Jan. 18, 2023

न्यायपालिका पर टिप्पणी कर उपराष्ट्रपति गलत क्यों?

प्रश्न पत्र- 2 (शासन एवं राज्यव्यवस्था) 

स्रोत- द हिन्दू , इंडियन एक्सप्रेस            

चर्चा में क्यों ?

  • हाल ही में, भारत के उपराष्ट्रपति द्वारा जयपुर में 83वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन को संबोधित किया गया। 
  • इस सम्मेलन में  उपराष्ट्रपति ने कहा कि न्यायिक मंचों से एकाधिकार "विधायिका की शक्ति के अशक्तीकरण" की ओर ले जा रहा है। उनकी यह टिप्पणी कॉलेजियम प्रणाली पर सवाल उठा रही है जिसका सर्वोच्च न्यायालय बचाव कर रहा है।
  • उन्होंने केशवानंद भारती मामले (1973 ) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर आपत्ति जताई कि इसने बुनियादी ढाँचा सिद्धांत बनाया है और सार्वजनिक इच्छा को अवरुद्ध करके भारतीय लोकतंत्र की प्रामाणिकता पर संदेह जताया है।

पृष्ठभूमि

  • कॉलेजियम प्रणाली के खिलाफ कार्यकारिणी के सदस्यों द्वारा की गई टिप्पणियों के प्रति सुप्रीम कोर्ट बेंच द्वारा नाराजगी व्यक्त की  गयी।

अनुच्छेद 13 (2) :- राज्य ऐसी कोई विधि नहीं बनायेगा जो मूल अधिकारों को छीनती है। इस खण्ड के उल्लंघन में बनाई गई प्रत्येक विधि उल्लंघन की मात्रा तक शून्य होगी।

  • लोकतंत्र में सभी संस्थानों को अपने संबंधित डोमेन तक सीमित रहने की आवश्यकता है।
  • जैसे- विधायिका, न्यायालय के निर्णयों को लिपिबद्ध नहीं कर सकती है, न्यायालय भी कानून नहीं बना सकता है। इस प्रकार, संसद के क्षेत्राधिकार क्षेत्र में बार-बार घुसपैठ से बचना और संवैधानिक संस्थानों के सहक्रियाशील कामकाज को बढ़ावा देना समय की माँग है।
  • SC द्वारा राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) अधिनियम को रद्द करना दुनिया के लोकतांत्रिक इतिहास में एक अद्वितीय परिदृश्य था, जो न्यायिक अतिक्रमण नामक प्रथा को इंगित करता है।
  • उपराष्ट्रपति  ने SC के 2015 के NJAC के फैसले की आलोचना की थी जो संसद और राज्य विधानसभाओं में "अभूतपूर्व समर्थन" के साथ पारित किया गया था और कहा कि इसने संसदीय संप्रभुता से गंभीर रूप से समझौता किया और लोगों की इच्छा की अवहेलना की।
  • न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली संविधान के लिए "अपारदर्शी" और "विदेशी" है ।
  • लोकसभाध्यक्ष के अनुसार, विधायिकाओं ने हमेशा न्यायपालिका की शक्तियों और अधिकारों का सम्मान किया है और न्यायपालिका से संविधान द्वारा अनिवार्य शक्तियों के पृथक्करण का पालन करने की अपेक्षा की गई थी।

अनुच्छेद 141 के अनुसार, उच्चतम न्यायालय द्वारा घोषित कानून सभी अदालतों पर बाध्यकारी है।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 144 में सर्वोच्च न्यायालय की सहायता के लिए न्यायालय पर कार्रवाई करने का दायित्व निहित है।

  • अनुच्छेद 32, व्यक्तियों को अधिकार देता है कि जब उनके अधिकारों को 'अनावश्यक रूप से वंचित' किया गया हो, तो वे न्याय पाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में जा सकते हैं, इस प्रकार संविधान भारतीय नागरिकों को न्यायिक उपचार का अधिकार प्रदान करता है।

अनुच्छेद 32  संवैधानिक उपचारों का अधिकार है। यह एक मौलिक अधिकार है, जो भारत के प्रत्येक नागरिक को संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त अन्य मौलिक अधिकारों को लागू कराने के लिये सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष याचिका दायर करने का अधिकार देता है।

  • उपरोक्त प्रावधानों से यह स्पष्ट है कि न्यायपालिका संविधान की रक्षा करने के लिए बाध्य है और सर्वोच्च न्यायालय को संविधान का अंतिम व्याख्याकार होने के नाते अनिवार्य रूप से अमान्य कानूनों पर एक घोषणा करनी चाहिए।

मूल संरचना सिद्धांत

  • 24 वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1971 द्वारा अनुच्छेद 13 (4) को सम्मिलित करते हुए कहा गया कि इस प्रावधान के अनुसार, इस अनुच्छेद में कुछ भी अनुच्छेद 368 के तहत किए गए संविधान के किसी भी संशोधन पर लागू नहीं होगा।
  • 24वां संशोधन अधिनियम का उद्देश्य I.C. गोलक नाथ बनाम पंजाब राज्य में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले को रद्द करना था जिसमें कहा गया था कि संसद किसी भी तरह से मौलिक अधिकारों को प्रतिबंधित नहीं कर सकती है।

संवैधानिक महत्व 

  • भारतीय राजनीति की संप्रभु, लोकतांत्रिक और गणतांत्रिक प्रकृति
  • विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच शक्तियों का पृथक्करण
  • न्यायिक समीक्षा और कानून का शासन
  • संसदीय प्रणाली, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव
  • समानता का सिद्धांत
  • न्यायपालिका की स्वतंत्रता

आगे की राह

  • लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था में किसी भी 'मूल संरचना' का आधार जनादेश की प्रधानता का प्रचलन होता है।
  • 'शक्ति के पृथक्करण' के सिद्धांत के उल्लंघन के रूप में इसकी व्याख्या की जा सकती है। इस प्रकार, लोकतंत्र के तीन पहलुओं को संविधान द्वारा परिभाषित शक्तियों और सीमाओं के अनुसार अपने दायित्वों का पालन करना चाहिए। 
  • इसलिए कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के बीच आपसी विश्वास और सद्भाव सुनिश्चित करने के लिए इनके बीच एक सम्मानजनक संबंध स्थापित होना चाहिए।