Jan. 6, 2023

04 january 2023

डाइबैक रोग 

 

चर्चा में क्यों?

  • तेलंगाना में नीम के पेड़ों पर फिर से डाइबैक रोग का प्रसार हुआ है।

डाइबैक रोग के बारे में:

  • देश में पहली बार 1990 के दशक के दौरान उत्तराखंड में देहरादून के पास डाइबैक बीमारी की सूचना मिली थी, जबकि इसे पहली बार 2019 में तेलंगाना में देखा गया था।
  • डाइबैक रोग मुख्य रूप से कवक ‘फ़ोमोप्सिस अज़ादिराचटे’ के कारण होता है।
  • डाइबैक रोग सभी उम्र के नीम के पेड़ों की पत्तियों, टहनियों और पुष्पक्रम को प्रभावित करता है और इससे गंभीर रूप से संक्रमित पेड़ों में लगभग 100% फल उत्पादन का नुकसान होता है।
  • डाइबैक एक कवक रोग है, लेकिन नीम के पेड़ कभी-कभी कीट के प्रकोप से प्रभावित होते हैं और दोनों के संयोजन से इसका प्रभाव बढ़ जाता है।
  • नीम के पेड़ों के लिए खतरा पैदा करने वाले रोग की पहचान तेलंगाना में टहनी अंगमारी और डाइबैक रोग के रूप में की गई है और यह इस वर्ष बड़े पैमाने पर राज्य में फिर से प्रकट हुआ है।
  • लक्षणों की उपस्थिति बरसात के मौसम की शुरुआत के साथ शुरू होती है और बारिश के मौसम के बाद के हिस्से और शुरुआती सर्दियों में उत्तरोत्तर गंभीर हो जाती है।

स्रोत- द हिन्दू 

अनुसूचित जनजातियों के लिए राष्ट्रीय आयोग

चर्चा में क्यों?

  • हाल ही में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने कहा था कि वन (संरक्षण) नियम (FCR), 2022 निश्चित रूप से वन अधिकार अधिनियम, 2006 का उल्लंघन करेगा।

 

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के बारे में:

  • इसकी स्थापना अनुच्छेद 338 में संशोधन करके और संविधान (89वें संशोधन) अधिनियम, 2003 के माध्यम से संविधान में एक नया अनुच्छेद 338(A) सम्मिलित करके की गई थी।
  • इस संशोधन द्वारा, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए तत्कालीन राष्ट्रीय आयोग को दो अलग-अलग आयोगों द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था।

आयोग की संरचना 

  • अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और प्रत्येक सदस्य के पद का कार्यकाल कार्यभार ग्रहण करने की तिथि से तीन वर्ष तक रहता है।
  • अध्यक्ष को केंद्रीय कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया है, और उपाध्यक्ष को राज्य मंत्री और अन्य सदस्यों को भारत सरकार के सचिव का दर्जा दिया गया है।

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (अनुच्छेद 338A के खंड (5) के तहत) के कार्य क्या हैं?

  • संविधान या अन्य कानूनों के तहत अनुसूचित जनजातियों के लिए प्रदान किए गए सुरक्षा उपायों की निगरानी करना।
  • अनुसूचित जनजातियों के अधिकारों और सुरक्षा से संबंधित विशिष्ट शिकायतों की जाँच करना।
  • अनुसूचित जनजातियों के सामाजिक-आर्थिक विकास से संबंधित योजना प्रक्रिया में सलाह देना।
  • अनुसूचित जनजातियों के सामाजिक-आर्थिक विकास से संबंधित आवश्यक कल्याणकारी उपायों पर वार्षिक और अन्य समय में राष्ट्रपति को रिपोर्ट प्रस्तुत करना।
  • अनुसूचित जनजातियों के संबंध में ऐसे अन्य कार्यों का निर्वहन करना, जिन्हें राष्ट्रपति नियम द्वारा निर्दिष्ट कर सकते हैं।

स्रोत- द हिन्दू 

कलसा-बंदूरी नाला परियोजना

चर्चा में क्यों?

  • 30 दिसंबर, 2022 को कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने विधानसभा को बताया कि सरकार को महादायी पर कलसा- बंदूरी नाला पर दो विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR) के लिए केंद्र से मंजूरी मिल गई है। इसने पड़ोसी राज्य गोवा के साथ इस मुद्दे पर अपने लंबे समय से चले आ रहे विवाद को और बढ़ा दिया है।

कलसा- बंदूरी नाला परियोजना के बारे में:

  • कलसा- बंदूरी नाला परियोजना का उद्देश्य बेलागवी, धारवाड़, बागलकोट और गडग जिलों की पेयजल जरूरतों को पूरा करने के लिए महादायी से जल के प्रवाह को परिवर्तित करना है।
  • हालांकि यह परियोजना पहली बार 1980 के दशक की शुरुआत में प्रस्तावित की गई थी, लेकिन कर्नाटक, गोवा और महाराष्ट्र के बीच विवाद के कारण यह दस्तावेजों पर ही बनकर रह गयी थी।
  • योजनाओं के अनुसार, महादायी की सहायक नदियों- कलसा और बंदूरी धाराओं पर बैराज बनाए जायेंगे और पानी को कर्नाटक के सूखे जिलों की ओर मोड़ दिया जायेगा।
  • महादायी नदी कर्नाटक के बेलागवी जिले में भीमगढ़ वन्यजीव अभयारण्य के अंदर से निकलती है और गोवा से होते हुए अरब सागर में गिरती है।

ट्रिब्यूनल ने क्या कहा?

