हाल ही में वर्ल्ड इकनोमिक फोरम (WEF) द्वारा जारी जेंडर गैप रिपोर्ट में भारत ने 135वां स्थान प्राप्त किया और जमीनी स्तर पर महिला राजनीतिक प्रतिनिधित्व को शामिल करने के लिए भारत के सफलतापूर्वक प्रयास की प्रशंसा की गयी।
प्रमुख बिंदु
लैगिक अंतर महिलाओं और पुरुषों के बीच का अंतर है जो सामाजिक, राजनीतिक, बौद्धिक, सांस्कृतिक, या आर्थिक उपलब्धियों या दृष्टिकोण में परिलक्षित होता है।
WEF की वार्षिक बैठक दावोस में आयोजित की गयी।
भारत ने 146 देशों में 135 वाँ स्थान प्राप्त किया जो अच्छा प्रदर्शन नहीं है। 2021 में, भारत 156 देशों में से 140वें स्थान पर था।
भारत ने विश्व आर्थिक मंच की ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट के लिए एक पैरामीटर के रूप में स्थानीय सरकारी निकायों में महिलाओं की भागीदारी को शामिल करने के लिए सफलतापूर्वक प्रयास किया है, जहाँ यह परंपरागत रूप से अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाया है।
राजनीतिक क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी को दर्शाते हुए महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने भारत में पंचायत स्तर पर स्थानीय रूप से चुनी गई जमीनी स्तर की 14 लाख महिलाओं की जानकारी प्रदान की।
WEF के “सेंटर फॉर द न्यू इकोनॉमी एंड सोसाइटी”में कहा गया कि वह स्थानीय राजनीतिक निर्णयों में महिलाओं की वैश्विक रूप से तुलनात्मक भागीदारी का आकलन करने के लिए डेटा संग्रह और क्रॉस-कंट्री बेंचमार्किंग प्रयासों में सुधार पर काम करेगा।
महत्व
WEF के माध्यम से, सार्वजनिक-निजी पहलों की पहचान करने और उन्हें बढ़ाने के लिए भारत में कौशल और लैंगिक समानता स्थापित करने में भी मदद मिलेगी।
यह भारतीय कार्यबल को भविष्य के लिए तैयार करेगा तथा भारतीय डिजिटल और हरित अर्थव्यवस्था के विकास का समर्थन एवं विस्तार करेगा।
महिला और बाल विकास मंत्रालयके अनुसार ,भारत का परंपरागत रूप से लैंगिक अंतराल रिपोर्ट में प्रदर्शन अच्छा नहीं होने का एक प्रमुख कारण ,पंचायतों जैसे जमीनी स्तर के लोकतांत्रिक संस्थानों में महिलाओं की भागीदारी के मापदंडों को कभी नहीं गिना जाना है।
स्रोत- द हिन्दू
येलो बैंड रोग
चर्चा में क्यों ?
हाल ही में, पूर्वी थाईलैंड के समुद्र तल के विशाल क्षेत्र में येलो बैंड रोग प्रवालों के विनाश का कारण बन रहा है।
येलो बैंड रोग के बारे में:
येलो-बैंड रोग का नाम कोरल को नष्ट करने से पहले रंग बदलने के कारण रखा गया है, इसे पहली बार दशकों पहले देखा गया था।
इसके कारण कोरल रीफ को व्यापक नुकसान पहुंचा है।
हाल ही में इस रोग का कोई इलाज ज्ञात नहीं है और विरंजक प्रवाल एक बार इस रोग से संक्रमित होने के बाद पुनः बहाल नहीं होंगे।
वैज्ञानिकों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण अत्यधिक मछली पकड़ना, प्रदूषण और पानी का बढ़ता तापमान रीफ को येलो-बैंड रोग के प्रति अधिक संवेदनशील बना सकता है।
स्रोत- द हिन्दू
1988 का मोटर वाहन अधिनियम
चर्चा में क्यों ?
हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को मोटर वाहन अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने के लिए छह महीने की समय-सीमा दी है, जो सड़क दुर्घटना के पीड़ितों को मुआवजे का अनुदान प्रदान करता है।
1988 के मोटर वाहन अधिनियम के बारे में:
यह एक व्यापक अधिनियम है जिसने मोटर वाहन अधिनियम, 1939 को प्रतिस्थापित किया है।
इसे 1 जुलाई, 1989 को लागू किया गया था।
अधिनियम सड़क परिवहन वाहनों के सभी पहलुओं को कवर करता है, जैसे- पंजीकरण, लाइसेंसिंग, विनियमन, दावे, दुर्घटना के मामले में मुआवजा आदि।
अधिनियम पूरे भारत में मोटर दुर्घटनाओं से संबंधित सभी मामलों को नियंत्रित करता है।
मोटर वाहन दुर्घटना में घायल व्यक्ति या मोटर वाहन दुर्घटना में मृत व्यक्ति के कानूनी प्रतिनिधि मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के तहत मुआवजे के लिए आवेदन कर सकते हैं।
अधिनियम को 2019 और 2022 में संशोधित किया गया था। ये दोनों संशोधन तीसरे पक्ष के बीमा और दावों के प्रबंधन से संबंधित हैं, जिसमें मोटर वाहन दुर्घटना अपीलीय न्यायाधिकरण के समक्ष दावा दायर करना भी शामिल है।
मोटर दुर्घटना अपीलीय न्यायाधिकरण:
यह मोटर वाहन अधिनियम, 1988 द्वारा बनाया गया था।
इसका गठन मोटर वाहनों द्वारा दुर्घटनाओं के पीड़ितों को त्वरित उपचार प्रदान करने के लिए किया गया है।
मोटर वाहन दुर्घटना दावा दायर करने की कोई समय सीमा नहीं है।
राज्य सरकार एक या एक से अधिक मोटर दुर्घटना अपीलीय न्यायाधिकरणों का गठन कर सकती है।
मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण से संबंधित मामलों में सिविल न्यायालयों का क्षेत्राधिकार नहीं है।
अपीलीय न्यायाधिकरणों के खिलाफ अपीलें उच्च न्यायालयों में होंगी जो अपीलीय न्यायाधिकरण की तारीख से 90 दिनों के भीतर उच्च न्यायालय में दायर की जानी चाहिए।
स्रोत- द हिन्दू
'ऑप्स अलर्ट' अभ्यास
चर्चा में क्यों ?
