Dec. 10, 2022

कॉलेजियम प्रणाली, NJAC से बेहतर है

प्रश्न पत्र- 2 (राजव्यवस्था एवं शासन)

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों?

  • हाल ही में भारत के उपराष्ट्रपति ने टिप्पणी की कि सुप्रीम कोर्ट के 2015 के निर्णय, जिसमें राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) और 99वें संवैधानिक संशोधन, 2014 को रद्द कर दिया गया था, ने संसदीय संप्रभुता से समझौता करते हुए जनता की इच्छा की अवहेलना की।
  • इससे पहले, केंद्रीय कानून मंत्री ने कहा था कि न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली "अपारदर्शी", "गैर जवाबदेह" और संविधान के लिए "विदेशी" थी।

आज के आलेख में क्या है?

  • कॉलेजियम प्रणाली और सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर ये आलोचनात्मक प्रहार कितने परेशान करने वाले हैं?
  • राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) की क्या-क्या अक्षमताएं हैं?

संविधान (99वां संशोधन) अधिनियम, 2014

  • इसने कॉलेजियम प्रणाली को प्रतिस्थापित करने के लिए निम्नलिखित परिवर्तन किए और 3 अनुच्छेद प्रस्तुत किए :
  • अनुच्छेद 124(A ):इसके कॉलेजियम प्रणाली को प्रतिस्थापित करने के लिए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) नामक एक संवैधानिक निकाय बनाया गया।
  • अनुच्छेद 124 (B): यह नियुक्ति करने के लिए NJAC को शक्ति प्रदान करता है।
  • अनुच्छेद 124(C):इसने NJAC के कार्यों को विनियमित करने के लिए संसद को शक्ति प्रदान की।
  • 2014 में, संसद ने सर्वसम्मति से NJAC अधिनियम के पक्ष में मतदान किया और कॉलेजियम प्रणाली को NJAC द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया गया।

NJAC अधिनियम, 2014 

  • नियुक्ति प्रक्रिया: NJAC को वरिष्ठता के आधार पर भारत के मुख्य न्यायाधीश और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों की सिफारिश करनी थी। यह सिफारिश योग्यता एवं अन्य मानदंडों के आधार की जानी थी।
  • NJAC पैनल: यह CJI की अध्यक्षता में 6 सदस्यीय पैनल था और इसके सदस्य के रूप में सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल थे। साथ ही अन्य तीन सदस्यों में केंद्रीय कानून मंत्री और दो "प्रतिष्ठित व्यक्ति" शामिल थे। प्रतिष्ठित व्यक्तियों में से एक को अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग या महिला वर्ग से संबंधित व्यक्तियों में से नामित किया जाना था।
  • पैनल के कोई भी 2 सदस्य की गयी सिफारिश को वीटो कर सकते हैं।

NJAC को चुनौती क्यों दी गयी ?

  • 2015 में, सुप्रीम कोर्ट एडवोकेटसन रिकॉर्ड एसोसिएशन (SCAORA) ने NJAC के खिलाफ एक याचिका दायर की, जिसमें तर्क दिया गया कि इसने न्यायपालिका की सामूहिक परामर्श की प्रधानता को छीन लिया क्योंकि न्यायपालिका द्वारा की गयी सिफारिश पर वीटो लगाया जा सकता है।
  • याचिकाकर्त्ता ने यह भी तर्क दिया कि NJAC ने संविधान के मूल ढाँचे (न्यायपालिका की स्वतंत्रता) को "गंभीर रूप से" नुकसान पहुंचाया है।
  • चौथा न्यायाधीश मामला, 2015:न्यायिक स्वतंत्रता को खतरे में डालने के आधार पर सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने NJAC और 99वें संशोधन को रद्द कर दिया था।
  • इससे कॉलेजियम प्रणाली की पुनः शुरुआत हुई, जिसके तहत न्यायाधीशों की नियुक्तियों और स्थानांतरण का निर्णय CJI और सर्वोच्च न्यायालय के चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों के एक पैनल द्वारा किया जाता है।

