Dec. 30, 2021

मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न -15

प्रश्न : 18वीं सदी के भारत में प्राच्यवाद मूलतः वाणिज्यिक पूंजीवाद की जरूरत से जुड़ा रहा था। इस कथन की व्याख्या कीजिए।

उत्तरः प्राच्यवाद से तात्पर्य है ब्रिटिश प्रशासक एवं चिंतकों का एक समूह जिसने भारत के अतीत के गौरव एवं भारतीय संस्कृति के उद्घाटन में विशेष रूचि दिखायी। प्राच्यवादियों ने तो यहाँ तक दावा कर डाला कि विश्व की कुछ महान  उपलब्धियाँ पूरब की प्राचीन संस्कृति में निहित थीं। यद्यपि ऊपरी स्तर पर देखने पर यह प्रतीत होता है कि प्राच्यवादी भारतीयों के हमदर्द एवं उनके प्रशंसक हैं परंतु गहराई से परीक्षण करने पर यह ज्ञात होता है कि ब्रिटिश प्राच्यवादी कहीं न कहीं ब्रिटिश वाणिज्यिक पूंजीवाद की जरूरत से परिचालित हो रहे थे।

वस्तुतः वाणिज्यिक पूंजीवाद के काल में भारत में ब्रिटिश उद्देश्य सीमित था। उनका उद्देश्य था अधिकतम रूप में राजस्व का संग्रह कर उसे व्यापार में निवेशित करना। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए उन्हे भारत में व्यापक परिवर्तन लाने की जरूरत नहीं थी। इसलिए ब्रिटिश कंपनी ने थोड़े-बहुत परिवर्तन के साथ भारत में परंपरागत प्रशासनिक ढांचे को बनाए रखा। उसी तरह सामाजिक तथा सांस्कृतिक क्षेत्र में भी परंपरागत मॉडल को ही बनाए रखने पर बल दिया। प्राच्यवाद ब्रिटिश की उपर्युक्त जरूरत के अनुकूल ही था। प्राच्यवाद ने यह स्थापित करने का प्रयास किया कि भारतीय मॉडल ब्रिटिश मॉडल से पृथक अवश्य है किंतु उससे निकृष्ट नहीं है।

उपर्युक्त बातों के अतिरिक्त भारतीय अतीत एवं परंपरा का ज्ञान भारत में काम करने वाले ब्रिटिश अधिकारियों के लिए बहुत उपयोगी हो सकता था। वे ब्रिटिश हित में बेहतर रूप में शासन कर सकते थे। इस तरह हम देखते हैं कि प्राच्यवाद जैसी विशिष्ट विचारधारा गहरे रूप में ब्रिटिश औपनिवेशिक हित में संबद्ध थी।