April 1, 2022

मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न -87

प्रश्न :आयु, लिंग तथा धर्म के बंधनों से मुक्त होकर भारतीय महिलाएँ भारत के स्वाधीनता संग्राम में अग्रणी बनी रहीं। विवेचना कीजिए।

उत्तरः भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन अपने स्वरूप में बहुसमावेशी  तथा बहुआयामिक  रहा था। इसमें भिन्न पृष्ठभूमि, आयुवर्ग एवं क्षेत्र से महिलाओं की भागीदारी हुई। पारिवारिक एवं सामाजिक  बंधनों के बावजूद भी महिलाओं ने बढ़-चढ़कर स्वाधीनता आंदोलन में हिस्सा लिया।  

भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम, अर्थात् 1857 के महाविद्रोह, के मध्य झांसी के विद्रोह का केंद्र एक हिंदू रानी लक्ष्मीबाई रही थी तो दूसरी तरफ अवध के विद्रोह का केंद्र एक मुस्लिम नबाब, विरजिस कादर, की माता जीनत महल। आगे कुछ अन्य मुस्लिम महिलाओं ने भी राष्ट्रीय आंदोलन तथा महिला उत्थान कार्यक्रम में हिस्सा लिया यथा, कुदसिया रसूल, शरीफा हामिद अली, कुलसूम सयानी, हजरा अहमद आदि। उसी प्रकार अरूणा, जिसने सांप्रदायिक विभाजन को अस्वीकार करते हुए एक मुस्लिम नेता आसफ अली से विवाह किया, एक समर्पित राष्ट्रवादी थी।

उसी तरह राष्ट्रीय आंदोलन में विभिन्न उम्र की महिलाओं ने भागीदारी निभायी। शांति चौधरी एवं सुनीति चौधरी जैसी छात्रओं ने बंगाल के ब्रिटिश मजिस्ट्रेट ‘स्टीवेन्स’ पर गोली चलाकर क्रांतिकारी राष्ट्रवादियों की सूची में शामिल हो गई। वहीं दूसरी तरफ, बसंती देवी, उर्मिला देवी, मोहिनी देवी जैसी बुजुर्ग महिलाएं हैं, जिन्होंने अलग-अलग समय में राष्ट्रीय आंदोलन में हिस्सा लिया था। इसके अतिरिक्त  मातंगी हजारा ने, जो एक कृषक महिला थी, 72 वर्ष की उम्र में न केवल भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया अपितु इस आंदोलन के मध्य एक बटालियन का नेतृत्व भी किया। इसके अतिरिक्त हमे ज्ञात होता है कि महिलाओं की भागीदारी भारत के विभिन्न क्षेत्रें से हुई तथा भागीदारी का स्वरूप भी अलग-अलग रहा। मातंगी हजारा मिदनापुर में सक्रिय रहीं, उषा मेहता बम्बई में तथा रूक्मिणी लक्ष्मीपति मद्रास में। उसी प्रकार, विभिन्न महिला राष्ट्रवादियों के द्वारा भिन्न प्रकार की राजनीतिक पद्धति को अपनाया गया। श्रीमती एनी बेसन्ट ने उदारवादी राजनीतिक पद्धति को अपनाया तो डॉú सरोजनी नायडु ने गांधीवादी पद्धति को वहीं कल्पना दत्त एवं प्रीतिलता बाडेडर ने क्रांतिकारी राष्ट्रवाद का सहारा किया।  

इस प्रकार राष्ट्रीय आंदोलन में पुरूषों के समानान्तर महिलाओं की भूमिका को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। फिर स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी भागीदारी ने स्वतंत्रता के पश्चात् महिलाओं की संवैधानिक एवं सामाजिक दशा को भी प्रभावित किया।