
28 november 2022
मेधा पाटकर - नर्मदा बाँध-विरोधी आंदोलन
चर्चा में क्यों ?
हाल ही में गुजरात के चुनाव में मेधा पाटकर चर्चा का विषय बनी हुई हैं जिन्होंने नर्मदा बचाओ आन्दोलन का नेतृत्व किया था
नर्मदा आंदोलन - बड़े बाँधों के विरोध में और विस्थापितों के पुनर्वास के अधिकार के रूप में विकसित हुआ था जिसका विस्तार अन्य समान परियोजनाओं में भी देखने को मिला। जिसने इन्हें गुजरात सरकार के साथ सीधे संघर्ष में भी ला खड़ा किया और सरदार सरोवर बाँध परियोजना के विकास पर सरकार को कई विरोधों का सामना करना पड़ा।
सरदार सरोवर बाँध परियोजना
- नर्मदा नदी पर सरदार सरोवर बाँध परियोजना, जिसके लिए प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 5 अप्रैल, 1961 को आधारशिला रखी थी, नर्मदा बेसिन में सिंचाई और बिजली उत्पादन के लिए नदी जल का उपयोग करने के लिए 49.08 मीटर की सम्पूर्ण जलाशय स्तर (FRL) की ऊँचाई थी।
- 1965 में, एक समिति द्वारा 152.45 मीटर के FRL के साथ एक उच्च बाँध की सिफारिश की गई थी।
- इस पर अक्टूबर, 1969 में गठित नर्मदा जल विवाद न्यायाधिकरण ट्रिब्यूनल ने 1979 में अपना अंतिम निर्णय दिया तथा 138.68 मीटर पर FRL तय किया। साथ ही नदी को तटवर्ती राज्यों - गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र के बीच पानी और हाइड्रो पावर परियोजना का हिस्सा बनाया।
- इस निर्णय को 2025 तक न तो बदला जाना था और न ही इसकी समीक्षा की जानी थी। इस बाँध का उद्देश्य गुजरात के कम से कम 15 जिलों और राजस्थान एवं महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराना तथा गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के बीच उत्पन्न पनबिजली को साझा करना था।
- बाँध का निर्माण 1987 में शुरू हुआ, जिसे विश्व बैंक के फंड से समर्थन मिला। परन्तु बाँध-विरोधी कार्यकर्त्ताओं के अत्यधिक दबाव में, विश्व बैंक ने 1993 में परियोजना से हाथ खींच लिया। निर्माण कार्य को बाद में मई, 1995 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रोक दिया गया था।
मेधा पाटकर के बारे में
- 31 वर्षीय मेधा पाटकर ने अपनी पीएचडी बीच में छोड़, नर्मदा बचाओ आंदोलन (NBA) शुरू किया। स्वतंत्रता सेनानी और मजदूर संघ के नेता वसंत खानोलकर की बेटी मेधा "उत्पीड़ित" और गरीबों से जुड़े कई मुद्दों में सक्रिय रही।
- 1980 के दशक में, आंदोलन के हिस्से के रूप में, पाटकर ने मध्य प्रदेश से सरदार सरोवर परियोजना स्थल तक 36-दिवसीय एकजुटता मार्च का आयोजन किया। पाटकर के आंदोलन, स्थानीय लोगों के विरोध के साथ ने विश्व बैंक को मोर्स कमीशन स्थापित करने के लिए मजबूर किया।इसने परियोजना की एक स्वतंत्र समीक्षा की तथा निष्कर्ष निकाला कि इस परियोजना ने पर्यावरण और पुनर्वास नीतियों का उल्लंघन किया।
- पाटकर आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले में परमाणु संयंत्र के लिए भूमि अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलन का भी हिस्सा थीं।
- मार्च, 2022 में, उन्होंने सिल्वरलाइन सेमी-हाई स्पीड रेलवे कोर पर सवाल उठाया।
SOURCE –IE
गाँधी की मूर्ति संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में स्थापित
चर्चा में क्यों ?
