मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न -60
प्रश्नः केनिंग से लेकर कर्जन तक लगभग सभी ब्रिटिश प्रशासकों के द्वारा भारत को एक रचनात्मक युग में प्रवेश कराने अथवा एक नये युग की तैयारी के बजाय ‘श्वेत व्यक्ति पर भार’ समझा गया।
उत्तरः 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में जहां पश्चिमी विश्व में प्रजातांत्रिक संस्थाएं अपनी जड़ जमा रही थीं वहीं भारत में सुधार एवं परिवर्तन की सभी प्रक्रियाओं को लगभग उलट दिया गया। इस तथ्य की व्याख्या इस काल में होने वाले नव साम्राज्यवाद के उद्भव के संदर्भ में की जा सकती है।
वस्तुतः 1860 से पहले विश्व का एक मात्र औद्योगीकृत देश के रूप में ब्रिटेन स्थापित था। स्वाभाविक रूप में उसे किसी दूसरी औद्योगिक शक्ति से खतरा नहीं था इसलिए उसने स्वतंत्र बाजार की नीति को प्रोत्साहन दिया था। फिर थोड़े काल के लिए तो कुछ ब्रिटिश अधिकारियों को ऐसा भी लगने लगा था कि सक्षम आर्थिक नियंत्रण के लिए राजनीतिक नियंत्रण आवश्यक नहीं। अतः भारत के संदर्भ में प्रायः स्वशासन जैसी धारणा भी व्यक्त की जाने लगी थी।
किंतु 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध तक स्थिति में नाटकीय परिवर्तन आ चुका था। अब ब्रिटेन के समानान्तर यूएसए, जर्मनी, जापान, रूस, फ्रांस आदि देश भी औद्योगिक राष्ट्र के रूप में स्थापित हो चुके थे। इसलिए अब ब्रिटिश को भारत के संदर्भ में अपने औपनिवेशिक हित के लिए ख़तरा नजर आने लगा। रूसी प्रसार की नीति ने ब्रिटिश को भयभीत कर दिया।
इसलिए भारत के संदर्भ में अब ब्रिटिश नीति बदल गई तथा उनकी वाणी भी कठोर हो गई। स्वशासन जैसे उद्देश्य को उन्होंने ताक पर रख दिया तथा बदले में यह घोषित किया कि भारतीय स्वशासन के लायक ही नहीं हैं। उधर 1857 के विद्रोह ने भी भारत के संदर्भ में उनकी धारणा को बदल दिया था। इसलिए इस काल में लिट्टन, लेंसडाउन, डफरिन एवं कर्जन जैसे ब्रिटिश प्रशासकों ने भारत में कठोर शासन पर बल दिया।
फिर यही काल है जब ‘श्वेतों के अधिभार’ जैसी अवधारणा ने उपनिवेशों पर महानगरीय राज्य के द्वारा स्थापित कठोर शासन के औचित्य को सिद्ध करने का प्रयास किया। किंतु यहां वास्तविक उद्देश्य उपनिवेश की जनता की राजनीतिक प्रशासनिक क्षेत्र में भागीदारी को रोकना था।