Dec. 13, 2022

भारत की रणनीति में 'चीन टेस्ट' की भूमिका

प्रश्न पत्र- 2 (अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध)

स्रोत- द हिन्दू 

चर्चा में क्यों?

  • हाल ही में, यह देखा गया है कि भारत के रणनीतिक निर्णय मैट्रिक्स को चीन टेस्ट पास करना चाहिए।

चीन टेस्ट के बारे में

  • एक कुशल 'चीन टेस्ट', न्यूनतम संभावित नीति उपयोगिता के साथ एक विश्लेषणात्मक उपकरण के रूप में, दीर्घकालिक रणनीतिक निर्णय लेने की प्राथमिकता में सहायक हो सकता है।

रणनीतिक निर्णय के निष्पादन के दृष्टिकोण से, 'चीन टेस्ट' में तीन अलग-अलग तत्व शामिल हैं, जो इस प्रकार हैं:

  1. यह आकलन करना कि कैसे एक निश्चित भारतीय निर्णय या एक विशिष्ट क्षेत्रीय विकास, चीनी क्षेत्रीय रणनीति या हितों के साथ मेल खाता है।
  2. भारत के निर्णय या एक निश्चित क्षेत्रीय विकास के आकलन के लिए भारत को द्वितीयक विरोधाभासों के स्तर पर संशोधन करने की आवश्यकता होगी।
  3. इस बात का आकलन करना कि क्या इसके लिए आंतरिक रूप से किसी बड़े नीति परिवर्तन की आवश्यकता होगी। 

भारत- अमेरिका सम्बन्ध में 'चीन टेस्ट' का अनुप्रयोग 

  • भारत का अमेरिका के साथ एक जटिल सम्बन्ध रहा है जो धीरे-धीरे सामान्य होता जा रहा है और पारस्परिक हितों पर आधारित है।
  • अमेरिका दक्षिणी एशिया (पाकिस्तान, सामान्य रूप से दक्षिण एशिया, हिंद-प्रशांत और शायद यहाँ तक कि तालिबान)  से पुनः जुड़ने की कोशिश कर रहा है।
  • ऐसा प्रतीत होता है कि 2020 में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर चीन के साथ गतिरोध से भारत ने जो सबक सीखा, वह यह था कि यह शायद अमेरिका के साथ भारत की बढ़ती निकटता का परिणाम था।
  • चीन इस क्षेत्र पर हावी होना चाहता है क्योंकि यह स्पष्ट रूप से उसके हित में नहीं है कि वह इस क्षेत्र में पुनः अमेरिकी जुड़ाव या भारत- अमेरिकी निकटता बढ़ने दे।
  • इस क्षेत्र में उदासीन भारत-यू.एस. रणनीतिक जुड़ाव, बीजिंग के दीर्घकालिक उद्देश्यों में मदद करेगा।

रूस के संदर्भ में चीन टेस्ट का अनुप्रयोग

  • यूक्रेन युद्ध के मद्देनजर भारत-रूस संबंध आज विश्व में सबसे अधिक विवादित द्विपक्षीय संबंधों में शामिल हैं।
  • मॉस्को से अलग में भारत पर पश्चिमी दबाव के सामने भारत-रूस संबंधों के पीछे के तर्क की जाँच करने के लिए चीन टेस्ट के अनुप्रयोग को देखना होगा।
  • अमेरिका और उसके सहयोगी चाहते हैं कि भारत, मास्को के साथ बातचीत करना बंद करे और यूक्रेन के खिलाफ उसकी आक्रामकता की निंदा करे , जिसे भारत ने अब तक करने से इनकार किया है।
  • इसके बदले में,चीनी आक्रामकता के खिलाफ भारतीय हितों के अधिकतम समायोजन हेतु पश्चिमी देशों द्वारा राजनयिक और राजनीतिक समर्थन की पेशकश की जा रही है।
  • मॉस्को और बीजिंग के बीच बढ़ती नजदीकियां भी भारत-रूस संबंधों की मजबूती को कम करती हैं।

रूस के साथ संबंधों को कम करने के प्रभाव

  • यदि भारत पूरी तरह से रूस से अलग हो जाता है, तो इसकी (रूस) चीन की तरफ जाने की संभावना है।
  • भारत-रूस संबंधों के अभाव में, चीन-रूस सहयोग के मजबूत होने की संभावना है तथा भारत अपने उत्तर और पश्चिम में महाद्वीपीय क्षेत्र से कट जाएगा।
  • भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रियायती ऊर्जा, सस्ते रक्षा उपकरण और समर्थन मिलना जारी है। मॉस्को अपने पश्चिमी भागीदारों की तुलना में नई दिल्ली की 'राजनीतिक संवेदनशीलता' को अधिक समझता रहा है।
  • भारत-रूस संबंधों के अभाव में इनमें से कई सुविधाएँ बंद हो सकती हैं और ऐसी स्थिति का स्वाभाविक लाभार्थी निस्संदेह चीन होगा।
  • यह मॉस्को को बीजिंग के साथ या उसके बिना पाकिस्तान की ओर धकेल सकता है।
  • रूस से भारत की वापसी, मध्य एशिया में भी चीन की खुली छूट को सुनिश्चित करेगी।

आगे की राह 

  • दक्षिणी एशिया और चीन को कूटनीति से संतुलित करना भारत की वृहद् रणनीतिक योजना और निर्णय क्षमता का एक प्रमुख तत्व होना चाहिए।
  • भारत-रूस संबंध कमजोर हो रहे हैं, नई दिल्ली को मास्को के साथ अपने संबंध जारी रखने के लिए एक मजबूत आधार की आवश्यकता है।
  • G-20 की अध्यक्षता के दौरान चीन के साथ व्यवहार करना, भारत के लिए एक "चुनौती" होगी और नई दिल्ली को बीजिंग के प्रति "सतर्क दृष्टिकोण" अपनाना चाहिए, उसे उसके कार्यों से आंकना चाहिए, न कि शब्दों से।
  • दक्षिण एशिया में भारत का उद्देश्य पाकिस्तान के साथ संघर्षों को समाप्त करना होना चाहिए, ताकि वह चीन पर ध्यान केंद्रित कर सके।

 

 

                                                                                                    मुख्य परीक्षा प्रश्न 

 

प्रश्न- क्या रूस और अमेरिका के साथ संबंध जारी रखने से भारत को चीन की चुनौती से बेहतर तरीके से निपटने में मदद मिलेगी?टिप्पणी कीजिए।