
भूत कोला
चर्चा में क्यों ?
हाल ही में ‘भूत कोला’ नामक लोक कला को एक प्रसिद्ध कन्नड़ फिल्म ‘कांतारा’ में दर्शाया गया है|
भूत कोला के बारे में
तुलु भाषा में भूत का अर्थ है 'आत्मा' और कोला का अर्थ है 'खेल'| कोला को नेमा भी कहा जाता है जिसका अर्थ है ‘समारोह’|
यह मूल रूप से कर्नाटक में दक्षिण कन्नड़ और केरल के कुछ जिलों में तुलु भाषी लोगों द्वारा मनाया जाने वाला एक आध्यात्मिक पूजा अनुष्ठान है| मान्यता के अनुसार इसमें उन स्थानीय आत्माओं की पूजा की जाती है जो उनके गांव को विपदाओं से बचाती हैं|
भूत कोला एक वार्षिक अनुष्ठान प्रदर्शन है | एक प्रशिक्षित व्यक्ति ,जो समाज की निचली जाति से सम्बंधित हो, के द्वारा ही अनुष्ठान को किया जाता है| अनुष्ठानकर्ता अस्थायी रूप से स्वयं भगवान बनकर लोगों की समस्याओं का जवाब देता है|
कलाकार ताड़ के पत्ते से बनी स्कर्ट पहनता है और शाम की शुरुआत के साथ अपने तेल से सने चहरे पर स्थानीय रूप से बने रंगों को लगाकर कार्यक्रम को शुरू करता है| कलाकार समाज में काफी सम्माननीय होता है|
तुलु आदिवासी परंपरा के अनुसार, भूत कोला या दैव कोला एक "गैर-वैदिक" अनुष्ठान है इसमें ढोल पीटने और पटाखे जलाने के लिए जुलूस में 'भूतों' का प्रतिनिधित्व करने वाली मूर्तियों को निकाला जाता है | तलवार और घंटियों के साथ कलाकार 'शैतान' की नकल करता है और इसमें अनुष्ठानों में गर्म कोयले के बिस्तर पर चलना भी शामिल होता है|
भूत कोला यक्षगान से प्रभावित है, जो तटीय कर्नाटक में किया जाने वाला सर्वाधिक लोकप्रिय लोक नृत्य है|
यक्षगान नृत्य
यक्षगान, कर्नाटक में प्रचलित पारम्परिक नृत्य-लोकनाट्य है| इसकी शुरुआत 10वीं से 16वीं शताब्दी के बीच मानी जाती है|यक्षगान की परंपरा लगभग 800 वर्ष पुरानी है| इसमें संगीत की अपनी एक विशिष्ट शैली है जो भारतीय शास्त्रीय संगीत की कर्नाटक और हिंदुस्तानी शैलियों दोनों से अलग है| यह संगीत, नृत्य, भाषण और वेशभूषा का एक समृद्ध कलात्मक मिश्रण है, इस कला में संगीत नाटक के साथ-साथ नैतिक शिक्षा और जन मनोरंजन जैसी विशेषताओं को भी महत्त्व दिया जाता है|यह वैष्णव भक्ति आंदोलन से काफी प्रभावित है| इसकी कहानियाँ मूलतः रामायण, महाभारत, भागवत तथा अन्य हिन्दू महाकाव्यों से ली गई हैं|
इसमें चेंड, मेडल, मृदंगम तथा घंटियों जैसे वाद्ययंत्रों का प्रयोग किया जाता हैं| रामचंद्र हेगड़े तथा शेनी गोपालकृष्ण भट्ट इसके प्रमुख कलाकार हैं| यह कन्नड़ भाषा में गाया जाता है और मलयालम तथा तुलु भाषाओं में इसका मंचन किया जाता है|
हाल ही में, यक्षवाहिनी ट्रस्ट के अंतर्गत कुछ यक्षगान प्रेमियों द्द्वारा यक्षगान की 900 से अधिक लिपियों को डिजटलीकृत किया गया है|
तुलु भाषा
तुलु एक द्रविड़ भाषा है जो मुख्य रूप से कर्नाटक के दो तटीय जिलों दक्षिण कन्नड़ और उडुपी तथा केरल के कासरगोड जिले में बोली जाती है| तुलु बोलने वाले लोग सीमित क्षेत्रों तक फैले होने के कारण अनौपचारिक रूप से शेत्र तुलु नाडु के नाम से जाने जाते हैं|
तुलु में लोक-गीत रूपों जैसे पद्दना और पारंपरिक लोक रंगमंच यक्षगान के साथ एक समृद्ध मौखिक साहित्य परंपरा है|
वर्तमान में, तुलु देश में आधिकारिक भाषा नहीं है| तुलु को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने का प्रयास किया जा रहा है| परन्तु संसद सदस्य और विधायक क्रमशः संसद और राज्य विधानसभाओं में तुलु में बोल सकते हैं| प्रतियोगी परीक्षाओं के उम्मीदवार अखिल भारतीय प्रतियोगी परीक्षाएं जैसे तुलु में सिविल सेवा परीक्षा लिख सकते हैं।