Dec. 9, 2022

बिम्सटेक: दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय व्यवस्था की एक नई कुंजी

प्रश्न पत्र: 2 (अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध)

स्रोत- द हिन्दू 

चर्चा में क्यों?

  • हाल ही में  8 दिसंबर को दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) चार्टर दिवस मनाया गया। दक्षिण एशियाई क्षेत्र के सन्दर्भ में यह आलेख अन्य क्षेत्रीय संगठन ; जैसे- बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिए बंगाल की खाड़ी पहल (BIMSTEC) को देखने की आवश्यकता पर चर्चा करता है क्योंकि वर्तमान परिदृश्य में सार्क को पुनर्जीवित करने की संभावनाएं कम हैं।
  • 8 दिसंबर 1985 को, दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) चार्टर को समूह के पहले शिखर सम्मेलन के दौरान ढाका में अपनाया गया था।

दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC)  के बारे में

  • संरचना: यह 8 दक्षिण एशियाई देशों (अफ़ग़ानिस्तान, भूटान, भारत,मालदीव,नेपाल,पाकिस्तान,श्रीलंका) का एक अंतर-सरकारी एवं भू-राजनीतिक संगठन है,जिसकी स्थापना 8 दिसंबर, 1985 को ढाका, बांग्लादेश में हुई थी। सार्क में यूरोपीय संघ, अमेरिका, ईरान और चीन सहित औपचारिक रूप से मान्यता प्राप्त 9 पर्यवेक्षक देश भी शामिल हैं।
  • सचिवालय: सार्क का सचिवालय दक्षिण एशिया में आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए काठमांडू (नेपाल) में स्थित है।
  • उद्देश्य: सार्क का मुख्य उद्देश्य, दक्षिण एशियाई क्षेत्र में लोगों के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए सामूहिक रूप से काम करना तथा सामाजिक प्रगति और आर्थिक विकास के माध्यम से उनके जीवन स्तर में सुधार करना है।
  • शिखर सम्मेलन: सार्क शिखर सम्मेलन आमतौर पर द्विवार्षिक रूप से सदस्य राज्यों द्वारा वर्णानुक्रम में आयोजित किया जाता है। इसने 1985 से अब तक 18 शिखर सम्मेलन आयोजित किए हैं और पहला सार्क शिखर सम्मेलन ढाका (बांग्लादेश) में आयोजित किया गया था।

SAARC की वर्तमान स्थिति

  • सार्क, दुनिया की 21% आबादी और लगभग 3 ट्रिलियन डॉलर की GDP साथ 38 वर्षों से अस्तित्व में है, लेकिन यूरोपीय संघ, आसियान और अफ्रीकी संघ जैसे अन्य क्षेत्रीय सहयोग संगठनों की तुलना में इसका प्रभाव कम है।
  • सार्क की कुछ उपलब्धियां 2006 में साफ्टा(SAFTA), सार्क विकास कोष, एकीकृत कार्य योजना (2012), सार्क उपग्रह आदि हैं।

दक्षिण एशियाई क्षेत्र के खराब एकीकरण हेतु उत्तरदायी कारण

  • राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी: भारत और पाकिस्तान की राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी इस क्षेत्रीय समूह की प्रगति और विकास में बाधक है।
  • भारत-पाक प्रतिद्वंद्विता: भारत और पाकिस्तान के बीच तनावपूर्ण संबंधों के कारण सार्क का कामकाज और गतिविधियां लगभग ठप हो गई हैं। उदाहरण के लिए, 2014 के बाद से, कोई सार्क शिखर सम्मेलन नहीं हुआ है, जिससे संगठन व्यावहारिक रूप से समाप्त हो गया है।
  • 2016 के सार्क शिखर सम्मेलन , जिसकी मेजबानी पाकिस्तान द्वारा की जानी थी, का आयोजन भारत के उरी आतंकी हमले के बाद शिखर सम्मेलन से बाहर होने पर रोक दिया गया था। इसलिए, भारत-पाकिस्तान संबंधों में गिरावट एक क्षेत्रीय संगठन के रूप में सार्क की अक्षमता को दर्शाती है।
  • आतंकवाद: यह क्षेत्र भी सदस्य देशों बीच लगातार तनाव और अशांति के कारण दुनिया के सबसे अधिक आतंक प्रवण क्षेत्रों में से एक है।

