April 5, 2022

मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न -88

प्रश्नःमहात्मा बुद्ध की शिक्षाएँ एक बड़ी सीमा तक वर्तमान समाज की समस्याओं को समझने एवं उनके निराकरण में सहायक हो सकती है। आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए।

उत्तरः किसी भी धार्मिक पंथ की सफलता की सबसे महत्वपूर्ण कसौटी होती है उसका समाज सापेक्ष होना। बौद्ध पंथ इस कसौटी पर खरा उतरता है। उसी प्रकार किसी भी धार्मिक पंथ की सफलता की दूसरी कसौटी हो सकती है इसका सर्वकालिक स्वरूप इस कसौटी पर भी बौद्ध पंथ सफल माना जा सकता है क्योंकि बौद्ध मत के द्वारा प्रतिपादित कुछ शिक्षाएँ वर्तमान युग के लिए भी प्रासांगिक है।

वर्तमान में बौद्ध पंथ की प्रासंगिकता का अनुमान इस आधार पर लगाया जा सकता है कि 1956 में भीमराव अम्बेडकर ने 60 लाख महारों को बौद्ध पंथ में धर्मांतरित कराया। इस कारण से फिर एक बार भारत में बौद्ध पंथ फिर पुनर्जीवित हो गया। दलित वर्ग के लोगों का बौद्ध पंथ के प्रति आकर्षित होने का कारण था जाति व्यवस्था पर बौद्ध पंथ का रेडिकल रूख जो वर्तमान भारत की एक महत्वपूर्ण जरूरत है।

 उसी प्रकार वर्तमान में बौद्ध पंथ को प्रासांगिक बनाने वाला एक महत्वपूर्ण कारक है बौद्धों का आचार शास्त्र जिसे आष्टांगिक मार्ग के नाम से जाना जाता है यह सभी प्रकार की अतिवादिता से परहेज करता है। वस्तुतः वर्तमान विश्व की सबसे बड़ी समस्या अतिवाद है, जिसने उत्पादन से लेकर उपभोग तक सभी क्षेत्रें में एक प्रकार का असंतुलन कायम कर दिया है तथा उसी का दुखद परिणाम है पर्यावरण संकट। फिर बौद्ध मत अहिंसा के माध्यम से मानव एवं उसके परिवेश के साथ व्यावहारिक संबंध कायम करता है। 

सबसे बढ़कर बौद्ध शिक्षा का सबल तत्व है ‘तर्कवाद’ की अवधारणा अर्थात् वह कार्य-कारण संबंधों के अधार पर किसी तथ्य की व्याख्या करता है यह दृष्टिकोण वर्तमान जीवन के लिए भी उपयोगी है।

हालांकि यह सही है कि बौद्ध शिक्षा के कतिपय अंश यथा- दुखवाद की अवधारणा, निर्वाण की परिकल्पना, पुर्नजन्मवाद जैसी अवधारणा वर्तमान समाज के लिए प्रसांगिक नहीं रह गई है किंतु बौद्ध आचार साहित्य, तर्कवाद की पद्धति एवं जाति प्रथा का विरोध वर्तमान समाज के लिए आवश्यक है।