NJAC से संबंधित विवाद

  • CJI के लिए कोई निर्णायक मत नहीं: अनुच्छेद 124(A) के तहत, NJAC में सदस्यों की संख्या सम होती है, लेकिन अध्यक्ष - CJI के पास कोई निर्णायक मत नहीं होता है। इसमें बराबर मत की स्थिति को लेकर कोई स्पष्टता नहीं थी और इसलिए गतिरोध स्वाभाविक था।
  • प्रतिष्ठित व्यक्तियों में विशेषज्ञता की कमी हो सकती है: अन्य केंद्रीय अधिनियमों,जहाँ एक समिति के सदस्य के रूप में नियुक्त "प्रतिष्ठित व्यक्तियों" के पास सम्बंधित विषय में विशेषज्ञता होनी चाहिए, के विपरीत NJAC अधिनियम के तहत शामिल प्रतिष्ठित व्यक्ति के लिए किसी विशेषज्ञता की आवश्यकता को निर्धारित नहीं किया गया है।
  • इसका तात्पर्य यह था कि NJAC का एक तिहाई भाग संवैधानिक रूप से SC या HC की कार्यप्रणाली से अनभिज्ञ हो सकता है जो हमारी उच्च न्यायपालिका की नियति का फैसला कर सकता है।
  • नियुक्ति की प्रक्रिया में कई अस्पष्ट शब्द शामिल हैं:NJAC अधिनियम में आयोग द्वारा SC के वरिष्ठतम न्यायाधीश को CJI के रूप में सिफारिश करने की बात की गयी थी, "यदि वह पद धारण करने के लिए योग्य माना जाता है"। हालांकि, इसने यह परिभाषित नहीं किया कि पद पर बने रहने के लिए योग्यताएं क्या-क्या हैं।
  • वीटो प्रावधान: NJAC अधिनियम के तहत, छह सदस्यों में से किन्हीं दो सदस्यों के असहमत होने पर NJAC द्वारा कोई सिफारिश नहीं की जा सकती थी। इससे नियुक्ति प्रक्रिया में अराजकता पैदा हो सकती थी और कार्यपालिका का न्यायपालिका पर पूरी तरह वर्चस्व स्थापित हो सकता था।
  • उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के लिए विचित्र चयन प्रक्रिया: इसके तहत प्रत्येक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों द्वारा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए NJAC में व्यक्तियों को नामित करना होता था।
  • साथ ही NJAC , अपनी तरफ से भी उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए व्यक्तियों को नामांकित कर सकता था। ऐसे में नामांकित व्यक्तियों के दो अलग-अलग वर्ग होने विवाद की स्थिति उत्पन्न हो सकती थी।
  • इसके अलावा, NJAC को उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति के सम्बन्ध में राज्यपाल और मुख्यमंत्री के विचारों को "लिखित रूप में" प्राप्त करना होता था। इस बात पर कोई स्पष्टता नहीं थी कि अगर ये दोनों विपरीत विचार रखते हैं, तो किसकी राय मान्य होगी।
  • NJAC उपयुक्तता के मानदंड निर्धारित करता है: 99वें संशोधन ने NJAC को उपयुक्तता के मानदंड निर्धारित करने वाले विनियमों को बनाने तथा SC और HC के न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया की शक्ति प्रदान की।
  • इन विनियमों को संसद के दोनों सदनों के समक्ष पेश करना होताथा, जिसके पास इन विनियमों को रद्द करने या उन्हें संशोधित करने की शक्ति थी। इन सभी प्रावधानों ने नियुक्ति प्रक्रिया को अक्षम बना दिया था।

कॉलेजियम प्रणाली की हालिया आलोचना पर SC का जवाब

  • कानून बनाने की संसद की शक्ति न्यायपालिका द्वारा जाँच के अंतर्गत आती है जो संवैधानिक भावना के तहत कानून की  "अंतिम मध्यस्थ" है।
  • कॉलेजियम की औसत निकासी दर लगभग 50% है, यह दर्शाता है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति करते समय सरकार के दृष्टिकोण को ध्यान में रखा जाता है।

आगे की राह 

  • संशोधित NJAC: NJAC को यह सुनिश्चित करने के लिए संशोधन करने की आवश्यकता है कि न्यायपालिका अपने निर्णयों में स्वतंत्रता बनाए रखे और आयोग में स्पष्ट बहुमत वाले न्यायाधीशों के साथ फिर से पेश हो।
  • विस्तृत गाइडबुक: SC द्वारा एक लिखित मैनुअल जारी किया जाना चाहिए जिसका नियुक्तियों के दौरान पालन किया जाना चाहिए।
  • कॉलेजियम की  रिकॉर्डिंग : कॉलेजियम के विचार-विमर्श को वीडियो-रिकॉर्ड किया जा सकता है और संग्रहीत किया जा सकता है।पारदर्शिता और नियम-आधारित प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए सभी बैठकें सार्वजनिक डोमेन में होनी चाहिए।
  • निर्दिष्ट मानदंड: सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों और अधिवक्ताओं की पदोन्नति की प्रक्रिया को पूरी तरह से कॉलेजियम की सर्वसम्मति पर छोड़ने के बजाय क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व, वरिष्ठता, लिंग, आदि जैसे मानदंडों को अपनाया जाना चाहिए। इससे भविष्य में असहमति से बचने में मदद मिल सकती है।

निष्कर्ष

  • सरकार को न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया को पारदर्शी और लोकतांत्रिक बनाकर उच्च न्यायपालिका की विश्वसनीयता को बहाल करने की आवश्यकता है (सुप्रीम कोर्ट  ने अपने 2015 के फैसले में कहा था कि "कॉलेजियम के साथ सब कुछ ठीक नहीं है")।
  • न्यायपालिका की स्वतंत्रता को संरक्षित करते हुए न्यायिक प्रधानता, विविधता, पेशेवर क्षमता और अखंडता सुनिश्चित करके प्रक्रिया को संस्थागत बनाने के लिए एक स्थायी, स्वतंत्र संगठन की स्थापना पर विचार करने का समय आ गया है। 

 

प्रारंभिक परीक्षा प्रश्न

प्रश्न- निम्नलिखित में से कौन- सा संवैधानिक संशोधन राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग से सम्बंधित है?

  1. 98वाँ  संवैधानिक संशोधन                 (b) 99वाँ  संवैधानिक संशोधन            
  2. 100वाँ  संवैधानिक संशोधन               (d) 102वाँ  संवैधानिक संशोधन

 मुख्य परीक्षा प्रश्न

प्रश्न- भारत में उच्चतर न्यायपालिका के न्यायाधीशों की नियुक्ति के संदर्भ में 'राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014' पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए । (UPSC- 2017)                (250 शब्द)