आर्थिक एकीकरण का अभाव:

  • 2006 में शुरू किया गया SAFTA (दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार समझौता) निरंतर तनाव और भारत-पाक संबंधों की शिथिलता के कारण सफल नहीं हो पाया है।
  • सार्क देशों की सकल जीडीपी लगभग $3 ट्रिलियन डॉलर होने के साथ यह दुनिया के सबसे उभरते हुए विकास क्षेत्रों में से एक है।
  • हालांकि, आर्थिक एकीकरण की कमी के कारण सार्क देशों द्वारा उद्योग, पर्यटन,आईटी, कृषि और स्वास्थ्य जैसी सेवाओं के  क्षेत्रों में विश्व की भारी बाजार मांग को पूरा नहीं किया गया है।
  • इसके परिणामस्वरूप चीन और अन्य वैश्विक बाजार के खिलाड़ियों द्वारा बाजार का शोषण हुआ है।

अफगानिस्तान और पाकिस्तान में हालिया घटनाक्रम: 

  • उदाहरण के लिए, तालिबान शासन की स्थापना के साथ अफगानिस्तान की सामाजिक-आर्थिक स्थिति।
  • पाकिस्तान का बार-बार आर्थिक संकट, FATF की ग्रे सूची में बने रहना, इस्लामी और पश्चिमी देशों से सीमित वित्तीय सहायता आने वाले समय में एक गंभीर मानवीय संकट को बढ़ावा दे सकती है।
  • चीन की कूटनीति: चीन जो पहले सार्क का सदस्य बनना चाहता था, उसे भारत ने सदस्य बनने से रोका। इसलिए चीन कभी नहीं चाहता कि सार्क एक मजबूत संगठन बने और वह भारत को छोड़कर सार्क के अन्य सदस्य देशों के साथ संबंध स्थापित करने का प्रयास कर रहा है।
  • भारत के लिए SAARC का महत्व
  • समस्त दक्षिण एशिया तक पहुँच:  सार्क एकमात्र अंतर-सरकारी संगठन है जिसकी समस्त दक्षिण एशिया तक पहुँच है। इस प्रकार, भारत पूरे क्षेत्र में अपने हितों की पूर्ति के लिए इसे विवेकपूर्ण तरीके से नियोजित कर सकता है।
  • भारत के राष्ट्रीय हित के लिए महत्वपूर्ण : चूंकि दक्षिण एशिया, भारत का निकटवर्ती क्षेत्र है, इसलिए यह भारत के राष्ट्रीय हितों के लिए महत्वपूर्ण है। जैसा कि वर्तमान सरकार की  'नेबरहुड फर्स्ट' नीति में पहचाना गया है।
  • भारत की सॉफ्ट पावर छवि को बढ़ावा : सार्क, इस क्षेत्र में भारत की सॉफ्ट पावर को मजबूत करने में महत्वपूर्ण है।

बिम्सटेक के बारे में

  • यह 1997 में स्थापित एक अंतर-सरकारी संगठन है, जिसमें 5 दक्षिण एशियाई देश (बांग्लादेश,भूटान,भारत,नेपाल,श्रीलंका) और 2 आसियान देश (म्यांमार एवं थाईलैंड) शामिल हैं, जो1.73 बिलियन की जनसंख्या तथा 4.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर (2022) की GDP का संयुक्त रूप से प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • इसका उद्देश्य क्षेत्र में तेजी से आर्थिक विकास के लिए एक सक्षम वातावरण बनाना,सामाजिक प्रगति और साझा हितों के मामलों में सहयोग को बढ़ावा देना है।