  • यूपीए सरकार ने नवंबर, 2010 में ट्रिब्यूनल का गठन किया था।
  • ट्रिब्यूनल ने 2018 में महादायी नदी बेसिन से कर्नाटक को 13.42 TMC , महाराष्ट्र को 1.33 TMC और गोवा को 24 TMC जल के उपयोग को वितरित किया था।
  • कर्नाटक के हिस्से में, 5.5 TMC पीने के पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए था और 8.02 TMC पनबिजली उत्पादन के लिए था।
  • 5.5 TMC में से 3.8 TMC को कलसा और बंदूरी नालों (नहरों) के जरिए मालप्रभा बेसिन में मोड़ा जाना था।
  • इसे फरवरी, 2020 में केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित किया गया था।

स्रोत- द इंडियन एक्सप्रेस 

रानी वेलु नचियार

चर्चा में क्यों?

  • हाल ही में, भारत के प्रधानमंत्री ने रानी वेलु नचियार को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित की।

प्रमुख बिंदु 

  • रानी वेलु नचियार का जन्म 3 जनवरी, 1730 को रामनाथपुरम, तमिलनाडु में हुआ था।
  • वह पहली रानी थीं जिन्होंने ब्रिटिश शासन का सक्रिय रूप से विरोध किया और सिपाही विद्रोह से कई वर्ष पहले औपनिवेशिक शासन के खिलाफ लड़ाई लड़ी।
  • उन्होंने युद्ध में हथियारों के प्रयोग तथा वलारी, सिलंबम (छड़ी का उपयोग करके लड़ना), घुड़सवारी और तीरंदाजी जैसी मार्शल आर्ट के लिए प्रशिक्षण प्राप्त प्रशिक्षित किया था।
  • वह कई भाषाओं की ज्ञाता थीं। जैसे- उन्हें फ्रेंच, अंग्रेजी और उर्दू जैसी भाषाओं में महारत हासिल थी।
  • उन्होंने शिवगंगई के राजा मुथुवदुगनाथपेरिया उदययथेवर से विवाह किया, जिनसे उन्हें एक बेटी हुई। जब उनके पति को ब्रिटिश सैनिकों ने मार डाला, तो वह युद्ध में शामिल हो गईं।

अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध:

  • हैदर अली और गोपाल नायकर के सहयोग से, उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड़ा और विजयी हुईं
  • उन्होंने 1780 में मरुदु भाइयों को राज्य का प्रशासन सँभालने की शक्तियाँ प्रदान कीं।

स्रोत- पीआईबी 

एशियाई-प्रशांत डाक संघ (APPU)

चर्चा में क्यों?

  • हाल ही में भारत एशियाई-प्रशांत डाक संघ का नेतृत्व संभालेगा।

प्रमुख बिंदु 

  • भारत जनवरी, 2023 से एशियाई-प्रशांत डाक संघ का नेतृत्व संभालेगा।
  • वहाँ भारत के चार वर्षों के कार्यकाल के दौरान डॉ. विनय प्रकाश सिंह संघ के महासचिव का पदभार ग्रहण करेंगे।

एशियाई-प्रशांत डाक संघ (APPU)

  • एशियन पैसिफिक पोस्टल यूनियन (APPU) एक अंतर-सरकारी संगठन है, जिसमें एशिया-प्रशांत क्षेत्र के 32 सदस्य देश शामिल हैं।
  • इसका मुख्यालय बैंकॉक, थाईलैंड में है।
  • यह इस क्षेत्र में यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन (यूपीयू) का एकमात्र प्रतिबंधित संघ है, जो संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है।
  • इस संगठन का महासचिव, संघ की गतिविधियों का नेतृत्व करता है। यह तीन निकायों अर्थात् कांग्रेस, कार्यकारी परिषद और APPU ब्यूरो से मिलकर बना है।
  • एशियन पैसिफिक पोस्टल यूनियन (APPU) का उद्देश्य सदस्य देशों के बीच डाक संबंधों का विस्तार, सुविधा और सुधार करना और डाक सेवाओं के क्षेत्र में सहयोग को बढ़ावा देना है।

स्रोत- पीआईबी