Dec. 15, 2022

सरकार में महिला नेतृत्व की क्षमता का आकलन (महिला नेतृत्व = सुशासन = लैंगिक समानता)

प्रश्न पत्र- 2 (सामाजिक न्याय- महिलाओं से सम्बंधित मुद्दे)

स्रोत- द हिन्दू 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में लोकसभा में पेश किए गए सरकारी आंकड़ों में संसद और अधिकांश राज्यों की विधानसभाओं में 15% से कम महिलाओं का प्रतिनिधित्व पाया गया।19 राज्य विधानसभाओं में 10% से कम महिला विधायक हैं।

आज के आलेख में क्या है?

आज के आलेख में नेतृत्व की भूमिकाओं में महिलाओं की प्रभावशीलता के विषय में अंतर्निहित पूर्वाग्रहों और धारणाओं से मुक्ति तथा नीति निर्माण में महिला प्रतिनिधित्व में वृद्धि की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है।

 

महिला नेतृत्व के गुण

महिलाओं का राजनीतिक सशक्तिकरण तीन मौलिक और गैर- समझौतावादी सिद्धांतों पर आधारित है:

  1. महिलाओं और पुरुषों के बीच समानता (लैंगिक समानता)।
  2. महिलाओं को अपनी क्षमता के पूर्ण विकास का अधिकार।
  3. महिलाओं का आत्म-प्रतिनिधित्व और आत्मनिर्णय का अधिकार।

वैश्विक परिदृश्य - संकट के समय महिला नेतृत्व

  • जर्मनी, ताइवान और न्यूजीलैंड जैसे तीन देशों की सरकारों में महिला प्रमुख हैं और ऐसा लगता है कि उन्होंने अपने पड़ोसियों की तुलना में कोविड-19 महामारी को बेहतर तरीके से प्रबंधित किया है।
  • इसके अलावा, संयुक्त राज्य अमेरिका में जिन राज्यों में महिला गवर्नर थी, वहाँ COVID-19 से संबंधित मौतों को कम देखा गया क्योंकि महिला गवर्नरों ने अपने पुरुष समकक्षों की तुलना में घर में रहने के आदेश पहले जारी करके अधिक निर्णायक रूप से कार्य किया।
  • इसका अर्थ यह है कि संकट के समय महिला नेता अपने पुरुष समकक्षों की तुलना में अधिक प्रभावी होती हैं। अतः नेतृत्व की भूमिकाओं में महिला प्रभावशीलता के बारे में निहित पूर्वाग्रहों और धारणाओं से छुटकारा पाने की आवश्यकता है। 

भारतीय परिदृश्य

  • जब सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक अधिकार ‘मतदान’ के अधिकार की बात आती है, तो भारत में महिलाओं को, पश्चिम के परिपक्व लोकतंत्रों के विपरीत, 1950 के बाद से ही पुरुषों के साथ समान स्तर पर मतदान करने की अनुमति दी गई थी जबकि 1920 में मतदान करने की अनुमति देने से पहले अमेरिका में महिलाओं को कई दशकों का संघर्ष करना पड़ा था।
  • इंदिरा गांधी, जयललिता, मायावती, सुषमा स्वराज और ममता बनर्जी आदि कुछ ऐसी प्रतिभाशाली महिला नेता हैं जिनका जन्म भारत में हुआ है। हालाँकि, भारत में समग्र परिदृश्य निराशाजनक है।

उदाहरण के लिए:

  • केंद्र सरकार में महिला सदस्य कुल मंत्रिस्तरीय संख्या के लगभग 10% भाग का प्रतिनिधित्व करती हैं।
  • पश्चिम बंगाल (एक महिला मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाली सरकर) की स्थिति भी इससे भिन्न है।
  • भारत में महिला नेतृत्व का सबसे अधिक प्रतिनिधित्व 2019 के लोकसभा चुनाव में देखा गया, जो लोकसभा की कुल संख्या का 14% से अधिक है।
  • अंतर-संसदीय संघ द्वारा रिपोर्ट के अनुसार भारत को 192 देशों में से 143 की निराशाजनक रैंक दी गयी। लघु रवांडा अपने निचले सदन में महिलाओं की 60% सीटों के साथ शीर्ष पर है।

