
Oct. 27, 2022
चोल साम्राज्य
चर्चा में क्यों?
हाल ही में रिलीज़ हुई एक फ़िल्म ने 10वीं सदी के चोल वंश के एक काल्पनिक वृत्तांत पर ध्यान केंद्रित किया है।
चोलों को उनकी प्रगतिशीलता, अद्भुत स्थापत्य और मंदिरों, तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था और महिलाओं के नाम पर शहरों के नाम के लिए जाना जाता है।
चोल साम्राज्य के बारे में राजनीतिक क्षेत्र
- चोल साम्राज्य वर्तमान तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के कुछ हिस्सों में फैला हुआ था।
- यह विश्व इतिहास में सबसे लंबे समय तक शासन करने वाले राजवंशों में से एक है।
- चोलों का मुख्य केंद्र कावेरी नदी की उपजाऊ घाटी था।
- उन्होंने तुंगभद्रा के दक्षिण में प्रायद्वीपीय भारत को एकीकृत किया और इसे तीन शताब्दियों तक एक राज्य के रूप में बनाए रखा।
- चोल प्रदेश दक्षिण में मालदीव से लेकर उत्तरी सीमा के रूप में आंध्र प्रदेश में गोदावरी नदी के तट तक फैला हुआ था।
राजधानी और महत्वपूर्ण केंद्र
- उनकी प्रारंभिक राजधानी तंजावुर और बाद में गंगईकोंडचोलपुरम में थी।
- कांचीपुरम और मदुरै को क्षेत्रीय राजधानी माना जाता था जिसमें कभी-कभार अदालतें आयोजित की जाती थीं।
राजवंश की नींव
- चोल राजवंश की स्थापना राजा विजयालय ने की थी, जिसे पल्लवों के "सामंत" के रूप में वर्णित किया गया था।
- विजयालय ने एक ऐसे राजवंश की नींव रखी जिसने दक्षिण भारत के एक बड़े हिस्से पर शासन किया।
- राजराजा प्रथम और उसके उत्तराधिकारियों-राजेंद्र प्रथम, राजाधिराज प्रथम, राजेंद्र द्वितीय, वीरराजेंद्र और कुलोतुंग चोल प्रथम के अंतर्गत चोल राजवंश एक सैन्य, आर्थिक और सांस्कृतिक महाशक्ति बन गया।
समकालीन परिदृश्य
- तमिल क्षेत्र के तीन प्रमुख राजवंशों (चोल, चेर, पाण्ड्य) में से एक चोलराजवंश 13 वीं शताब्दी तक अलग-अलग क्षेत्रों पर शासन करता रहा।
- चोलों की अवधि (9वीं से 12वीं शताब्दी ईस्वी के आसपास) के दौरान, इस क्षेत्र में अन्य शक्तिशाली राजवंश भी आते और जाते रहे, जैसे- दक्कन के राष्ट्रकूट, जिन्होंने चोलों को हराया और आंध्र क्षेत्र के चालुक्य, जिनसे चोलों ने अक्सर लड़ाई लड़ी।
चोल कालीन समाज
कृषि और नहरें
- पूरे तमिलनाडु में और विशेष रूप से कावेरी बेसिन में चोल साम्राज्य के अंतर्गत कृषि का व्यापक विस्तार हुआ था। कावेरी नदी की अधिकांश नहरें इसी काल की हैं।
व्यापार
- चोल साम्राज्य के अंतर्गत व्यापार- वाणिज्य में भी वृद्धि देखी गयी। चोलों के व्यापारी समूहों के साथ मजबूत संबंध थे और इसने उन्हें प्रभावशाली नौसैनिक अभियान चलाने की अनुमति दी।
एक मजबूत सेना और नौसेना
- चोलों ने एक मजबूत स्थायी सेना एवं नौसैनिक संसाधनों के महत्त्व को समझा। चोल वंश की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक इसकी नौसैनिक शक्ति थी, जिससे उन्हें अपनी विजय में मलेशिया और इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीपों तक जाने की अनुमति मिली।
- चोल साम्राज्य का वर्चस्व ऐसा था कि बंगाल की खाड़ी कुछ समय के लिए "चोल झील" में परिवर्तित हो गई थी।
- चोल राजवंश दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया में एक सैन्य, आर्थिक और सांस्कृतिक महाशक्ति बन गया।
कला और संस्कृति
मंदिर वास्तुकला
- चोलों ने अपने मंदिरों का निर्माण पल्लव वंश के पारंपरिक तरीके से किया, जो स्वयं अमरावती वास्तुकला से प्रभावित थे।
- चोल वास्तुकला ने जिस परिपक्वता और भव्यता को विकसित किया था, उसकी अभिव्यक्ति तंजावुर और गंगईकोंडाचोलपुरम के दो शानदार मंदिरों में दिखाई देती है।
बृहदेश्वर मंदिर
- चोलों द्वारा निर्मित तंजावुर का भव्य बृहदेश्वर मंदिर उस काल में भारत की सबसे बड़ी इमारत थी।
- यह मंदिर अपनी दीवारों पर मंदिर के दिन-प्रतिदिन के प्रशासन से संबंधित विस्तृत प्रशासनिक और वित्तीय प्रक्रियाओं के उत्कीर्ण प्रमाण रखता है।
ऐरावतेश्वर मंदिर
- राजराजा द्वितीय के शासनकाल के दौरान तंजावुर के पास दारासुरम में ऐरावतेश्वर मंदिर 12 वीं शताब्दी में स्थापत्य कला के चरमोत्कर्ष की विशिष्ट एक शानदार संरचना है।
मूर्तिकला
- चोल काल अपनी मूर्तियों और कांसे के लिए भी उल्लेखनीय है।
- प्रसिद्ध कांस्य निर्मित नटराज की मूर्तियों सहित चोल राजाओं और रानियों द्वारा कलाकृतियों और मूर्तियों को संरक्षण दिया गया।
- चोल काल की कांस्य मूर्तियाँ द्रवी मोम तकनीक का उपयोग करके बनायी गयी थी।