Dec. 28, 2022

27 december 2022

ट्रेडमार्क 

 

चर्चा में क्यों ?

  • हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने हमदर्द नेशनल फाउंडेशन (इंडिया) बनाम सदर लेबोरेटरीज प्रा. लिमिटेड मामले में सदर की प्रयोगशालाओं द्वारा आपत्तिजनक ट्रेडमार्क 'दिल अफज़ा' के तहत पेय पदार्थों के निर्माण पर रोक लगा दी है। 
  • ट्रेडमार्क 'रूह अफज़ा' प्रथम दृष्टया एक मजबूत चिह्न है जिसके लिए उच्च स्तर की सुरक्षा की आवश्यकता होती है।

ट्रेडमार्क क्या है ? 

  • एक ट्रेडमार्क एक विशिष्ट चिह्न या संकेतक है जिसका उपयोग व्यवसाय संगठन द्वारा अपने उत्पादों या सेवाओं को अन्य संस्थाओं से अलग करने के लिए किया जाता है।
  • विशेष रूप से वस्तुओं या सेवाओं के स्रोत के रूप में किसी विशेष व्यवसाय की पहचान करने हेतु इसका प्रयोग किया जाता है।
  • ट्रेडमार्क उल्लंघन एक व्यावसायिक चिन्ह का अनधिकृत उपयोग है जो उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ के समान है।

एक मजबूत ट्रेडमार्क क्या है?

  • एक मजबूत ट्रेडमार्क का अर्थ है एक प्रसिद्ध मार्क,जिसे उच्च कोटि की ख्याति प्राप्त हो।
  • किसी भी ट्रेडमार्क की सुरक्षा की डिग्री चिह्न की ताकत के साथ बदल जाती है; ट्रेडमार्क जितना मजबूत होगा, उसकी रक्षा करने की आवश्यकता उतनी ही अधिक होगी।

स्रोत- द हिन्दू 

एनिमेशन, विजुअल इफेक्ट्स, गेमिंग एवं कॉमिक (AVGC) सेक्टर

चर्चा में क्यों ?

  • एनिमेशन, विजुअल इफेक्ट्स, गेमिंग और कॉमिक (AVGC) क्षेत्र में आने वाले 10 वर्षों में 20 लाख से अधिक लोगों को रोजगार देने की क्षमता रखता है। एक अनुमान के अनुसार, इस क्षेत्र में 16 से 17 प्रतिशत की वृद्धि दर देखी जाएगी।

प्रमुख बिंदु 

  • देश में AVGC क्षेत्र ने अभूतपूर्व विकास किया है, जिसमें कई वैश्विक खिलाड़ी सेवाओं का लाभ उठाने के लिए भारतीय प्रतिभा पूल में प्रवेश कर रहे हैं।
  • भारत AVGC बाजार में दुनिया भर में अनुमानित 260 से 275 बिलियन डॉलर में से लगभग 2.5 से 3 बिलियन डॉलर का योगदान देता है।

विभिन्न अनुशंसाएँ:

  • भारत को वैश्विक कंटेंट हब बनाने और AVGC क्षेत्र में रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए गठित टास्क फोर्स ने इस क्षेत्र के लिए एक राष्ट्रीय उत्कृष्टता केंद्र स्थापित करने पर बल दिया है।
  • टास्क फोर्स द्वारा यह सिफारिश की गई है कि स्कूल स्तर पर समर्पित AVGC पाठ्यक्रम सामग्री के साथ रचनात्मक सोच विकसित करने के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति का लाभ उठाया जाए, ताकि मूलभूत कौशल का निर्माण किया जा सके और करियर विकल्प के रूप में AVGC के बारे में जागरूकता पैदा की जा सके।
  • अटल टिंकरिंग लैब्स की तर्ज पर शैक्षणिक संस्थानों में AVGC एक्सेलेरेटर और इनोवेशन हब स्थापित करने की भी सिफारिश की गई है।
  • टास्क फोर्स ने विश्व स्तर पर भारतीय संस्कृति और विरासत को बढ़ावा देने के लिए देश से घरेलू सामग्री निर्माण के लिए एक समर्पित उत्पादन कोष स्थापित करने की सिफारिश की है।

स्रोत- ऑल इंडिया रेडियो 

पुनर्योजी कृषि 

चर्चा में क्यों ?