हाल ही में भारत द्वारा सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता के दौरान महात्मा गांधी की प्रतिमा का उद्घाटन भारत की ओर से उपहार के रूप में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में करने की घोषणा की गयी।
पहली बार महात्मा गाँधी की मूर्ति , अंतर्राष्ट्रीय निकाय के किसी मुख्यालय में स्थापित की जाएगी।
2023 को 'बाजरा के अंतर्राष्ट्रीय वर्ष' के रूप में नामित किया गया है।
मूर्ति के बारे में
- मूर्ति का निर्माण, भारतीय मूर्तिकार पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित राम सुतार द्वारा किया गया है, जिन्होंने गुजरात के 'स्टैच्यू ऑफ यूनिटी' को भी डिजाइन किया है।
- मूर्ति का उद्घाटन 14 दिसंबर को परिषद की भारत द्वारा अध्यक्षता के लिए विदेश मंत्री एस. जयशंकर की संयुक्त राष्ट्र यात्रा के दौरान किया जाएगा।
- प्रतिमा को संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय के विशाल उत्तरी लॉन में रखा जाएगा।
- संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में प्रदर्शन के लिए भारत की ओर से एकमात्र अन्य उपहार भगवान सूर्य देव की 11वीं शताब्दी की काले पत्थर की मूर्ति है, जिसे 26 जुलाई, 1982 को दान किया गया था।
- वर्तमान में सम्मेलन भवन में प्रदर्शित पाल कला की मूर्ति , पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा संयुक्त राष्ट्र को उपहार के रूप में प्रस्तुत की गई थी। तत्कालीन महासचिव जेवियर पेरेज़ डी क्यूएलर ने संयुक्त राष्ट्र की ओर से मूर्ति को स्वीकार किया था।
- 14 दिसंबर को गाँधी प्रतिमा का उद्घाटन किया जाएगा और समारोह में सुरक्षा परिषद के सभी 15 सदस्यों के साथ-साथ आने वाले पांच नए सदस्यों के शामिल होने की उम्मीद है, जो 1 जनवरी, 2023 से परिषद में अपना स्थान ग्रहण करेंगे।
- संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस और संयुक्त राष्ट्र महासभा के 77वें सत्र के अध्यक्ष साबा कोरोसी भी इस अवसर पर उपस्थित होंगे।
महात्मा गाँधी की प्रतिमा क्यों ?
- महात्मा गाँधी की अहिंसा और शांति की विरासत चिरस्था यी है और प्रधानमंत्री का वाक्य"यह युद्ध का युग नहीं है" उसी विरासत को बयां करता है तथा दुनिया में इसे व्यापक रूप से स्वीकार किया गया है।
- भारत ने अगस्त, 2021 में परिषद की अपनी अध्यक्षता के दौरान प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में से एक के रूप में शांति व्यवस्था को उजागर किया था। इसके अलावा सदस्य देशों को शांति स्थापना कार्यों की मेजबानी करने पर बल दिया।
SOURCE –TH
विझिंजम अंतर्राष्ट्रीय बंदरगाह
चर्चा में क्यों ?
हाल ही में, विझिंजम इंटरनेशनल सीपोर्ट लिमिटेड का विरोध कर रहे मछुआरों ने एक स्थानीय पुलिस स्टेशन पर हमला किया।
यह बंदरगाह अडानी समूह के तहत स्थापित है।
विरोध का कारण
- बड़ी लागत वाली इस परियोजना को पारिस्थितिक अनुकूल बनाये बिना और तटीय समुदाय की चिंताओं को पर्याप्त रूप से संबोधित किए बिना कार्यान्वित किया जा रहा है।
- केरल सरकार द्वारा विझिंजम अंतर्राष्ट्रीय गहरे पानी के बहुउद्देशीय बंदरगाह को विकसित करने की जानकारी दी गयी थी। जिसके तहत एक अलग कंपनी बनाई गयी- विझिंजम इंटरनेशनल सीपोर्ट लिमिटेड (VISL)
- यह एक विशेष उद्देश्य वाली सरकारी कंपनी (केरल सरकार के पूर्ण स्वामित्व वाली) के रूप में पंजीकृत है जो केरल के तिरुवनंतपुरम जिले में विझिंजम में ग्रीनफील्ड बंदरगाह के विकास के लिए कार्यान्वयन एजेंसी के रूप में कार्य करेगी।
परियोजना का महत्व
- भारत का लगभग 95 % विदेशी व्यापार समुद्री मार्ग से होता है। मूल्य के संदर्भ में, यह विदेशी व्यापार का 70 % है।
- लगभग 30 प्रतिशत माल ढुलाई भारतीय प्रायद्वीप के दक्षिण में अंतर्राष्ट्रीय शिपिंग मार्ग के माध्यम से होती है, जो विझिंजम से 10 समुद्री मील दूर है।
- वर्तमान में, भारत के पास गहरे पानी का कंटेनर ट्रांसशिपमेंट टर्मिनल नहीं है और इसके लिए भारत कोलंबो, सिंगापुर के बंदरगाहों पर निर्भर है।
- इसके परिणामस्वरूप विदेशी मुद्रा और राजस्व का महत्वपूर्ण नुकसान होता है, जिसका अनुमान लगभग 2,500 करोड़ रुपये प्रति वर्ष है।
SOURCE –IE
मुद्रा ऋण का NPA 7 वर्षों में केवल 3.3%
चर्चा में क्यों ?
