
दान एवं धर्मांतरण पर सुप्रीम कोर्ट का जवाब
प्रश्न पत्र- (राजव्यवस्था एवं शासन)
स्रोत- द इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
- हाल ही में उच्चतम न्यायालय (SC) ने अश्विनी कुमार उपाध्याय बनाम भारत संघ मामले में दान-धर्मांतरण गठजोड़ के सम्बन्ध में गहरी चिंता व्यक्त की है जिसमें कहा गया है कि इस तरह के दान करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्य की जाँच की जानी चाहिए।
- खंडपीठ ने यह भी कहा कि धर्म की स्वतंत्रता हो सकती है, लेकिन जबरन धर्मांतरण की स्वतंत्रता नहीं।
धर्म परिवर्तन के बारे में
- धर्म परिवर्तन से तात्पर्य एक संप्रदाय के पालन और दूसरे सम्प्रदाय के साथ संबद्धता का परित्याग करना है। उदाहरण के लिए, ईसाई बैपटिस्ट से कैथोलिक, मुस्लिम शिया से सुन्नी।
- SC की टिप्पणियों के अनुसार, किसी को प्रलोभन देकर जबरन धर्म परिवर्तन या धर्मांतरण, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता), 21 (जीवन का अधिकार), 25 (अंतःकरण की स्वतंत्रता और धर्म को मानने, आचरण करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता) का उल्लंघन है।
- साथ ही यह धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के भी खिलाफ है, जो संविधान के मूल ढांचे का अभिन्न अंग है।
संविधान सभा में धार्मिक स्वतंत्रता पर बहस
- संविधान निर्माताओं ने मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा,1948 को ध्यान में रखते हुए संविधान सभा में लोगों के अधिकार के रूप में धार्मिक स्वतंत्रता पर कई बार बहस की।
- मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा 1948:इसके अनुच्छेद 18 के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति को विचार, अंतःकरण और धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार है।
- इस अधिकार में अपने धर्म या विश्वास को बदलने की स्वतंत्रता और शिक्षण, आचरण, उपासना में अपने धर्म या विश्वास को प्रकट करने की स्वतंत्रता शामिल है।
- भावी संविधान के पहले मसौदे में अपनी स्वतंत्र इच्छा के अलावा, धर्मांतरण को रोकने का प्रस्ताव था।
- हालाँकि, दूसरा मसौदा "सार्वजनिक व्यवस्था और नैतिकता के अनुरूप सीमाओं के भीतर उपदेश देने और धर्म परिवर्तन करने के अधिकार" को मान्यता देता था।
- आखिरकार, संविधान ने प्रचार के अधिकार के साथ-साथ अंतःकरण की स्वतंत्रता तथा अपने धर्म को मानने और उसका पालन करने के अधिकार को लोगों के मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी।
धर्म की स्वतंत्रता की न्यायिक व्याख्या
- रतिलाल पानाचंद गाँधी मामला, 1954: शीर्ष अदालत ने पाया कि अनुच्छेद 25 में प्रत्येक व्यक्ति को दूसरों के प्रबोधन के लिए अपने धार्मिक विचारों का प्रचार करने का अधिकार शामिल है।
- शिरूर मठ मामला, 1954:सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह विश्वास का प्रचार है जो संरक्षित है, चाहे प्रचार चर्च या मठ में हो या मंदिर में हो।
- स्टैनिस्लास बनाम मध्य प्रदेश राज्य, 1977:सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 25 किसी अन्य व्यक्ति को अपने धर्म में परिवर्तित करने का अधिकार नहीं देता है, लेकिन (केवल) अपने विचारों की व्याख्या द्वारा अपने धर्म को प्रसारित और प्रचारित करने का अधिकार देता है।
- शीर्ष अदालत ने आगे कहा कि धोखाधड़ी या प्रेरित धर्मांतरण सार्वजनिक व्यवस्था को बाधित करने के अलावा किसी व्यक्ति के अंतःकरण की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता है और इसलिए यह राज्य की विनियमित और प्रतिबंधित करने की शक्ति के अंतर्गत था।
- रंजीत मोहिते मामला, 2015:बॉम्बे हाईकोर्ट ने माना कि किसी व्यक्ति के अंतःकरण की स्वतंत्रता में खुले तौर पर यह कहने का अधिकार शामिल है कि वह किसी भी धर्म को नहीं मानता है।
धर्मांतरण रोकने के उपाय
स्वतंत्रता से पूर्व:
- रायगढ़, बीकानेर, कोटा, जोधपुर, सरगुजा, पटना, उदयपुर और कालाहांडी की हिंदू रियासतों ने मिशनरियों की इंजीलवादी (ईसाई धर्म का प्रसार) गतिविधियों को रोकने के लिए धर्मांतरण विरोधी कानून लागू किया था।
- ब्रिटिश द्वारा लागू मूल निवासी विवाह विच्छेद अधिनियम, 1866 को 2017 में निरस्त कर दिया गया था।इसे उन विवाहित भारतीयों के लिए तलाक की अनुमति देने के लिए अधिनियमित किया गया था जो ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गए थे।
स्वतंत्रता के बाद:
- 1954 और 1960 में, संसद ने भारतीय धर्मान्तरण (विनियमन और पंजीकरण) विधेयक और पिछड़े समुदाय (धार्मिक संरक्षण) विधेयक पर विचार किया। दोनों कानूनों ने धर्मांतरण को रोकने का प्रस्ताव दिया, हालांकि समर्थन की कमी के कारण दोनों को ख़ारिज दिया गया।
- भारतीय दंड संहिता की धारा 295(A) और 298 में जबरन धर्मांतरण को एक संज्ञेय अपराध बताया गया है जो दुर्भावनापूर्ण और जानबूझकर दूसरों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से संबंधित है।
- राज्य के कानून: राज्य-स्तरीय "धर्म की स्वतंत्रता" क़ानून, जिन्हें धर्मांतरण विरोधी कानूनों के रूप में जाना जाता है, 10 राज्यों अर्थात् उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़, ओडिशा, मध्य प्रदेश आदि में लागू किए गए हैं।
- ओडिशा 1967 में इस तरह का कानून बनाने वाला पहला राज्य था, इसके बाद 1968 में मध्य प्रदेश था।
- कुछ कानूनों में धर्मान्तरण से पहले स्थानीय अधिकारियों से पूर्व अनुमति लेना अनिवार्य कर दिया गया।
हाल ही में अश्विनी कुमार उपाध्याय मामले में शीर्ष अदालत की राय
- दान के इरादों की जाँच : सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह भोजन, दवाइयां, उपचार आदि की पेशकश के माध्यम से धर्मांतरण के पीछे छिपे इरादों की जाँच करेगा।
- आत्म-विश्वास और प्रलोभन के आधार पर धर्मांतरण में अंतर करना: अदालत ने यह भी कहा कि स्वेच्छा से महसूस किए गए विश्वास के आधार पर एक अलग देवता में आस्था, धर्मांतरण के प्रलोभन के माध्यम से उत्पन्न विश्वास से अलग है।
केंद्र सरकार की राय
- केंद्र सरकार का कहना है कि वह जबरन धर्मांतरण के "खतरे से अवगत" है और इससे निपटने के लिए "उचित कदम" उठाएगी।
- इसने यह भी कहा कि महिलाओं एवं आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों सहित समाज के कमजोर वर्गों के अधिकारों की रक्षा के लिए धर्मांतरण विरोधी कानून आवश्यक हैं।
- एक तटस्थ प्राधिकारी यह तय करेगा कि धर्मांतरण,प्रलोभन से किया गया है या एक व्यक्ति धार्मिक या दार्शनिक हृदय परिवर्तन के परिणामस्वरूप धर्मान्तरितहो रहा है।
आगे की राह
- धार्मिक स्वतंत्रता बहुलवाद और समावेशिता की पहचान है।इसका उद्देश्य सामाजिक सद्भाव और विविधता को बढ़ावा देना है। चूँकि इस स्वतंत्रता पर वैध प्रतिबंधों को स्वीकार किया गया है, अतः धार्मिक आस्थाओं में तर्कहीन और प्रेरित घुसपैठ को रोका जाना चाहिए।
- केंद्र द्वारा धर्मांतरण विरोधी कानून में भी मॉडल कानून बनाकर एकरूपता बरती जानी चाहिए । उदाहरण के लिए, अनुबंध खेती आदि पर मॉडल कानून की तरह।
- लोगों को प्रलोभन या जबरन धर्मांतरण आदि के प्रावधानों और तरीकों के बारे में भी शिक्षित करने की आवश्यकता है। साथ ही "धोखाधड़ी" के माध्यम से धर्मांतरण के खिलाफ सजा भी बढ़ाई जानी चाहिए, ताकि दूसरों को मौलिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करने से रोका जा सके।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
भारतीय संविधान के तहत धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार
भारतीय संविधान व्यक्तियों को उनके धार्मिक विश्वासों और प्रथाओं के अनुसार जीने की स्वतंत्रता देता है जैसा कि निम्नलिखित प्रावधानों से स्पष्ट है:
अनुच्छेद 25: अंतःकरण की स्वतंत्रता और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता।
अनुच्छेद 26: धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता।
अनुच्छेद 27: धर्म की अभिवृद्धि के लिए करों के संदाय से स्वतंत्रता।
अनुच्छेद 28: धार्मिक शिक्षा में उपस्थित होने से स्वतंत्रता।
प्रारंभिक परीक्षा प्रश्न
प्रश्न- निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिए-
- अनुच्छेद-25 - अंतःकरण और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता
- अनुच्छेद-26 - धर्म की अभिवृद्धि के लिए करों के संदाय से स्वतंत्रता
- अनुच्छेद-27 - धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता
- अनुच्छेद-28 - धार्मिक शिक्षा में उपस्थित होने से स्वतंत्रता
उपर्युक्त में से कितने युग्म सही सुमेलित हैं?
(a)केवल एक युग्म (b) केवल दो युग्म
(c) केवल तीन युग्म (d) चारों युग्म
मुख्य परीक्षा प्रश्न
प्रश्न- भारत में एक धर्मांतरण विरोधी कानून की आवश्यकता पर चर्चा कीजिए। धर्म चुनने की स्वतंत्रता और जबरन धर्मांतरण के बीच संतुलन बनाने के लिए नए कानून के प्रमुख तत्वों पर अपने सुझाव दीजिये।