  • हाल ही में, मध्य प्रदेश में पुनर्योजी खेती के तरीकों का पालन करने वाले किसानों के अनुभव के आधार पर सिंचाई की जरूरत में आई कमी के साथ जल और ऊर्जा के संरक्षण पर बल दिया जा रहा है।

पुनर्योजी कृषि क्या है?

  • पुनर्योजी कृषि, खेती का एक तरीका है जो मिट्टी के स्वास्थ्य पर केंद्रित है।
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  • इसमें प्राकृतिक आदानों का उपयोग, न्यूनतम-जुताई, मल्चिंग, बहु-फसल एवं विविध और देशी किस्मों की बुवाई शामिल है।
  • प्राकृतिक आदान मिट्टी की संरचना और इसकी जैविक कार्बन सामग्री को बेहतर बनाने में मदद करते हैं।
  • जल की खपत करने वाली और जल की बचत करने वाली फसलों को एक साथ या वैकल्पिक चक्रों में लगाने से सिंचाई की बारंबारता और तीव्रता कम हो जाती है।
  • साथ ही पंप जैसे सिंचाई उपकरणों द्वारा उपयोग की जाने वाली ऊर्जा का संरक्षण होता है।
  • भारत में, केंद्र सरकार पुनर्योजी कृषि को बढ़ावा दे रही है जिसका उद्देश्य रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग और लागत को कम करना है।

पुनर्योजी कृषि की आवश्यकता क्यों है?

  • मिट्टी का क्षरण 
  • जलवायु परिवर्तन
  • चरम मौसमी घटनाएँ
  • संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के अनुसार, वैश्विक स्तर पर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कृषि का योगदान एक तिहाई से अधिक है।

लाभ

  • फसल की पैदावार
  • उत्पादित फसलों की मात्रा
  • मिट्टी का स्वास्थ्य
  • मिट्टी की जल धारण करने की क्षमता
  • मृदा अपरदन को कम करना।

खाद्यान्न आपूर्ति :

  • बेहतर पैदावार विश्व की खाद्य आपूर्ति में मदद करेगी क्योंकि वैश्विक आबादी बढ़ती है।

पर्यावरणीय लाभ: 

  • पुनर्योजी खेती के माध्यम से भी भूमि उत्सर्जन को कम किया जा सकता है तथा फसल भूमि और चारागाहों को बदला जा सकता है, जिससे पृथ्वी के बर्फ मुक्त भूमि क्षेत्र के 40% भाग को कार्बन सिंक में बदला जा सकता है।

चुनौतियाँ 

  • भूजल:1960 के दशक की हरित क्रांति ने भारत को भुखमरी से सुरक्षित किया तथा देश को खाद्यन्न में आत्मनिर्भर बना दिया  और इसे एक बड़े खाद्य निर्यातक में बदल दिया। लेकिन क्रांति ने भारत को विश्व का सबसे बड़ा भूजल उपयोगकर्त्ता भी बना दिया।
  • संयुक्त राष्ट्र की विश्व जल विकास रिपोर्ट, 2022 के अनुसार, भारत हर साल 251 क्यूबिक किमी. या विश्व के भूजल निकासी के एक चौथाई से अधिक भाग को निकालता है। इसमें से 90 फीसदी जल का इस्तेमाल कृषि के लिए होता है।
  • उत्पादन में कोई लाभ नहीं: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली के एक अध्ययन से पता चलता है कि देश में गेहूं, चावल और मक्का के अंतर्गत 39 मिलियन हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में पिछले एक दशक में कोई सुधार नहीं देखा गया है।
  • मृदा स्वास्थ्य में गिरावट: दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE), स्टेट ऑफ बायो फर्टिलाइजर्स एंड ऑर्गेनिक फर्टिलाइजर्स इन इंडिया की 2022 की रिपोर्ट, भारतीय मिट्टी में जैविक कार्बन और सूक्ष्म पोषक तत्वों की गंभीर और व्यापक कमी को दर्शाती है।
  • वैज्ञानिक अध्ययन का अभाव: नागरिक समाज संगठनों और किसानों के पास दीर्घकालिक अध्ययन करने की क्षमता नहीं है।

स्रोत- डाउन टू अर्थ 

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग(NCPCR)

चर्चा में क्यों?