हाल ही में, सीमा सुरक्षा बल (BSF) ने सात दिवसीय "ऑप्स अलर्ट" अभ्यास शुरू किया है।
प्रमुख बिंदु
यह अभ्यास 21 जनवरी से 28 जनवरी तक चलेगा।
सरक्रीक (दलदली क्षेत्र) से गुजरात में कच्छ के रण और राजस्थान के बाड़मेर जिले तक भारत-पाक अंतर्राष्ट्रीय सीमा के साथ-साथ, अभ्यास के हिस्से के रूप में गहराई वाले क्षेत्रों के साथ-साथ खाड़ी और 'हरामी नाला' में विशेष अभियान चलाया जाएगा।
इसने अभ्यास के हिस्से के रूप में सार्वजनिक आउटरीच कार्यक्रमों की भी योजना बनाई है।
उद्देश्य:
गुजरात के कच्छ जिले और राजस्थान के बाड़मेर में भारत-पाकिस्तान सीमा पर सुरक्षा बढ़ाना।
इसका आयोजन गणतंत्र दिवस समारोह के दौरान "राष्ट्र-विरोधी तत्वों के किसी भी बुरे इरादे को विफल करने" के लिए किया जा रहा है।
इसकी सुरक्षा बढ़ाने के लिए, रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण सरक्रीक और हरामी नाला दलदली क्षेत्र में बीएसएफ सैनिकों को तैनात करने के लिए पहली बार कंक्रीट के "स्थायी लंबवत बंकर" बनाए जा रहे हैं।
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने क्षेत्र में पाकिस्तानी मछुआरों और मछली पकड़ने वाली नौकाओं की लगातार घुसपैठ को देखते हुए भुज सेक्टर के साथ इस क्षेत्र में आठ बहुमंजिला बंकर सह अवलोकन चौकियों के निर्माण के लिए 50 करोड़ रुपये की धनराशि मंजूर की है।
सरक्रीक
सरक्रीक (मूल रूप से बाण गंगा नाम) का नाम एक ब्रिटिश प्रतिनिधि के नाम पर रखा गया है।
यह कच्छ दलदली भूमि के रण में भारत और पाकिस्तान के बीच विवादित पानी की 96 किमी. लंबी पट्टी है।
यह अरब सागर में खुलती है और पाकिस्तान के सिंध प्रांत से गुजरात के कच्छ क्षेत्र को मोटे तौर पर विभाजित करती है।
पाकिस्तान, मुहाने की पूरी चौड़ाई का दावा करता है, जबकि भारत का कहना है कि सीमांकन बीच में होना चाहिए।
हरामी नाला -इसे सरक्रीक क्षेत्र के रूप में भी जाना जाता है।यह क्षेत्र 22 किमी. लंबा और लगभग 8 किमी. चौड़ा दलदली इलाका है जो ज्यादातर समय नौगम्य रहता है।
स्रोत- द हिन्दू
वैगनर समूह
चर्चा में क्यों ?
अमेरिका ने रूस के वैगनर समूह को एक "पारंपरिक आपराधिक संगठन" के रूप में नामित किया, जो यूक्रेन में लड़ रही निजी रूसी सेना पर दबाव बनाने में सफल रहा है।
वैगनर ग्रुप के बारे में
यह ठेकेदारों का एक नेटवर्क है जो भाड़े पर सैनिकों की आपूर्ति करता है।
ऐसा कहा जाता है कि यह दिमित्री उत्किन, एक पूर्व विशेष बल अधिकारी, रूस की सैन्य खुफिया सेवा के एक सदस्य और दोनों चेचन युद्धों के एक अनुभवी द्वारा स्थापित किया गया था।
यह स्पष्ट रूप से निजी समूह है, लेकिन CSIS के अनुसार, व्लादिमीर पुतिन के तहत "इसका प्रबंधन और संचालन रूसी सैन्य और खुफिया समुदाय के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है"।
वैग्नर ग्रुप पहली बार 2014 में रूस के क्रीमिया पर कब्जा करने के दौरान सामने आया था। यह अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और मध्य पूर्व में संघर्षों में शामिल रहा है।
आलोचना: इसने अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून सहित अंतर्राष्ट्रीय कानून के उल्लंघन में हिंसा को बढ़ावा देने, प्राकृतिक संसाधनों को लूटने और नागरिकों को डराने के लिए दुनिया भर के संघर्ष क्षेत्रों में भर्ती, प्रशिक्षित और निजी सैन्य गुर्गों को भेजा है। इसके बलों को यूक्रेन के कुछ हिस्सों में लड़ने के लिए जाना जाता है।