
Oct. 20, 2022
हैदराबाद मुक्ति दिवस
चर्चा में क्यों?
- 17 सितंबर, 2022 को हैदराबाद की निज़ाम के शासन से मुक्ति और भारत में विलय के 75 साल पूरे होने की ख़ुशी में तेलंगाना सरकार और संस्कृति मंत्रालय ने हैदराबाद मुक्ति दिवस के रूप में वर्ष भर चलने वाले स्मरणोत्सव के आयोजन की घोषणा की।
- 17 सितंबर, 1948 को भारत में हैदराबाद राज्य का विलय हुआ। यह विलय भारत के प्रथम गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा ऑपरेशन पोलो के तहत त्वरित और समय पर कार्रवाई के कारण संभव हुआ।
- इसे कल्याण-कर्नाटक मुक्ति दिवस (विमोचन दिवस) के रूप में भी जाना जाता है।
स्मस्मरणोत्सव का उद्देश्य:
- हैदराबाद मुक्ति और भारत संघ में इसके विलय के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले लोगों को श्रद्धांजलि देना।
- यह लोगों का लोगो के लिए बलिदान का जश्न मनाने और सम्मान करने का एक तरीका है।
हैदराबाद रियासत के बारे में
- यह स्वतंत्रता के बाद भारतीय सीमा के भीतर सबसे बड़ी रियासतों में से एक थी, जिसका शासक मुस्लिम निज़ाम और प्रजा हिंदू-बहुल थी।
- उस समय के हैदराबाद राज्य में वर्तमान तेलंगाना तथा महाराष्ट्र का मराठवाड़ा क्षेत्र शामिल था जिसमें औरंगाबाद, बीड, हिंगोली, जालना, लातूर, नांदेड़, उस्मानाबाद, परभणी और वर्तमान कर्नाटक राज्य के बीदर, कालाबुरगी , यादगीर , रायचूर, बेल्लारी और कोप्पल जिले शामिल थे।
रजाकार:
- निज़ाम ने अपने प्रधानमंत्री कासिम रिज़वी के नेतृत्व में रजाकारों के दल का निर्माण किया जो कि एमआईएम (मजलिस-ए- इतिहादुल मुस्लिमीन) का एक अर्धसैनिक संगठन था।
- रजाकारों ने हिंदू विद्रोहों और आंदोलनों को हर संभव तरीके से दबाने का प्रयास किया।जिसके अंतर्गत उन्होंने हिन्दुओं पर जातीय नरसंहार, बड़े पैमाने पर इस्लाम धर्मांतरण,सामूहिक हत्या, बलात्कार और अपहरण जैसी घटनाओं को अंजाम दिया।
ऑपरेशन पोलो:
- ऑपरेशन पोलो एक सैनिक अभियान था जिसके कारण ही हैदराबाद की रियासत भारतीय संघ में शामिल हुई क्योंकि हैदराबाद के निज़ाम उस्मान अली ख़ान आसिफ़ जाह देश के विभाजन के बाद स्वतंत्र राज्य की माँग कर रहे थे।
- दूसरी ओर, मजलिस-ए-इतिहादुल मुस्लिमीन नामक संगठन ( एमआईएम) स्वतंत्र होने के बजाय निजाम के पाकिस्तान में विलय की माँग कर रहा था।
- वन्दे मातरम् का नारा लगाने वाले लोगों की सहज भागीदारी और निज़ाम के भारतीय संघ में विलय की माँग के साथ, संघर्ष एक विशाल जन आंदोलन में बदल गया। 5 दिनों की लड़ाई के बाद हैदराबाद को भारत के क्षेत्र में मिला लिया गया। फिर भी निजाम के साथ नरम व्यवहार किया गया और उसे राजप्रमुख का दर्जा दिया गया तथा 50 लाख रुपये वार्षिक पेंशन के रूप में दिया गया।