भारत में ग्राम पंचायतें महिला नेतृत्व के महत्व को दर्शाती हैं

  • नोबेल पुरस्कार विजेता एस्थर डुफ्लो ने स्थानीय सरकारों में महिलाओं के लिए आरक्षण के प्रभाव का अध्ययन किया और महिला नेतृत्व की प्रभावशीलता का विश्लेषण किया।
  • भारतीय संविधान के 73 वें संशोधन द्वारा जोड़े गए "पंचायतों" के प्रावधान ने अनिवार्य किया कि सभी राज्यों को महिलाओं के लिए प्रधान (प्रमुख) के सभी पदों का एक तिहाई हिस्सा आरक्षित करना होगा।
  • आज, भारत भर में दस लाख से अधिक महिलाएं देश में लगभग 2.6 लाख ग्राम पंचायतों की निर्वाचित सदस्य हैं।
  • यह आकलन दर्शाता है कि महिलाओं के हितों को बढ़ावा देने वाली नीतियों को लागू करने में महिला नेता, पुरुषों की तुलना में काफी बेहतर प्रदर्शन करती हैं।
  • उदाहरण के लिए, महिला प्रधानों द्वारा पीने के पानी तक आसान पहुंच प्रदान करने में कार्य करने की अधिक संभावना थी क्योंकि पीने के पानी का संग्रह मुख्य रूप से महिलाओं की जिम्मेदारी है।

आगे की राह 

  • महिलाओं के लिए आरक्षण का प्रावधान करना: चुनाव में भाग लेने वाली महिलाओं को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। उन्हें उचित कानूनी उपायों के माध्यम से एक समान आधार प्रदान करना आवश्यक है।
  • महिला आरक्षण विधेयक पहली बार 1996 में लोकसभा में पेश किया गया था। इसमें महिलाओं के लिए लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं में 33% सीटें आरक्षित करने का प्रस्ताव किया गया था, किन्तु कई पार्टियों के पुरुष सदस्यों ने इसका विरोध किया था।
  • राज्यसभा ने 2010 में महिला आरक्षण विधेयक [संविधान (108वां संशोधन) विधेयक, 2008] पारित किया, किन्तु  लोकसभा और राज्य विधानसभाओं ने अभी तक इस पर अपनी स्वीकृति नहीं दी है।
  • अधिक महिला उम्मीदवारों को नामांकित करना: जब तक बिल को मंजूरी नहीं मिल जाती, तब तक प्रमुख राजनीतिक दलों को महिलाओं के लिए एक तिहाई पार्टी नामांकन आरक्षित करने की आवश्यकता है। तभी विधायिकाओं और मंत्रिमंडलों में महिलाओं की संख्या में वृद्धि होगी।
  • राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र: पार्टी के आंतरिक संगठन में महिलाओं को आरक्षण देना, महिला आरक्षण विधेयक के लिए एक रणनीतिक पूरक के रूप में कार्य करेगा और राजनीति में प्रवेश करने वाली महिलाओं के लिए अधिक अनुकूल मार्ग तैयार करेगा।

निष्कर्ष

  • आरक्षण देकर नीति निर्माण में महिला प्रतिनिधित्व में वृद्धि से नेतृत्व की भूमिकाओं में महिला प्रभावशीलता के विषय में अवधारणात्मक सुधार होता है और महिला उम्मीदवारों के खिलाफ मतदाताओं के बीच पूर्वाग्रह कम होता है।
  • इसके परिणामस्वरूप चुनाव लड़ने और जीतने वाली महिलानेताओं के प्रतिशत में वृद्धि होगी।
  • इस प्रकार, राजनीति में महिलाओं की भागीदारी से संबंधित विभिन्न मुद्दों को संबोधित करना लैंगिक समानता के दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण लक्ष्य होना चाहिए।प्रारंभिक परीक्षा प्रश्न

प्र. निम्नलिखित में से कौन सा प्रावधान 73वें संविधान संशोधन से सम्बंधित है?

(a) पंचायतों का गठन           (b) नगर पालिका     (c) सहकारी समितियां       (d) प्रशासनिक अधिकरण 

मुख्य परीक्षा प्रश्न

प्रश्न- “यद्यपि स्वातंत्र्योतर भारत में महिलाओं ने विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्टता हासिल की है, इसके बावजूद महिलाओं और नारीवादी आन्दोलन के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण पितृसत्तात्मक रहा है।” महिला शिक्षा और महिला सशक्तिकरण की योजनाओं के अतिरिक्त कौन-से हस्तक्षेप इस परिवेश के परिवर्तन में सहायक हो सकते हैं? (UPSC- 2021)