Oct. 19, 2022

अक्कम्मा चेरियन

सन्दर्भ 

  • अक्कम्मा चेरियन त्रावणकोर (केरल) की एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी एवं कार्यकर्त्ता थीं जिन्हें महात्मा गाँधी द्वारा ‘त्रावणकोर की झाँसी की रानी’ का नाम दिया गया था।
  • फरवरी 1938 में, त्रावणकोर राज्य में कांग्रेस का गठन हुआ और अक्कम्मा ने स्वतंत्रता के संघर्ष में शामिल होने के लिए अपना शिक्षण करियर छोड़ दिया।

प्रारंभिक जीवन 

  • उनका जन्म 14 फरवरी,1909 को त्रावणकोर के कन्जिरपल्ली में हुआ था।
  • 1931 में अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने सैंट मेरी अंग्रेजी माध्यमिक विद्यालय,एडकाकरा में एक शिक्षक के रूप में रूप कार्य किया।

राजनितिक जीवन 

सविनय अवज्ञा आन्दोलन 

  • सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान त्रावणकोर के लोगों ने एक उत्तरदायी प्रशासन  के लिए एक आंदोलन शुरू किया था जिसे यहाँ के दीवान सी. पी. रामास्वामी अय्यर द्वारा दबाने का प्रयास किया गया तथा कांग्रेस पर प्रतिबंध लगा दिया गया जिसने तब सविनय अवज्ञा आंदोलन का आयोजन किया ही था। त्रावणकोर के सविनय आंदोलन के  अध्यक्ष पट्टम ए. थानु पिल्लई सहित प्रमुख राज्य कांग्रेस नेताओं को गिरफ्तार कर सलाखों के पीछे डाल दिया गया।
  • कांग्रेस ने अपनी कार्य समिति भंग कर अध्यक्ष को एकात्मक शक्तियां देते हुए उसे अपना उत्तराधिकारी को नामित करने का अधिकार दिया। राज्य कांग्रेस में 11 अध्यक्षों  का चुनाव किया गया जिन्हें बाद में जेल में डाल दिया गया।
  • ग्यारहवें अध्यक्षकुट्टानाद रामकृष्ण पिल्लई ने अपनी गिरफ्तारी से पहले अक्कम्मा चेरियन को बारहवें अध्यक्ष के रूप में नामित किया था।

 

कौडियार पैलेस के लिए रैली

  • अक्कम्मा चेरियन ने राज्य कांग्रेस पर प्रतिबंध हटाने के लिए थंपनूर से कौडियार पैलेस तक एक जन रैली का नेतृत्व किया।
  • आंदोलनकारी भीड़ ने दीवान, सी.पी. रामास्वामी अय्यर को बर्खास्त करने की भी मांग की।
  • उन्होंने अपने भाषण से पुलिस अधिकारियों को अपने आदेश वापस लेने के लिए मजबूर कर दिया।  गांधी जी  ने उन्हें ‘त्रावणकोर की झांसी रानी’ कहा। परंतु 1939 में उन्हें निषेधाज्ञा के उल्लंघन के लिए गिरफ्तार किया गया और दोषी ठहराया गया। स्वतंत्रता के लिए अपने संघर्ष के दौरान अक्कम्मा को दो बार जेल जाना पड़ा था।

देशसेविका संघ का गठन

  • अक्टूबर 1938 में, राज्य कांग्रेस की कार्य समिति ने अक्कम्मा चेरियन को देशसेविका संघ (महिला स्वयंसेवी समूह) को संगठित करने का निर्देश दिया। उन्होंने विभिन्न केंद्रों का दौरा किया और महिलाओं से देशसेविका संघ के सदस्य के रूप में शामिल होने की अपील की।

भारत छोड़ो आंदोलन

  • अक्कम्मा, जेल से छूटने के बाद, राज्य कांग्रेस की पूर्णकालिक कार्यकर्त्ता बन गईं।
  • 1942 में, वह इसकी कार्यवाहक अध्यक्ष बनीं। अपने अध्यक्षीय भाषण में, उन्होंने 8 अगस्त, 1942 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के ऐतिहासिक बॉम्बे अधिवेशन में पारित भारत छोड़ो प्रस्ताव का स्वागत किया।
  • 1946 में, ब्रिटिश सरकार के प्रतिबंध के आदेशों का उल्लंघन करने के लिए उन्हें गिरफ्तार किया गया और छह महीने के लिए जेल में डाल दिया गया। 1947 में, उन्हें फिर से गिरफ्रतार कर लिया गया क्योंकि उन्होंने सी.पी. रामास्वामी अय्यर की स्वतंत्र त्रवणकोर की इच्छा के खिलाफ आवाज उठायी थी।

स्वतंत्र भारत में जीवन

  • 1947 में, स्वतंत्रता के बाद, अक्कम्मा को कंजिरपल्ली से त्रवणकोर विधान सभा के लिए निर्विरोध चुना गया।
  • 1950 के दशक की शुरुआत में, उन्होंने लोकसभा टिकट से वंचित होने के बाद कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया और 1952 में, उन्होंने मुवत्तुपुझा निर्वाचन क्षेत्र से निर्दलीय के रूप में संसदीय चुनाव लड़ा।
  • 1950 के दशक की शुरुआत में, जब पार्टियों की विचारधारा बदल रही थी, उन्होंने राजनीति छोड़ दी। 
  • 1967 में, उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में कंजिरपल्ली से विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार से हार गईं। बाद में, उन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों के पेंशन सलाहकार बोर्ड के सदस्य के रूप में कार्य किया।

अक्कम्मा चेरियन पार्क

  • 5 मई, 1982 को अक्कम्मा चेरियन की मृत्यु हो गई। तिरुवनंतपुरम के वेल्लयमबलम में उनकी स्मृति में एक मूर्ति स्थापित की गयी।