शोषकों के विरूद्ध विद्रोह किया। परिणामतः दूरवर्ती शोषक भी इनकी चपेट में आ गए। संथालों ने ब्रिटिश ऑफिस तथा संस्थानों से लेकर उन सभी चीजों पर हमला किया जो दीकू और उपनिवेशवादी सत्ता के शोषण के माध्यम थे। परन्तु ब्रिटिश सरकार ने इस विद्रोह को दबाने के लिए व्यापक सैन्य कार्यवाही की। इन क्षेत्रें में मार्शल लॉ लागू किया गया तथा इनके नेताओं को पकड़ने के लिए इनाम रखे गए।

पाइका विद्रोह 

  • पाइका, ओडिशा की परंपरागत भूतिगत रक्षक सेना थी जो अपनी सैन्य सेवाओं के बदले राजा से कर मुक्त भूमि प्राप्त करते थे। इस भूमि पर वे वंशानुगत रूप से खेती करते थे। ब्रिटिश कंपनी द्वारा 1803 में ओडिसा पर नियंत्रण कर लिया गया और खुर्दा के राजा को सिंहासन से हटा दिया गया। जिससे पाइकों के सम्मान एवं शक्ति में कमी आई। 
  • साथ ही कंपनी की शोषणकारी भू-राजस्व नीतिओं ने जमींदारों एवं किसानों के बीच असंतोष को जन्म दिया। कंपनी द्वारा पाइकों की वंशानुगत लगान मुक्त भूमि को हड़प लिया गया, उनसे जबरन भू-राजस्व वसूली की गई। नमक की कीमतों को बढ़ा दिया गया, स्थानीय मुद्रा कौड़ी को समाप्त कर दिया गया तथा करों का भुगतान चाँदी में करने को कहा गया। इन सबसे पाइक किसान बुरी तरह प्रभावित थे।
  • बक्शी जगबन्धु विद्याधर खुर्दा के राजा की सेना के सेनापति थे। 1814 में जगबंधु के पूर्वजों के किला रोरांग की संपत्ति को कंपनी ने जबरन ले लिया। जिससे उनमें कंपनी के विरूद्ध रोष बढ़ा। फिर जब 1817 में खोंड लोगों का एक समूह खुर्दा क्षेत्र में आया, तब स्थानीय लोगों ने कड़ा विद्रोह कर दिया। जगबंधु ने इनका नेतृत्व किया। 1818 तक आते-आते विद्रोह शिथिल पड़ गया। 1825 में जगबंधु ने आत्मसमर्पण कर दिया एवं विद्रोह का दमन कर दिया गया। इसके बाद पाइकों के इस विद्रोह से ब्रिटिश कंपनी ने इनके प्रति उदारवादी नीति अपनाई।
  • 2017 में इसकी 200 वीं वर्षगाँठ पर भारत सरकार द्वारा इसे ‘प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम’ का दर्जा दिया गया था।

कोल विद्रोह

  • कोल जनजाति का विद्रोह झारखण्ड राज्य के छोटानागपुर क्षेत्र में हुआ। दरअसल, छोटा नागपुर के इन आदिवासियों को इस बात से गहरा असंतोष था कि 1822 में ब्रिटिश सरकार ने चावल से निर्मित कम नशीली शराब, जिसे ‘हड़िया’ कहा जाता था, पर चार आना प्रति घर के हिसाब से कर लगा दिया था। 
  • 1830 में इस उत्पाद शुल्क को लागू भी कर दिया गया तथा 1827 से इन क्षेत्रें में जबरन अफीम उगाया जाने लगा था। अंग्रेजों ने इन्हें एक-दूसरे से लड़वाकर कमजोर करने का भी प्रयास किया, साथ ही उन्होंने कोलों की भूमि को उनके मुखिया मुण्डाओं से छीनकर मुस्लिम किसानों एवं सिखों को दे दिया जोकि इस विद्रोह का मुख्य कारण बना। 
  • 1831 में कोलों ने संगठित होकर विद्रोह कर दिया जिसका नेतृत्व सिंदराय मानकी एवं विंदराय मानकी ने किया। आगे एक आदिवासी धार्मिक नेता बुद्धो भगत ने इसका नेतृत्व संभाला। इनके नेतृत्व में विदेशी शासन, स्थानीय जमींदार एवं दीकुओं या बाहरी व्यक्तियों के खिलाफ आंदोलन शुरु किया गया। 
  • आदिवासी अनाज एवं अपने पशुओं को लेकर जंगल में जा बसे तथा पाँच महीनों तक ब्रिटिश के खिलाफ अपना संघर्ष जारी रखा। इस विद्रोह को दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार ने इस क्षेत्र को कोलों के लिए ‘दक्षिण-पश्चिमी सीमांत एजेंसी’ के नाम से एक अलग इकाई बना दिया तथा इस क्षेत्र को नॉन-रेग्यूलेशन जिला घोषित कर दिया।

भील विद्रोह

  • भीलों की आदिम जनजाति पश्चिमी घाट के खानदेश जिले में रहती थी। 1812 से 1819 के बीच इन आदिवासियों ने अपने नए स्वामी अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। कम्पनी के अधिकारियों का कहना था कि इस विद्रोह को पेशवा बाजीराव द्वितीय तथा उसके प्रतिनिधि त्रियम्बकजी दांगलिया ने प्रोत्साहित किया था। 
  • वास्तव में कृषि सम्बन्धी शोषण एवं नई सरकार से भय ही इस विद्रोह का मुख्य कारण था। अंग्रेजी सेना की टुकड़ियाँ इसको दबाने में लगी थीं। परन्तु भयभीत होने के स्थान पर भीलों की उत्तेजना और बढ़ गई, विशेषकर जब उन्हें अंग्रेजों की बर्मा में हुई असफलता का ज्ञान हुआ। 
  • 1825 में उन्होंने सेवाराम के नेतृत्व में पुनः विद्रोह कर दिया। 1831 और 1846 में विद्रोह पुनः उठ खड़ा हुआ जिससे यह सिद्ध होता है कि यह आंदोलन काफी लोकप्रिय था। बाद में एक सुधारक गोविंद गुरु ने दक्षिण राजस्थान के भीलों को संगठित कर 1913 तक ब्रिटिश के खिलाफ लड़ने में मदद् की।

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