बिम्सटेक द्वारा प्रस्तुत अवसर

  • दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच कड़ी: बिम्सटेक, भारत को उसके निकटवर्ती पड़ोस को प्रधानता देने और इसे दक्षिण पूर्व के साथ जोड़ने में मदद कर सकता है।
  • उदाहरण के लिए, हाल के वर्षों में भारत अपनी कूटनीतिक ऊर्जा को सार्क से बिम्सटेक की ओर ले जा रहा है, जिसके परिणामस्वरूप बिम्सटेक ने अंततः इस वर्ष की शुरुआत में अपना चार्टर अपनाया।
  • बिम्सटेक, दक्षिण-पूर्व एशिया में अधिक क्षेत्रीय सहयोग के लिए भारत की 'एक्ट ईस्ट' नीति को भी महत्व देता है तथा सार्क और आसियान सदस्यों के बीच अंतर-क्षेत्रीय सहयोग के लिए एक मंच प्रदान करता है।
  • गैर-विघटनकारी कार्यप्रणाली: पाकिस्तान का बिम्सटेक का सदस्य नहीं होना, भारत को बिना किसी बाधा के समूह में अपनी क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाओं को बढ़ाने में मदद कर सकता है क्योंकि पाकिस्तान सार्क में कई क्षेत्रीय एकीकरण पहलों पर नियमित रूप से वीटो करता है।
  • अधिक अनुकूल समूहीकरण: सार्क चार्टर के विपरीत, बिम्सटेक चार्टर समूह में 'नए सदस्यों के प्रवेश' के बारे में बात की गयी है, इसलिए यह मालदीव जैसे देशों के प्रवेश का मार्ग प्रशस्त करता है।

बिम्सटेक के समक्ष चुनौतियां

  • द्विपक्षीय वार्ताओं के लिए कोई लचीलापन नहीं: सार्क की विफलता के बावजूद, बिम्सटेक चार्टर में आसियान चार्टर के समान लचीली भागीदारी योजना शामिल नहीं है।
  • आसियान चार्टर में लचीली योजना, जिसे 'आसियान माइनस एक्स' सूत्र के रूप में भी जाना जाता है, दो या दो से अधिक आसियान सदस्यों को आर्थिक प्रतिबद्धताओं के लिए बातचीत शुरू करने की अनुमति देती है।
  • इस प्रकार, किसी भी देश को इच्छुक देशों के बीच आर्थिक एकीकरण पहल को विफल करने के लिए वीटो शक्ति प्राप्त नहीं है।

आगे की राह 

  • बिम्सटेक चार्टर को अपडेट करना: भारत द्वारा एक लचीले 'बिम्सटेक माइनस एक्स' फॉर्मूले पर बल दिया जाना चाहिए, ताकि बिम्सटेक के सदस्य व्यापक बिम्सटेक छत्र के तहत अपने द्विपक्षीय समझौतों का संचालन कर सकें।
  • उदाहरण के लिए, भारत और बांग्लादेश या भारत और थाईलैंड व्यापक बिम्सटेक छाता के तहत अपने द्विपक्षीय मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) की  वार्ता आयोजित कर रहे हैं।
  • नई क्षेत्रीय आर्थिक व्यवस्था: क्षेत्रीय एकीकरण में आसियान की शानदार सफलता के आधार पर, दक्षिण एशियाई अर्थव्यवस्थाओं द्वारा क्षेत्र में समृद्धि और शांति लाने के लिए एक नई क्षेत्रीय आर्थिक व्यवस्था की अवधारणा को बढ़ावा देना चाहिए।
  • इसके माध्यम से, विकासशील देश एक व्यापार-विकास मॉडल विकसित करेंगे, जो वृद्धिशीलता और लचीलेपन पर आधारित होगा।

निष्कर्ष

  • इस प्रकार, बिम्सटेक के माध्यम से भारत द्विपक्षीयता के साधन का सफलतापूर्वक उपयोग कर सकता है और अपने हितों को आगे बढ़ाने के लिए सार्क को पाकिस्तान के चश्मे से देखना बंद कर सकता है। इसके साथ ही, भारत द्वारा सार्क में राजनीतिक ऊर्जा का संचार करके उसे पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है।
  • हालाँकि, वर्तमान परिदृश्य में, यह बहुत आदर्शवादी है। इसलिए, अपने चार्टर को अद्यतन करके बिम्सटेक को मजबूत करना भारत के लिए आगे बढ़ने का एक आदर्श तरीका होगा।

 

मुख्य परीक्षा प्रश्न

प्रश्न- दक्षिण एशिया और दक्षिण- पूर्व एशिया को जोड़ने में बिम्सटेक के महत्व एवं इस क्षेत्र में भारत की हिस्सेदारी पर चर्चा कीजिए।  (250 शब्द)