8 अप्रैल, 2015 को योजना के लॉन्च के बाद से सभी बैंकों (सार्वजनिक, निजी, विदेशी, राज्य सहकारी, क्षेत्रीय ग्रामीण और लघु वित्त) के लिए प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत NPA 46,053.39 करोड़ रुपये तक बढ़ गया।
2015 से 2022 के बीच, मुद्रा ऋण के उधारकर्त्ताओं , अनिवार्य रूप से सूक्ष्म और लघु उद्यमों, ने बैंकों को अपनी EMI (समान मासिक किस्त) का भुगतान किया है। एक RTI के आंकड़ों के आधार पर मुद्रा ऋण के लिए बैंकों के NPA , जिनमें कोविड -19 महामारी के दौरान बढ़ाए गए ऋण भी शामिल हैं, औसत रूप से कम हैं।
मुद्रा योजना
- MUDRA लिमिटेड द्वारा अधिसूचित बैंकों, NBFC, MFI और अन्य पात्र वित्तीय मध्यस्थों द्वारा MUDRA ऋण दिए जाते हैं।
- गैर-कॉर्पोरेट, गैर-कृषि, छोटे और सूक्ष्म उद्यमों को 10 लाख रुपये तक का ऋण प्रदान करने के लिए 8 अप्रैल, 2015 को माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट एंड रिफाइनेंस एजेंसी (मुद्रा) शुरू की गई थी।
- MUDRA ऋण निम्नलिखित तीन श्रेणियों के अंतर्गत दिए जाते हैं-
- 50,000/- रू. तक के ऋण (शिशु)
- 50,001 से 5 लाख रू. तक के ऋण (किशोर)
- 5,00,001/- से 10 लाख रू. तक के ऋण (तरुण)
- उद्देश्य - नई पीढ़ी के इच्छुक युवाओं के बीच उद्यमशीलता को बढ़ावा देने के साथ किशोर और तरुण श्रेणियों के साथ शिशु ऋण पर अधिक ध्यान दिया जाना है।
- पूंजीगत संपत्ति / कार्यशील पूंजी/विपणन संबंधी आवश्यकताओं को प्राप्त करने के लिए पात्र उधारकर्त्ताओं को आवश्यकता आधारित सावधि ऋण प्रदान करना।
- अवधि: मुद्रा ऋण 5 वर्ष या अधिकतम 7 वर्ष के लिए लिया जा सकता है।
विशेषताएँ:
- सुरक्षा: भारतीय रिजर्व बैंक के दिशा-निर्देशों के अनुसार, बैंकों को MSME क्षेत्र को दिए गए 10 लाख रुपये तक के ऋण के मामले में संपार्श्विक सुरक्षा (Collateral Security ) स्वीकार नहीं करनी चाहिये ।
- वित्तीय समावेशन: बिना बैंक वाले को बैंकिंग, असुरक्षित को सुरक्षित करना और गैर-वित्त पोषित को प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने हेतु प्रोत्साहित करना।
- कुल ऋण का लगभग 22% नए उद्यमियों को स्वीकृत किया गया है और कुल ऋणों में से लगभग 68% ऋण महिला उद्यमियों को स्वीकृत किए गए हैं।
SOURCE –IE
इंफाल का इमा बाजार
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मणिपुर के इमा बाजार की यात्रा पर विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने ट्वीट कर आर्थिक विकास को "नारी शक्ति” के साथ जोड़ा।
इमा बाजार
- इसका उद्गम एक प्राचीन बंधुआ मजदूरी प्रणाली लल्लुप काबा के कारण हुआ था। मैतेई पुरुषों को अनिवार्य रूप से कुछ समय के लिए सेना और अन्य नागरिक परियोजनाओं में काम करना पड़ता था और घर से दूर रहना पड़ता था।
- इसी बीच महिलाओं पर सभी जिम्मेदारियां आ जाती थी जिसके परिणामस्वरूप एक बाजार प्रणाली विकसित हुई जिसे आज इमा कैथल कहते हैं।
- यह किथेल(कैथल) या मार्केट, एक पूर्ण-महिला बाज़ार है, जिसे एशिया में अपनी विशिष्ट पहचान के लिए सबसे बड़ा शॉपिंग कॉम्प्लेक्स कहा जाता है।
- यह महिलाओं का एक अनूठा बाजार है, जिसमें 3,000 "इमा" या स्टॉल चलाने वाली महिलाये हैं, यह सड़क के दोनों ओर दो खंडों में विभाजित है।
- सब्जियां, फल, मछली और घरेलू किराने का सामान एक तरफ और उत्तम हथकरघा एवं घरेलू उपकरण दूसरी तरफ बेचे जाते हैं।
- यहाँ पुरुष विक्रेताओं और दुकानदारों को प्रतिबंधित कर दिया गया है।
- 2018 में, राज्य सरकार ने यहाँ पुरुषों के क्रेता या विक्रेता बनने पर मणिपुर नगर पालिका अधिनियम, 2004 के तहत कानूनी कार्रवाई की घोषणा की।
SOURCE-IE