Jan. 23, 2023

पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों के निर्माण ने केरल में विरोध क्यों भड़काया है?

प्रश्न पत्र- 3 (पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी) 

स्रोत- द हिन्दू       

चर्चा में क्यों ?

  • हाल ही में केरल राज्य द्वारा सभी संरक्षित वनों के चारों ओर न्यूनतम 1 किमी. पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र (ESZ) को अनिवार्य बनाने का जो निर्णय लिया गया था उस आदेश में ढील देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की, जिसके परिणामस्वरूप  राज्य में विरोध देखने को मिला।

ESZ घोषित करने के लिए मानदंड:

  • प्रजाति आधारित (स्थानिकवाद, दुर्लभता,  आदि)
  • पारिस्थितिकी तंत्र आधारित (पवित्र उपवन, सीमांत वन आदि)
  • भू-आकृति विज्ञान सुविधा आधारित (निर्जन द्वीप, नदियों की उत्पत्ति,  आदि)

सीमा - 2002 की वन्यजीव संरक्षण रणनीति के अनुसार, एक  ESZ एक संरक्षित क्षेत्र के आसपास 10 किमी तक का विस्तार कर सकता है

इको-सेंसिटिव जोन (ESZ)

  • इको-सेंसिटिव जोन, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम- 1986 के अनुसार घोषित किए गए हैं।
  • इन्हें राष्ट्रीय वन्यजीव कार्य योजना (2002-2016) में शामिल किया गया था। 
  • राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभ्यारण्यों की सीमाओं के चारों ओर  10 किमी. के क्षेत्र को इको-फ्रैजाइल जोन या इको-सेंसिटिव जोन के रूप में जाना जाता है।
  • इन्हें पारिस्थितिक रूप से सुभेद्य क्षेत्रों के रूप में भी जाना जाता है, ये भारत में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा संरक्षित क्षेत्रों, राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आस-पास अधिसूचित क्षेत्र होते हैं।

ESZ घोषित करने का उद्देश्य:

  • इसका मूल उद्देश्य राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभ्यारण्यों के आस-पास कुछ गतिविधियों को बनाए रखना है ताकि संरक्षित क्षेत्रों की निकटवर्ती संवेदनशीलता से पारिस्थितिक तंत्र पर ऐसी गतिविधियों के नकारात्मक प्रभाव को कम किया जा सके। 
  • ये क्षेत्र उच्च सुरक्षा वाले क्षेत्रों से कम सुरक्षा वाले क्षेत्रों के संक्रमण क्षेत्र के रूप में कार्य करेंगे।
  • हालांकि, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम (EPA), 1986 में "पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र" शब्द का उल्लेख नहीं है, लेकिन सरकार द्वारा ESZ घोषित करने के लिए इसका प्रभावी रूप से उपयोग किया गया है।

सुप्रीम कोर्ट की राय 

  • 2022 में, SC ने तमिलनाडु के नीलगिरि में वन भूमि की रक्षा के लिए एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था कि –
  • सभी राज्यों में प्रत्येक संरक्षित वन भूमि, राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य की सीमांकित सीमाओं से 1 Km तक के क्षेत्र को  ESZ होना अनिवार्य है।
  • यदि मौजूदा ESZ 1 km, बफर जोन से आगे जाता है या यदि कोई वैधानिक उपकरण उच्च सीमा निर्धारित करता है, तो ऐसी विस्तारित सीमा प्रबल होगी।
  • यदि बफर जोन की सीमा का प्रश्न एक वैधानिक निर्णय के लिए लंबित है, तो अंतिम निर्णय आने तक 1 km. तक संरक्षित क्षेत्र बनाए रखने के लिए अदालत का निर्देश लागू होगा।
  • अदालत ने निर्देश दिया कि ESZ के भीतर किसी भी उद्देश्य के लिए कोई नया स्थायी ढाँचा नहीं बनाया जा सकता है।
  • अदालत ने प्रधान मुख्य वन संरक्षक (PCCF) और राज्य/केंद्र शासित प्रदेश के गृह सचिव के अनुपालन को सुनिश्चित करने की शक्तियां निहित की हैं।
  • PCCF को ESZ के भीतर सभी संरचनाओं की एक सूची बनानी थी और 3 महीने के भीतर इसकी रिपोर्ट SC को देनी थी।
  • सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तुरंत बाद केरल राज्य विधानसभा ने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया जिसमें केंद्र सरकार से राज्य के अंतर्गत मानव बस्तियों, कृषि भूमि और सार्वजनिक संस्थानों को ESZ के दायरे से छूट देने का आग्रह किया गया।

केरल में SC के दिशा-निर्देश इतने विवादास्पद क्यों हैं?

  • ESZ में अनुमत सभी गतिविधियां तभी जारी रह सकती हैं जब PCCF छह महीने के भीतर अनुमति देता है, लेकिन यह अवधि पहले ही समाप्त हो चुकी है।
  • इसने स्थानीय समुदायों के जीवन को PCCF के हाथों में डाल दिया है जिसका अधिकार अब जंगल से परे ESZ के भीतर आने वाली राजस्व भूमि तक फैला हुआ है। 115 गाँव और 83 आदिवासी बस्तियाँ राज्य के ESZ के अंतर्गत आ जायेंगे।
  • 2011 की जनगणना के अनुसार, केरल का जनसंख्या घनत्व 860 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी.आता है और यह देश के जनसंख्या घनत्व के दोगुने से भी अधिक है तथा यह विस्थापन की समस्या खड़ी कर सकता है ।
  • स्थायी निर्माण पर प्रतिबंध के साथ-साथ अनिवार्य ESZ राज्य में "दुर्गम कठिनाइयाँ" पैदा करेगा।
  • इसके अलावा, मानव आवास और सुविधाओं के साथ बड़ी संख्या में छोटी एवं मध्यम टाउनशिप पहले ही विकसित की जा चुकी हैं।