  • हाल ही में, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने NGOs को धन उगाही के लिए सुभेद्य बच्चों के चित्रण के बारे में चेतावनी दी है। कुपोषण जैसे विकास के मुद्दों से संबंधित धन उगाहने वाली गतिविधियों के लिए प्रतिनिधि दृश्यों का उपयोग करने वाले नागरिक समाज संगठनों की अब NCPCR द्वारा जाँच की जाएगी। 

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग क्या है? 

  • यह बाल अधिकार संरक्षण आयोग (CPCR) अधिनियम, 2005 के तहत स्थापित एक सांविधिक निकाय है।
  • यह महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अंतर्गत काम करता है।

सदस्य

  • एक अध्यक्ष, जो एक प्रतिष्ठित व्यक्ति होता है और उसने बच्चों के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए उत्कृष्ट कार्य किया है। 
  • छह सदस्यों को केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है, जिनमें से कम से कम दो महिलाएं होती हैं, जिन्हें शिक्षा, बाल स्वास्थ्य, किशोर न्याय, बाल श्रम उन्मूलन, बाल मनोविज्ञान या बच्चों से संबंधित समाजशास्त्र कानूनों का अनुभव होता है। 

शासनादेश: 

  • आयोग यह सुनिश्चित करता है कि सभी कानून, नीतियां, कार्यक्रम और प्रशासनिक तंत्र भारत के संविधान और संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में निहित बाल अधिकारों के दृष्टिकोण के अनुरूप हों। 
  • बच्चे को 0 से 18 वर्ष आयु वर्ग के व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है। 

स्रोत- द हिन्दू 

जियोग्लिफ्स

चर्चा में क्यों?

  • हाल ही में, विशेषज्ञों और संरक्षणवादियों ने महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के बारसू गांव में एक मेगा तेल रिफाइनरी के लिए प्रस्तावित स्थान पर चिंता जताई है। 

प्रमुख बिंदु 

  • कोंकण क्षेत्र में बारसू स्थल को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों की अस्थायी सूची में जोड़ा गया था और राज्य पुरातत्व विभाग और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा संरक्षित किया गया था।

जियोग्लिफ्स क्या हैं?

  • जियोग्लिफ्स प्रागैतिहासिक रॉक कला का एक रूप है, जो लेटराइट पठारों की सतह पर की जाती थी।
  • इसे चट्टान की सतह के एक हिस्से को उभारकर , तराश कर या घिसकर बनाया जाता था।
  • ये शैल चित्र, नक़्क़ाशी, कप के निशान और अंगूठी के निशान के रूप में हो सकते हैं।

इस प्रागैतिहासिक रॉक कला का क्या महत्व है?

  • जियोग्लिफ्स के समूह महाराष्ट्र और गोवा में कोंकण समुद्र तट पर विस्तृत हैं, जो लगभग 900 किमी. में फैला हुआ है। झरझरा लेटराइट चट्टान, जो इस तरह की नक्काशी के लिए उपयुक्त है, पूरे क्षेत्र में बड़े पैमाने पर पायी जाती है।
  • इसमें ऐसी कला के 1,500 से अधिक टुकड़े हैं, जिन्हें "कटाल शिल्पा" भी कहा जाता है, जो 70 स्थलों में फैले हुए हैं।
  • यह मेसोलिथिक (मध्य पाषाण युग) से प्रारंभिक ऐतिहासिक युग तक मानव बस्तियों के निरंतर अस्तित्व का प्रमाण है।
  • यूनेस्को की अस्थायी विश्व धरोहर सूची में रत्नागिरी जिले में पेट्रोग्लिफ्स के साथ सात स्थलों का उल्लेख है - उक्षी, जम्भरुण, काशेली, रुंडे ताली, देवीहसोल, बारसु और देवाचे गोठाने, साथ ही सिंधुदुर्ग जिले में एक - कुडोपी गांव, और गोवा में फानसामल को मिलाकर नौ स्थल हैं।
  • जियोग्लिफ्स में दर्शाए गए आंकड़ों में मानव और जानवर; जैसे- हिरण, हाथी, बाघ, बंदर, जंगली सूअर, गैंडा, दरियाई घोड़ा, मवेशी, सुअर, खरगोश और बंदर शामिल हैं।
  • इनमें बड़ी संख्या में सरीसृप और उभयचर जीव भी शामिल हैं। जैसे- कछुआ,मगरमच्छ, पक्षियों में मोर आदि।

स्रोत- द इंडियन एक्सप्रेस